क्या हमारी बोली बदल सकती है हमारा भविष्य? जानिए क्या कहती है नई रिसर्च

Aanchalik Khabre
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हम सभी ने सुना है कि “सोच बदलो, तो ज़िंदगी बदल जाएगी।” लेकिन क्या कभी सोचा है कि भाषा भी आपकी सोच और आदतों को बदल सकती है?
नवीनतम शोध कहता है — हाँ, और नहीं… दोनों!

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भाषा और सोच – एक गहरा रिश्ता

हर भाषा के अपने नियम होते हैं।
जैसे अंग्रेज़ी में अगर आपको कल बारिश की बात करनी है, तो “will” लगाना ज़रूरी है – It will rain tomorrow.
लेकिन डच जैसी भाषाओं में आप बिना future tense भी कह सकते हैं – Tomorrow it rains.

यहीं से आया linguistic savings hypothesis — 2013 में अर्थशास्त्री Keith Chen ने कहा कि जिन भाषाओं में भविष्य को बोलते समय अलग काल ज़रूरी है (Strong-FTR), उनके लोग भविष्य को “दूर” मानते हैं और बचत व सेहत में कम निवेश करते हैं।
इसके उलट, Weak-FTR भाषाएँ बोलने वाले भविष्य को “पास” मानते हैं और ज़्यादा बचत करते हैं।

लेकिन असली खेल सिर्फ भाषा का नहीं

बाद के प्रयोगों में पता चला कि सिर्फ “will” या “might” कहने से लोग पैसे या सेहत के फैसले अलग नहीं लेते।
तो क्या Chen का सिद्धांत गलत था?

नहीं, पर पूरी कहानी थोड़ी अलग है।
हाल ही में Robertson और उनकी टीम ने पाया — फर्क इस बात में है कि आप भाषा का इस्तेमाल कैसे करते हैं।
अंग्रेज़ी बोलते हुए अगर आप ज़्यादातर “will” जैसे पक्के शब्द इस्तेमाल करते हैं, तो आप भविष्य को पक्का मानते हैं और उसके लिए इंतज़ार करने को तैयार रहते हैं।
अगर आप “might” कहते हैं, तो भविष्य अनिश्चित लगता है — और फिर “अभी” के फायदे ज़्यादा अच्छे लगते हैं।

हमारे लिए इसका मतलब क्या है?

भाषा सिर्फ एक हिस्सा है — संस्कृति, आर्थिक हालात और आदतें भी आपके फैसलों पर असर डालती हैं।

एक ही भाषा बोलने वाले दो लोग भी, अपने शब्दों के चुनाव से, बिल्कुल अलग सोच सकते हैं।

नई भाषा सीखना अच्छा है, लेकिन सिर्फ इस उम्मीद में मत सीखिए कि इससे आपकी बचत या सेहत अपने आप सुधर जाएगी।

सीधी बात:
शब्दों की ताकत सिर्फ कविताओं और भाषणों में नहीं होती, बल्कि आपके बैंक बैलेंस और हेल्थ चार्ट में भी दिख सकती है।
तो अगली बार जब आप कहें “मैं करूंगा” बनाम “शायद करूँ,” सोचिए — आप अपने भविष्य को कितना पक्का मान रहे हैं?

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