देश प्रदेश में चुनाव का क्रम जारी है कही पंचयात,नगर निकाय तो कही मुख्यमंत्री के चुनाव होने वाली है, इस बीच सरकार गठन होने के छह महीने के अंदर ही बिहार में एनडीए सरकार की अंतर्कलह अब तीखी होती जा रही है। एक तरफ केन्द्र सरकार के नेतृत्व करने वाली भारतीय जनता पार्टी एक राष्ट्र एक चुनाव की बात करती है वहीं राजनीति में कथनी और करनी का फर्क अब आम होता जा रहा है इसकी बानगी बिहार में दिख रही है। बिहार में सबसे बड़े दल और वर्तमान में विपक्ष की भूमिका में नजर आ रही राष्ट्रीय जनता दल को लग रहा है बिहार में नीतीश कुमार की वर्तमान सरकार का जाना तय है।
विपक्ष का यह दावा कि सरकार जल्दी ही गिर जायेगी और विधानसभा का मध्यावधि चुनाव होगा, यूं ही नहीं है। एनडीए के अंदर चल रहा घात -प्रतिघात विपक्ष की आशंका को बल दे रहा है।
दरअसल चुनाव परिणाम ने सत्ता का संतुलन गड़बड़ा दिया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू सहयोगी भाजपा से छोटी पार्टी बन गई है। दूसरे, भाजपा की आंतरिक संरचना भी बदल गई है। सीएम नीतीश के साथ आदर्श सहयोगी की भूमिका निभानेवाले सुशील मोदी को पार्टी ने दिल्ली भेज दिया है। उनकी जगह दो उप मुख्यमंत्री बनाकर नीतीश को दोनों तरफ से घेरने की कोशिश की गई है। नीतीश को अब भाजपा के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव के साथ डील करना पड़ रहा है। भाजपा अब बिग बॉस की भूमिका में आना चाहती है लेकिन जदयू उसे बिग बॉस मानने को तैयार नहीं। यह सब जदयू को नागवार गुजर रहा है। मूल विवाद यही है।
नीतीश कुमार की खासियत है की वे कम बोलते हैं। नपा -तुला बोलते हैं। कड़ी बात भी सामान्य तरीके से मुस्कुराते हुए बोल जाते हैं। लेकिन चुनाव परिणाम के बाद से उनके इस स्वभाव में बदलाव आया है। पहले तो वे खामोश रहे। लगा कि सदमें में हैं। फिर नयी विधानसभा के प्रथम सत्र में उनका रौद्र रूप देखने को मिला। इतने क्रोध में और इतना तीखा बोलते उन्हें पहले कभी नहीं देखा -सुना गया। उनका गुस्सा तेजस्वी यादव के खिलाफ था। इसी बहाने सहयोगी भाजपा को भी संदेश दे गये की चिराग में तेल डालना उन्हें मंजूर नहीं। वह रौद्र रूप एक तीर से कई शिकार था। अब वे खूब घूम रहे हैं और मीडिया से भी बात कर रहे हैं। अपनी चुप्पी त्याग दी है।
अभी मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर भाजपा और जदयू में छायायुद्ध चल रहा है। भूपेंद्र यादव दिल्ली से आकर अपने सहयोगियों के साथ मुख्यमंत्री से मिलते हैं। फिर भाजपा की ओर से बयान आता है कि बात हो गई है। मकर संक्रांति के बाद मंत्रिमंडल का विस्तार हो जायेगा। इसके ठीक अगले दिन मुख्यमंत्री स्पष्ट कर देते हैं कि मंत्रिमंडल विस्तार पर कोई बात नहीं हुई है। देर भाजपा की वजह से है। पहले तो एक ही बार में पूरी कैबिनेट बन जाती थी। यह सीधा -सीधा भाजपा पर हमला था।
फिर पार्टी की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में बिना भाजपा का नाम लिए उसे पीठ में छूरा भोंकने वाला और विश्वासघाती करार दिया गया । चुनाव हारे जदयू प्रत्याशियों ने साफ -साफ़ बोला कि उन्हें भाजपा ने हराया है। इसके पहले पार्टी ने हार का ठीकरा लोजपा पर फोड़ा था। लोजपा से भाजपा पर शिफ्ट होने के पीछे की रणनीति समझने की जरुरत है।
हालांकि लगे हाथ नीतीश जी यह कहने से भी नहीं चूकते की सरकार पूरे पांच साल चलेगी। लेकिन यह उठापटक अभी चलेगी। क्योंकि भाजपा अपनी बढ़ी ताकत के अनुरूप सत्ता के हर निर्णय में भागीदारी चाह रही है। वह चुप नहीं बैठेगी। अब यह जदयू पर निर्भर है की वह किस हद तक भाजपा को शेयर देती है। इसी पर मध्यावधि चुनाव का होना -न होना निर्भर करता है।