कांग्रेस बनाम भाजपा असम की जनता किसका साथ देगी???

Aanchalik Khabre
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kamla sharma
प्रधान संपादक : कमला शर्मा

ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे बसे असम राज्य का एक समृद्ध इतिहास रहा है. पूर्व में असम को ‘प्राग्‍ज्‍योतिष’ अर्थात् ‘पूर्वी ज्‍योतिष का स्‍थान’ कहा जाता था. मान्यता है की ‘असम’ शब्‍द संस्‍कृत के ‘असोमा’ शब्‍द से बना है, जिसका अर्थ है अनुपम अथवा अद्वितीय. वहीँ कुछ विद्वानों का मत है कि यह शब्‍द मूलरूप से ‘अहोम’ से बना है.

ब्रिटिश शासन में इसके विलय से पूर्व लगभग छह सौ वर्षों तक असम में अहोम राजाओं का शासन था. आस्ट्रिक, मंगोलियन, द्रविड़ और आर्य जैसी विभिन्‍न जातियां प्राचीन काल में इस भूखण्ड में बसीं थीं. विविध संस्कृति के लोगो के इस राज्य में प्रवास व शासन से असम की संस्‍‍कृति व सभ्‍यता शनैः शनैः समृद्ध होती रही.

1905 में जब अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन किया, तब पूर्वी बंगाल और असम के रूप में एक नया प्रांत बनाया गया था. जब देश का बंटवारा हुआ तो ये डर भी पैदा हो गया था कि कहीं ये पूर्वी पाकिस्तान के साथ जोड़कर भारत से अलग न कर दिया जाए. तब गोपीनाथ बोर्डोली की अगुवाई में असम विद्रोह शुरू हुआ. असम अपनी रक्षा करने में सफल रहा. लेकिन सिलहट पूर्वी पाकिस्तान में चला गया. 1950 में असम देश का राज्य बना.

राजनीतिक इतिहास :

असम में कई सियासी बदलाव हुए. वैसे तो यहाँ अधिकतम समय तक यूपीए का शासन रहा लेकिन फिर भी राज्य में समय समय पर राष्ट्रपति शासन लगता रहा व कुछ समय तक क्षेत्रीय पार्टियों ने भी असम राज्य की सत्ता संभाली. अगर संक्षेप में बात करें तो असम में कांग्रेस ने लगभग 52 वर्ष तक शासन किया. वहीँ कांग्रेस के अलावा [जनता पार्टी ने 1 साल और 269 दिन तक सत्ता संभाली]. तत्पश्चात असोम गण परिषद् लगभग 10 वर्ष तक असम की सत्ता में काबिज रही. इसके अलावा राज्य में समय-समय पर राष्ट्रपति शासन भी रहा, जिसकी अवधी लगभग 3 वर्ष तक की है. 2016 में बड़े बदलाव के साथ [पहली बार] भारतीय जनता पार्टी ने असम की सत्ता की बागडोर अपने हाथों में ली. वर्तमान समय में भारतीय जनता पार्टी से सर्बानंदा सोनोवाल असम के मुख्यमंत्री है.

उत्तर-पूर्व के सबसे बड़े राज्य असम में तीन चरणों में विधानसभा चुनाव संपन्न कराए जाएंगे. यहाँ 27 मार्च को पहले चरण में 47 सीटों पर वोटिंग होगी. इसके बाद 1 अप्रैल को 39 सीटों पर दूसरे चरण और 6 अप्रैल को तीसरे चरण में 30 सीटों पर वोटिंग होगी. और मतगणना 2 मई को की जाएगी. चुनाव के मद्दे नजर दो मुख्य दलों भाजपा और कांग्रेस के अलावा कुछ क्षेत्रीय दलों ने भी कमर कस ली है. आइये डालते है असम के चुनावी समीकरण पर एक नजर :

मुख्य रूप से बीजेपी और कांग्रेस की है कांटे की टक्कर किन्तु क्षेत्रीय दल भी मार सकतें हैं बाजी : असम में मुख्य रूप से कांग्रेस और बीजेपी की आमने-सामने की लड़ाई है. असम में कांग्रेस ने एक लम्बे समय तक सत्ता की कमान संभाली है. कांग्रेस अपने वापसी की पूरी कोशिश में लगी हुई है. वहीँ सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा भी अपनी सत्ता बरक़रार रखने के लिए सारे जतन कर रही है. राज्य में कांग्रेस-भाजपा के आगे अन्य पार्टियों का चुनावी अभियान फीका साबित हो रहा है. फिर भी कुछ क्षेत्रीय पार्टियां भी हैं जो बाजी मार सकती है.

सीएए के मुद्दे पर भिड़ेंगी बीजेपी-कांग्रेस : असम में सीएए एनआरसी का मुद्दा सबसे अहम् राजनीतिक दांव साबित हो सकता है. जहाँ एक ओर बीजेपी का कहना है कि एनआरसी सीएए से अवैध रूप से असम में रह रहे अन्य देश के नागरिको को बाहर का रास्ता दिखाया जायेगा जिससे कि राज्य का बजट पूर्ण रूप से राज्य की जनता के विकास के काम में आएगा. वहीँ दूसरी ओर राहुल गाँधी ने भाजपा और आरएसएस पर असम को विभाजित करने का आरोप लगाते हुए कहा कि उनकी पार्टी असम समझौते के हर सिद्धांत की रक्षा करेगी और अगर राज्य में कांग्रेस सत्ता में आती है तो कभी भी संशोधित नागरिकता कानून लागू नहीं किया जायेगा.

एजेपी और आरडी का गठबंधन पलट सकता है बाजी : कांग्रेस और भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती है असम की दो प्रमुख क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का गठबंधन. राज्य के प्रमुख क्षेत्रीय दलों, असम जातीय परिषद (एजेपी) और रायजोर दल (आरडी) ने घोषणा की है कि वे आगामी चुनाव एक साथ लड़ेंगे. गौरतलब हो की एजेपी और आरडी ने पूरे 126 सीटों पर लड़ने की घोषणा की है. इस गठबंधन से भाजपा व कांग्रेस को काफी नुकसान होने की संभावना है.

विकास और राष्ट्रवाद है बीजेपी का अहम् मुद्दा : बीजेपी ने जिस तरह अन्य राज्यों के चुनावो में राष्ट्रवाद और विकास को अपना अहम् मुद्दा बनाया था, ठीक उसी तरह से असम में भी राष्ट्रवाद व विकास को अपना मुद्दा बनाया है. बीजेपी का कहना है कि लगभग 5 दशक राज करने के बाद भी कांग्रेस ने असम में कोई विकास नहीं कराया, लेकिन पिछले पांच वर्षो में हमने राज्य की दशा बदली है. हम विकास और निवेश की बात करते हैं. हमारे लिए राष्ट्र व राज्यों का विकास सर्वोपरि है.

सामाजिक एकता व मुस्लिम वोटबैंक को कांग्रेस ने बनाया हथियार : असम में कांग्रेस ने सामाजिक एकता , मुस्लिम वोटबैंक व गरीबों के हितों को अपना चुनावी मुद्दा बनाया है. कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी देश को बेंचने में लगी हुई है. हम बीजेपी को उसके मंशों में कामयाब नहीं होने देंगे. कांग्रेस स्थानीय मुस्लिमो को साधने में लगी हुई है.

क्षेत्रीयता के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही हैं एजेपी और आरडी : असम की प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियां एजेपी और आरडी गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरी हैं. इन पार्टियों का अहम् मुद्दा स्थानीय भाषा, जाति व जनजाति के लोगो को समान हक़ दिलाना है. इस गठबंधन का कहना है की राज्य का विकास वही कर सकता है जो इस राज्य की भाषा, संस्कृति व यहाँ के निवासियों से परिचित हो, कांग्रेस व भाजपा को राज्य की जनता से कोई मतलब नहीं है. हम इस राज्य के हैं और जितना प्यार हमें इस राज्य व यहाँ की जनता से है उतना कांग्रेस, भाजपा या अन्य कोई पार्टी नहीं कर सकती है.

यह हैं असम के अहम् मुद्दे : असम कृषि पर निर्भर राज्य है. यहाँ के लोगो की आय का मुख्य श्रोत, चाय के बागान, चावल की खेती, फलो की बागबानी आदि है. राज्य की आय का अधिकांश हिस्सा भी कृषि पर निर्भर है. अगर बात करे आदिवासियों की तो राज्य में इनकी संख्या लगभग 40 लाख है. इन आदिवासियों की आय का श्रोत भी कृषि, बागवानी व मजदूरी ही है.

चाय के बागान व असम के आदिवासी : असम में 800 चाय बागानों में 10 लाख से ज्यादा मजदूर काम करते हैं. इसमें अधिकांश आदिवासी तबके के लोग मजदूरी करते हैं. ज्ञात रहे कि असम देश का ऐसा राज्य है जो कि देश के सालाना चाय उत्पादन में तकरीबन 52 प्रतिशत तक का योगदान देता है.

126 में से 40 सीटों पर है इन मजदूरों का प्रभाव : लगभग 3 करोड़ जनसँख्या वाले असम राज्य की कुल 126 विधानसभा सीटों में से लगभग 40 सीटों के नतीजों पर इन मजदूरों और उनके परिवारों की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है. इन मजदूरों को खुश करने के लिए राहुल गाँधी ने कहा कि कांग्रेस की सत्ता आने पर रोजाना की मजदूरी 365 रु० कर दी जाएगी. इसी बीच मजदूरों को लुभाने के लिए अभी कुछ दिन पूर्व प्रियंका गाँधी वाड्रा चाय के बागानों में मजदूरों संग काम करती दिखी थीं. वहीँ दूसरी ओर सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी ने इन 10 लाख मजदूरों को रिझाने के लिए दैनिक मजदूरी बढाकर 318 रुपये करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है.

भूमिहीन मूलनिवासियों को है सौगात की आस : असम राज्य के मूल निवासी व आदिवासियों की अधिकांश आबादी भूमिहीन व अशिक्षित है. अशिक्षा व भूमि का न होना यहाँ के मूल निवासियों की बड़ी समस्या है. इस बाबत 40 विधानसभा सीटों को प्रभावित करने वाले मूल निवासियों का झुकाव उस पार्टी की तरफ हो सकता है, जो इनके हितों की बात करेगा. फ़िलहाल पीएम मोदी ने राज्य में आगामी चुनाव को देखते हुए जनवरी में ही यहाँ के मूल निवासियों को जमीन की सौगात दी थी.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनवरी माह में शिवसागर जिले स्थित जेरेंगा पठार में रहने वाले भूमिहीन मूल निवासियों के लिए 1.6 लाख भूमि पट्टा वितरण अभियान की शुरुआत की थी . उन्होंने 10 लाभार्थियों को आवंटन प्रमाण पत्र भेंटकर इस अभियान की शुरुआत की. वहीँ कांग्रेस सरकार भी वादा कर रही है कि सत्ता पर आने के बाद कांग्रेस इन मूलनिवासियों को जमीन के अलावा अन्य मूलभूत सुविधाएँ प्रदान करेगी. ज्ञातव्य हो कि पीटीआई भाषा की 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार, असम में 5.75 लाख मूल निवासी परिवार भूमिहीन थे.

किस ओर है असम की जनता का रुख: बीजेपी सरकार द्वारा एनआरसी व सीएए की घोषणा के बाद से पूरे देश में समर्थन व विरोध का स्वर गूंजने लगा था. असम देश का पहले राज्य है जहाँ सीएए लागू करने की शुरुआत की जाने वाली थी. तो इसमें कोई दो राय नहीं की राज्य की जनता इस बात को ध्यान में रखते हुए अपना निर्णय दे सकती है. यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि असम में कांग्रेस लगातार सीएए की बात कर रही है और इसे मुद्दा बना रही है. वहीँ बीजेपी सीएए के नाम पर चुप्पी साधे बैठी है.

असम की जनता ने कांग्रेस की सत्ता भी देखी हुई है, और पिछले 5 वर्षों से बीजेपी सत्ता की कार्यशैली भी देख रही है. अब यह आने वाला समय ही तय करेगा की असम की जनता चुनावी दावों पर फिसलती है. या फिर अपने पूर्व के अनुभव के आधार पर विकास की बात करने वाली पार्टी को विजयश्री का आशीर्वाद देती है .

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