लोक कल्याणकारी भगवान त्र्यंबकेश्वर

Aanchalik Khabre
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लोक कल्याणकारी भगवान त्र्यंबकेश्वर

लेखिका: अंजनी सक्सेना – विभूति फीचर्स


द्वादश ज्योतिर्लिंगों में त्र्यंबकेश्वर की विशेष महिमा

देवाधिदेव महादेव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से हर एक की अपनी अनुपम, अद्भुत एवं अद्वितीय महिमा है। त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग भी भगवान शंकर के ऐसे ही परम पुण्यदायी द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो महाराष्ट्र के ब्रह्मगिरी पर्वत पर त्र्यम्बक नामक गांव में स्थापित है।

द्वादश ज्योतिर्लिंग भगवान महादेव के वे स्वरूप हैं जो ज्योति रूप में इस पृथ्वी पर स्वयं ही प्रकट हुए हैं। संसार के समस्त ज्योतिर्लिंगों की उत्पत्ति लोककल्याण के लिए ही हुई है। देवाधिदेव महादेव के त्र्यम्बकेश्वर स्वरूप की उत्पत्ति भी लोककल्याणार्थ ही हुई है।


गौतम ऋषि और त्र्यंबकेश्वर की पौराणिक कथा

श्रीशिवमहापुराण में वर्णित कथानक के अनुसार गौतम ऋषि के आग्रह पर भगवान शंकर ने यहाँ परम पुण्यदायिनी गंगा को अवतरित किया और स्वयं भी यहां त्र्यम्बकेश्वर के रूप में विराजमान हो गए।


ब्रह्मगिरी पर्वत पर जल संकट और ऋषियों का संघर्ष

पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में ब्रह्मगिरी पर्वत गंभीर जल संकट से ग्रसित था। उस समय यह पूरा क्षेत्र निर्जन एवं वीरान वन था। पानी के अभाव के कारण यहां तपस्यारत ऋषि-मुनियों की पत्नियों एवं सेवकों को काफी दूर से जल लाना पड़ता था।

पानी के स्त्रोत सीमित थे, इस कारण कई बार उनमें आपसी वाद-विवाद भी हो जाते थे। ऐसे ही एक बार गौतम ऋषि के सेवक पानी लेने पहुंचे तो अन्य ऋषियों की पत्नियों ने उन्हें डाँट कर वहाँ से भगा दिया। इस पर गौतम ऋषि की पत्नी देवी अहिल्या उन सेवकों को अपने साथ ले गईं और उन्हें पानी भरवाकर ले आईं।


ब्रह्महत्या का मिथ्या आरोप

इससे शेष ऋषि गण गौतम ऋषि और देवी अहिल्या से नाराज रहने लगे। ऐसे समय में ही एक दुर्बल गाय की घास के तिनके के प्रहार से मृत्यु हो गई। वह घास का तिनका गौतम ऋषि ने फेंका था, इसलिए वहां के ऋषियों ने गौतम ऋषि को ब्रह्महत्या का दोषी मानते हुए उन्हें पूजा कर्म से बहिष्कृत करने की बात कही।

ऋषियों ने कहा कि यदि वे इस स्थान पर गंगा जी को ले आएं तभी इस पाप से मुक्ति पा सकेंगे।


गौतम ऋषि की तपस्या और गंगा का अवतरण

तब गौतम ऋषि ने भगवान शंकर की घनघोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव ने गौतम ऋषि से वरदान मांगने को कहा। गौतम ऋषि ने वहाँ गंगा के अवतरण की बात कही ताकि इससे वहां के जल संकट का स्थायी समाधान हो सके और वे स्वयं भी गौ हत्या के पाप से मुक्ति पा सकें।

इस पर भगवान शंकर ने पावन पुनीत गंगा से यहाँ अवतरण की प्रार्थना की। गंगा जी ने आने की सहमति तो दी लेकिन इस शर्त पर कि उनके साथ भगवान शंकर भी उसी स्थान पर विराजमान होंगे। देवी गंगा की यह शर्त मानकर लोक कल्याणार्थ भगवान शंकर यहाँ ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीन स्वरूपों में विराजमान हो गये।


 त्र्यंबकेश्वर नाम की उत्पत्ति और गोदावरी का प्राकट्य

तीन स्वरूप एक साथ होने के कारण ही भगवान शंकर के इस ज्योर्तिलिंग का नाम त्र्यम्बकेश्वर हुआ और देवी गंगा गोदावरी के नाम से इस स्थान पर प्रकट हुईं।


त्र्यंबकेश्वर का वर्तमान स्वरूप

वर्तमान में यह स्थान महाराष्ट्र के नासिक जिले के त्र्यम्बक नामक गांव में है। यहाँ मंदिर के अंदर प्राकृतिक रूप से बनी हुई जलहरी में भगवान अपने त्र्यम्बक स्वरूप (तीन पिंडी रूपी शिवलिंग) में विराजमान हैं।

यहीं से गंगा नदी का उद्गम हुआ है, जिन्हें गौतम ऋषि के नाम पर गौतमी भी कहा जाता है।


क्षेत्र में समृद्धि और वर्षा का वरदान

पुराणों एवं धर्मग्रंथों के अनुसार गौतम ऋषि गौतमी के उद्गम स्थल के अपने आश्रम में संध्या, उपासना, हवन, यज्ञ, पूजा किया करते थे। इस कुंड के पानी से उन्होंने आश्रम के आसपास यज्ञ एवं पूजा उपासना में लगने वाली सामग्री उगाना प्रारंभ की।

धीरे-धीरे अवर्षा से त्रस्त इस क्षेत्र में वर्षा भी होने लगी और आगे चलकर यह पूरा क्षेत्र हरी-भरी पहाड़ियों से घिर गया। आज भी त्र्यम्बकेश्वर महादेव के इस क्षेत्र में भरपूर वर्षा होती है।


धार्मिक महत्व और विशेष पूजन विधियाँ

त्र्यम्बकेश्वर महादेव मंदिर परिसर में कुशावर्त कुंड है, जहाँ स्नान करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यहां पित्रों की मुक्ति के लिए नारायण बलि एवं नागबलि जैसी विशेष पूजाएं होती हैं।

कालसर्प दोष के निवारण के लिए भी यहाँ भारी संख्या में भक्त आते हैं।


निष्कर्ष:
भगवान त्र्यंबकेश्वर का यह क्षेत्र न केवल आध्यात्मिक रूप से अत्यंत शक्तिशाली है, बल्कि यह एक ऐसा पावन स्थल भी है जहाँ भगवान शंकर ने स्वयं लोक कल्याण के लिए अपना दिव्य स्वरूप धारण किया। यह स्थल आज भी भक्ति, श्रद्धा और आस्था का केंद्र बना हुआ है।

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