शौचालयों के अभाव में बच्चियों की पढ़ाई अधर में
पंजाब में लड़कियों के अनेक स्कूलों में शौचालय नहीं है जिसके चलते माता-पिता अपनी बच्चियों को स्कूलों में नहीं भेज रहे। यद्यपि पंजाब सरकार शिक्षा क्रांति के नाम पर स्कूलों की हालात बदल रही है लेकिन फिर भी यहां शौचालयों की स्थिति इतनी अच्छी नहीं है जितना प्रचार किया जा रहा है।
शिक्षा क्रांति का प्रचार और विरोध
आम आदमी पार्टी की सरकार ने दिल्ली में शिक्षा व्यवस्था में क्रांति का भारी प्रचार किया, लेकिन लोगों ने उसे अस्वीकार कर दिया। यहां तक कि दिल्ली सरकार के शिक्षा मंत्री सिसोदिया स्वयं चुनाव हार गए। इसी तरह पंजाब में शिक्षा क्रांति को लेकर जो प्रचार किया जा रहा है विरोधी पक्ष उसे एक नाटक बता रहे हैं, वहीं गांवों की पंचायतों ने भी इसे रिजेक्ट कर दिया है।
उद्घाटन पर खर्च, शौचालय उपेक्षित
गांवो के सरकारी स्कूलों में एक-एक कमरे के बाहर उद्घाटन के लिए गेट लगवाए जा रहे हैं जिनकी कीमत 5000 के लगभग है लेकिन शौचालयों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। कई जगह पुराने को पोलिश करके उन्हें नया लुक दिया जा रहा है। जर्जर शौचालयों के रिपेयर पर तो 5000 खर्च नहीं हुए लेकिन उद्घाटनी बोर्ड पर 5000 खर्च कर दिया गया।
सूचना के अधिकार से सामने आई सच्चाई
सूचना के अधिकार से मिली जानकारी के अनुसार राज्य के 82 स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालयों की कमी है। वहीं सूत्रों से पता चला है कि शौचालयों की सबसे ज्यादा कमी सीमावर्ती क्षेत्रों में है, अकेले गुरदासपुर में 18 स्कूलों में शौचालय नहीं है।
शौचालय के नाम पर सिर्फ चारदीवारी
फिरोजपुर के 6 स्कूलों में शौचालय के नाम पर केवल चार दीवारी है, यहां ना पानी की टंकियां लगी हैं और ना फ्लश का इंतजाम है। अमृतसर में 10 स्कूल ऐसे हैं जहां पर तो कोई शौचालय ही नहीं, ना ही वॉशरूम है।
सरकारी आंकड़ों की हकीकत
पंजाब सरकार के अनुसार 10085 स्कूलों में शौचालयों का निर्माण करवाया गया है, लेकिन पंजाब के अभी भी कई स्कूल हैं जहां पर पेयजल की भी सुविधा मौजूद नहीं है, जबकि अंडमान-निकोबार, चंडीगढ़, दादरा-नगर हवेली में स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालयों के पर्याप्त प्रबंध हैं।
शिक्षकों से वसूली और सफाई सेवकों की कमी
टीचर यूनियन जीरा के सेवानिवृत अध्यक्ष का आरोप है कि पंजाब सरकार सरकारी टीचरों से शिक्षा क्रांति के नाम पर शौचालय बनाने के लिए फंड एकत्र कर रही है। कई स्कूलों में सफाई सेवक ही नहीं है और प्राइवेट सफाई सेवकों की भर्ती के लिए सरकारी टीचरों के वेतन से फंड काटने की कोशिश की गई है।
सफाई सेवकों के संसाधन भी अधूरे
जो सफाई सेवक भर्ती किए जा रहे हैं, उनका कहना है कि बिना फिनायल और झाड़ू से स्कूल की सफाई कैसे हो सकती है। गांवों के सरपंचों का कहना है कि स्कूलों में शौचालय न होने के कारण बच्चों को घर जाना पड़ता है, जबकि शिक्षकों ने अपने शौचालयों पर ताला जड़ा हुआ है।
सीमावर्ती स्कूलों की हालत चिंताजनक
फिरोजपुर के सीमावर्ती स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालयों के नाम पर जो चार दीवारी बनाई गई है, उसमें दरवाजे तक नहीं लगवाए गए। कई सरकारी टीचरों ने आरोप लगाया है कि सरकार अपनी प्रसिद्धि के लिए हमारी जेब में कट लगा रही है।
सरकार से सवाल और जवाब की मांग
टीचर यूनियन के अध्यक्ष ने बयान दिया है कि मान सरकार बताए कि स्कूलों के शौचालयों के लिए कितने सफाई सेवक रखे गए हैं और उनके लिए कितने बजट का प्रावधान किया गया है।
बड़ी बातें, लेकिन ज़मीनी हकीकत बेहद अलग
प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार दोनों ही महिलाओं की शिक्षा व्यवस्था और स्वास्थ्य दोनों के बारे में बड़ी बड़ी बातें तो करती हैं लेकिन धरातल पर स्थिति बहुत अलग है। आधुनिकता के इस दौर में आज भी सरकारें सैकड़ों स्कूलों में न तो पेयजल उपलब्ध करा पायीं हैं और न शौचालय जैसी मूलभूत सुविधा।
निष्कर्ष (Conclusion):
ऐसे में इन स्कूलों की बच्चियां अपनी पढ़ाई कैसे और कब तक जारी रख पाएंगी? और यदि ऐसी परिस्थितियों में उनकी पढ़ाई छूट गयी तो निस्संदेह सरकारें ही इसकी जिम्मेदार मानी जाएंगीं।
Source – सुभाष आनंद-विनायक फीचर्स