अमरोहा से उठी एक नई क्रांति की शुरुआत
उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले में राज्यसभा सांसद संजय सिंह की अगुवाई में कुछ ऐसा हुआ जिसने न सिर्फ प्रशासन को हिला दिया, बल्कि आम जनता के दिलों में एक उम्मीद जगा दी। प्राथमिक विद्यालय मोहम्मदपुर से हिमायुनगर तक निकली पदयात्रा सिर्फ एक मार्च नहीं थी — यह था एक आंदोलन, एक हुंकार, एक सवाल — क्या हमारे बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं मिलनी चाहिए?
- अमरोहा से उठी एक नई क्रांति की शुरुआत
- सरकारी स्कूलों की हालत — बच्चों का भविष्य अधर में
- सांसद संजय सिंह का सक्रिय हस्तक्षेप — संसद तक ले जाएंगे लड़ाई
- अमरोहा से उठी पहली लहर, लखनऊ और दिल्ली तक गूंज
- बच्चों की पदयात्रा बनी क्रांति का प्रतीक
- जनता की भागीदारी ने बनाया इसे जन आंदोलन
- अब मामला जाएगा सुप्रीम कोर्ट तक
- सादगी में छिपी है आंदोलन की ताकत
- सपनों की हत्या नहीं — शिक्षा का अधिकार चाहिए
- अब यह लड़ाई चुपचाप नहीं लड़ी जाएगी
- शिक्षा को लेकर बदलेगी राजनीति की दिशा?
- अमरोहा की आवाज़ अब राष्ट्रीय चेतना बन चुकी है
सरकारी स्कूलों की हालत — बच्चों का भविष्य अधर में
स्कूल की टूटी दीवारें, छत से टपकता पानी, बेंच की जगह फटी टाट-पट्टी, और मास्टर साहब एक ही — ऐसा हाल है उन सरकारी स्कूलों का, जिनमें पढ़कर कभी देश के नेता और अफसर निकले थे। लेकिन आज… ये स्कूल खुद बीमार हैं।
सांसद संजय सिंह का सक्रिय हस्तक्षेप — संसद तक ले जाएंगे लड़ाई
राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने जब खुद स्कूल के बाहर ज़मीन पर बैठकर बच्चों से संवाद किया, तो एक बात साफ़ थी अब ये मुद्दा सिर्फ एक गांव या एक जिले तक सीमित नहीं रहेगा। अब ये लड़ाई सड़क से होती हुई सीधे संसद के दरवाज़े तक जाएगी।
अमरोहा से उठी पहली लहर, लखनऊ और दिल्ली तक गूंज
स्कूल बचाओ आंदोलन की यह पहली लहर अमरोहा से उठी है, लेकिन इसकी गूंज लखनऊ और दिल्ली तक सुनाई देने लगी है। ग्रामीण इलाकों में शिक्षा की दुर्दशा को लेकर लोगों का ग़ुस्सा अब उबाल पर है। और इस ग़ुस्से को आवाज़ दी है इस अभियान ने।
बच्चों की पदयात्रा बनी क्रांति का प्रतीक
चलते-चलते गली-गली, गांव-गांव लोगों की आंखों में एक ही सवाल था — कब सुधरेगा हमारे बच्चों का भविष्य? छोटे-छोटे बच्चे, हाथों में पोस्टर लिए, कदम से कदम मिलाकर चल रहे थे और ये दृश्य किसी क्रांति से कम नहीं था।
जनता की भागीदारी ने बनाया इसे जन आंदोलन
जिस तरह से माता-पिता, शिक्षक और स्थानीय लोग इस आंदोलन में जुड़ते जा रहे हैं, वह बताता है कि ये सिर्फ एक राजनीतिक बयानबाज़ी नहीं, बल्कि ज़मीन से उठी हुई आवाज़ है।
अब मामला जाएगा सुप्रीम कोर्ट तक
सांसद ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक जाएगा। कानून के सबसे ऊंचे मंदिर में, वो आवाज़ पहुंचेगी जिसे सालों से अनसुना किया जा रहा था। और इसके बाद, संसद का सत्र इस मुद्दे से अछूता नहीं रह पाएगा।
सादगी में छिपी है आंदोलन की ताकत
अमरोहा में जिस तरह से लोगों ने इस अभियान का स्वागत किया, वह भी काबिल-ए-गौर है। न कोई बड़ा मंच, न कोई भारी भरकम रैली — सिर्फ सच्चाई, ईमानदारी और शिक्षा की पुकार। और यही कारण है कि यह आंदोलन दिन-ब-दिन तेज़ होता जा रहा है।
सपनों की हत्या नहीं — शिक्षा का अधिकार चाहिए
बात सिर्फ स्कूल की नहीं है, बात उस सपने की है जो हर मां-बाप अपनी आंखों में अपने बच्चों के लिए देखते हैं। लेकिन जब वो सपना किसी जर्जर इमारत में दम तोड़ दे, तो क्या वो सपनेदार चुप रहेगा?
अब यह लड़ाई चुपचाप नहीं लड़ी जाएगी
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बात तो साफ़ कर दी है — अब स्कूलों की हालत सुधारने की मांग सिर्फ चिठ्ठियों और ज्ञापनों तक सीमित नहीं रहेगी। अब यह मांग एक जनआंदोलन का रूप ले चुकी है।
शिक्षा को लेकर बदलेगी राजनीति की दिशा?
राजनीति की दुनिया में जब शिक्षा जैसे मुद्दे को लेकर कोई जनप्रतिनिधि मैदान में उतरता है, तो सियासत की दिशा भी बदलती है। अब देखना यह होगा कि यह लहर कितनी दूर तक जाती है, क्या वाकई संसद में इस पर गंभीर बहस होगी? क्या सरकारें अपनी प्राथमिकताओं को बदलेंगी? क्या गांव का बच्चा भी कॉन्वेंट स्कूल जैसा माहौल पा सकेगा?
अमरोहा की आवाज़ अब राष्ट्रीय चेतना बन चुकी है
इन सवालों के जवाब अभी भविष्य के गर्भ में हैं, लेकिन इतना तय है — अमरोहा से उठी यह आवाज़ अब थमने वाली नहीं है।