झुंझुनू।श्रीजगदीश प्रसाद झाबरमल टीबडेवाला विश्वविद्यालय एवं जे.वी.बी.आई. लाडनू के सयुक्त तत्वावधान में हिन्दी विभाग की ओर से राष्ट्रीय संगोष्टी का आयोजन किया गया। जिसका विषय आचार्य महाप्रज्ञ का सम्बोधित ग्रंथ एवं गांधी दर्शन की वर्तमान परिप्रेक्ष में प्रांसगिक्ता रखा गया।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ.आनंद प्रकाश त्रिपाठी निदेशक दुरस्त शिक्षा जैन विश्व भारती संस्थान लाडनू,विशिष्ट अतिथि भवानी शंकर शर्मा, सह-आचार्य संस्कृत लोहिया कॉलेज चूरू व डॉ.सत्यानारायण भारद्वाज सह-आचार्य संस्कृत जे.वी.बी.आई. लाडनू,डॉ.अन्नाराम शर्मा राजस्थान प्रदेशाध्यक्ष भारतीय साहित्य अकादमी नोखा थे।कार्यक्रम की अध्यक्षता इंजी. बी.के. टीबडेवाला ने की।इस अवसर पर डॉ.त्रिपाठी ने अपने उद्बोधन में मुनि मेघकुमार ओर महावीर स्वामी से सम्बन्धित ग्रंथ के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि अहिंसा का संदेश सम्बोंधित ग्रंथ में मिलता है।इसका कथानक कठोपनिषद में भी मिलता है।नचिकेता अपने पिता से अपने आप को त्याग करने की बात कहता है।उन्होने कहा किसी ओर के अध्यन से िंहंसा करना कारित हिंसा कहलाती है। क्रोध आने पर मौन धारण करने से अहिंसा होती है। अहंकार ओर माया भी हिंसा के कारण होते है। इस अवसर पर एक ओर वक्ता अन्नाराम शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि गांधी जी की 150 वीं वर्षगांठ ओर पहाप्रज्ञ की 100वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है,दोनों ही महापुरूषों ने समाज में मानवमात्र के कल्याण के लिए कार्य किये तथा विश्व प्रसिद्ध हुये।इस अवसर पर लाडनू से आये डॉ. सत्यनारायण भारद्वाज ने उपस्थ्तिजनों को सम्बोधित करते हुए कहा कि गांधी ओर महाप्रज्ञ दोनों आचरण को सात्विक रखने की बात करते है। उन्होने कहा कि अगर आप को तैरना नहीं आता तो कुछ नहीं आता। उन्होने यह भी कहा कि गीता से सम्बोधि ग्रंथ की तुलना की जाती है। कार्यक्रम को डॉ. कविता नूनियां ने भी सम्बोधित किया।डॉ.भवानीशंकर शर्मा ने महात्मा शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि आचार्य शब्द आचरण से शिष्य को सिखाने वाला आचार्य होता है।जैन गीता का दूसरा नाम सम्बोधित ग्रंथ है।इस अवसर पर शोधार्थीयों ने अपने शोध पत्र भी पढ़े। कार्यक्रम में डॉ. कुलदीप शर्मा,डॉ.शशी मोरोलिया,डॉ. डी.पी.वर्मा,डॉ. शक्तिदान चारण,डॉ. सुरेश कडवासरा,डॉ.सी.एल.शर्मा, डॉ.मधु गुप्ता,डॉ.सतकला,डॉ.संजय मिश्रा, डॉ.जयदेव शर्मा सहित विद्यार्थी मौजूद थे।