समोसा-जलेबी खतरनाक है या पिज्जा-बर्गर, पेस्ट्री-केक?

Aanchalik Khabre
7 Min Read
समोसा जलेबी खतरनाक है

(मनोज कुमार अग्रवाल – विनायक फीचर्स)

Contents

देसी व्यंजन बनाम फास्ट फूड: खतरे की असली तस्वीर क्या है?

आजकल समोसा जलेबी जमकर चर्चा में हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाह पर ध्यान दें तो समोसा जलेबी से अधिक खतरा पिज्जा, बर्गर, पेस्ट्री, केक, मैगी, चाउमीन, नूडल्स, आमलेट और चाइनीज़ फूड में छिपा है। लेकिन फिलहाल केक पेस्ट्री नूडल्स खाकर परवरिश पायी पीढ़ी उनके इस्तेमाल के प्रति लापरवाह बनी हुई है।


स्वास्थ्य चेतावनी बोर्ड: सिगरेट की तरह खाने पर भी अलर्ट!

हमारे देश में सिगरेट और शराब को लेकर वैधानिक चेतावनी दी जाती है कि इनका सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अब चर्चा है कि जल्द ही देश के सभी सरकारी संस्थानों में ऐसे बोर्ड लगाए जाएंगे जो साफ बताएंगे कि आपकी प्लेट में आए समोसे और जलेबी का स्वाद असल में कितनी चीनी और तेल लेकर आया है।


सरकारी संस्थानों में लगेगा चीनी और तेल चेतावनी बोर्ड

सभी सरकारी संस्थानों को कहा जा रहा है कि कैफेटेरिया और सार्वजनिक जगहों पर ऐसे बोर्ड लगाए जाएं, जो सबसे प्रचलित भारतीय नाश्ते में छिपी चीनी और तेल की मात्रा दिखाएं। इनका मकसद लोगों को यह बताना है कि वे जो कुछ भी खा रहे हैं वह स्वाद में भले लाजवाब हो, लेकिन सेहत के लिए कितना भारी पड़ सकता है। एम्स नागपुर के अधिकारियों ने इसे फूड लेबलिंग में एक नया मोड़ बताते हुए कहा है, कि अब खाने के साथ भी उतनी ही गंभीर चेतावनी दिखेगी, जैसी सिगरेट पर होती है।


तले हुए और मीठे खाद्य पदार्थों पर चेतावनी की योजना

चर्चा है कि तले हुए और मीठे खाद्य पदार्थों के लिए ऐसी चेतावनी जारी हो सकती है। उदाहरण के तौर पर समोसा, जलेबी, पकौड़े, वड़ा पाव, गुलाब जामुन, लड्डू, खस्ता कचौरी, मिठाइयों की थालियां इन सबके सेवन पर कितनी शक्कर और तेल आपके शरीर में जाएगा, इस बारे में बाकायदा बोर्ड पर सूचना लगी होगी।


भारत में मोटापा बना अमेरिका जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्या

सरकारी तंत्र द्वारा इस पूरी मुहिम को देश की स्वास्थ्य समस्या के निदान के तौर पर पेश किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि अमेरिका की तरह भारत में मोटापा एक बड़ी समस्या बन चुका है। देश में हर पांचवां शहरी वयस्क बढ़े वजन का शिकार है। 2050 तक देश में लगभग 45 करोड़ लोग मोटापे से ग्रसित होंगे, ऐसी आशंका है। बच्चों में भी मोटापा और डायबिटीज तेजी से बढ़ रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है तेल, ट्रांस फैट और चीनी से भरे खाद्य पदार्थों के खाने का चलन बढ़ा है।


फूड लेबलिंग: ट्रांस फैट और चीनी को बताया गया नया तंबाकू

कार्डियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया की नागपुर शाखा के अध्यक्ष अमर अमले के मुताबिक यह फूड लेबलिंग की शुरुआत है जो सिगरेट की चेतावनियों जितनी गंभीर होती जा रही है। चीनी और ट्रांस फैट नए तंबाकू हैं। लोगों को यह जानने का हक है कि वे क्या खा रहे हैं।


मोदी जी की ‘मन की बात’ में मोटापा और कम तेल की अपील

वैसे मोटापे पर यह चिंता मोदीजी की मुहिम से ही निकली हुई दिख रही है। इसी साल फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मोटापे की गंभीर समस्या का जिक्र करते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट का हवाला दिया था.


नामित सितारे और अपील: यह व्यक्तिगत नहीं, पारिवारिक जिम्मेदारी है

इसके बाद मोदीजी ने खाने में कम तेल इस्तेमाल करने की सलाह दी और मोटापे के खिलाफ लड़ाई में आनंद महिंद्रा (उद्योगपति), निरहुआ हिंदुस्तानी (अभिनेता), मनु भाकर (ओलंपिक पदक विजेता), साइखोम मीराबाई चानू (भारोत्तोलक)… को नामित किया था।


2014 से कुपोषण मुक्त भारत की घोषणा, अब मोटापा मुक्ति?

सरकार चाहें तो इस अभियान को अपनी उपलब्धि के तौर पर भी पेश कर सकती हैं कि 2014 में उन्होंने ऐलान किया था कि 2022 तक भारत को कुपोषण से मुक्त करेंगे और अब कुपोषण नहीं मोटापे से मुक्ति की लड़ाई छिड़ गई है।


मोटापा और कुपोषण: भारत में दोनों साथ-साथ कैसे बढ़े?

वैसे सरकार को आईना दिखाने के लिए यह तथ्य काफी है कि देश में अगर मोटापा शहरों और संपन्न तबकों में बढ़ा है, तो उसके साथ कुपोषण की समस्या और गंभीर हुई है। पिछले साल ही सरकार ने संसद में बताया है कि देश में 5 साल से कम उम्र के करीब 60 प्रतिशत बच्चे गंभीर कुपोषण से पीड़ित हैं.


भारत की भूख की तस्वीर: ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भी पिछड़ा

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 19.5 करोड़ कुपोषित लोग हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि आधे से ज्यादा (55.6 प्रतिशत) भारतीय अभी भी ‘पौष्टिक आहार’ का खर्च उठाने में असमर्थ हैं। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भी भारत नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका से नीचे है.


सरकारी अनाज पर निर्भर 80 करोड़ लोगों की सच्चाई

सरकार खुद 80 करोड़ लोगों को हर महीने 5 किलो अनाज देती है। समझ सकते हैं कि जो अस्सी करोड़ लोग सरकारी मदद से मिलने वाले अनाज पर आश्रित हैं उन्हें साल या माह में कितनी बार और कितना संख्या या मात्रा में समोसे और जलेबी खाने के लिए मिलती होगी?


फैसले दूर बैठे अफसर कर रहे, ज़मीनी हकीकत से अनजान

इस देश को चलाने वाला सरकारी तंत्र एयरकंडीशन दफ्तरों में बैठे सुविधा भोगी अफसरों के दिमाग से चलता है जिनका गांव के गरीब विपन्न अधिसंख्य समाज के वास्तविक जीवन से दूर का भी वास्ता नही है.


जलेबी आयुर्वेदिक, समोसा ताज़ा – विदेशी फूड ज़्यादा हानिकारक

वैसे भी जलेबी का सेवन तो खुद में आयुर्वेदिक इलाज बताया गया है। जलेबी ताज़ा खमीर से बनती है। समोसा भी ताज़ा आलू से बनता है जबकि केक, पेस्ट्री, बर्गर, पिज्जा हफ्तों पुरानी सामग्री को फ्रीज कर प्रोसेस कर परोसे जा रहे हैं.


सरकारी चेतावनी का रुख बदले: देसी पर नहीं, विदेशी फास्ट फूड पर हो सख्ती

आवश्यकता इस बात की है कि हमारे सरकारी तंत्र के नीति नियंता भारतीय व्यंजनों के प्रति नकारात्मक सोच का त्याग कर विदेशी व्यंजन के कार्पोरेट संचालित आउटलेट्स. पर चेतावनी दर्ज कराने की व्यवस्था करें.

Share This Article
Leave a Comment