बिहार विधानमंडल : बजट सत्र पर चर्चा कम, फजीहत ज्यादा-आंचलिक ख़बरें-रवि आनंद

Aanchalik Khabre
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बिहार विधानमंडल का वर्तमान सत्र विवादों से भरा रहा। यहां न सिर्फ चर्चा का स्तर गिरता नजर आया बल्कि स्पीकर को भी कैद कर लिया गया। विधानमंडल में हमारी बातों को उठाने वाले विधायकों को मार्शल से पिटवाकर बाहर फेंका गया।
वर्तमान सत्र शुरू से ही न केवल चर्चा में रहा, बल्कि सरकार में शामिल दलों के नेता विधानमंडल में ही उलझते रहे। इस बार स्पीकर की भी टीका टिपण्णी खास देखने को मिली।

बिहार विधानमंडल की स्थापना के 100 साल पूरे होने के बाद जारी विधानमंडल में बजट सत्र अब अंतिम चरण में पहुंच चुका है। नीतीश कुमार के नेतृत्व में सातवीं बार गठित कैबिनेट में दो बार में शामिल हुए मंत्रियों के लिए ये सत्र काफी उत्साहवर्धक होना था, पर ऐसा कम ही देखने को मिला।
सदन में प्रतिपक्ष की भूमिका निभा रहे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सत्ता पक्ष को हर मुद्दे पर घेरते नजर आया। इससे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को खत्म करने के नीतीश कुमार सरकार को प्रयास को कहीं ना कहीं धक्का जरूर लगा है। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में सजा काट रहे हैं। चुनाव के दौरान ही जेल से रिहा होने की खबर से राजद को जो हिम्मत मिली थी, वो हिम्मत सदन में गठबंधन सरकार के लिए सिरदर्द बनती जा रही है।

वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा पर ही सदन की गरिमा बनाए रखने का जिम्मा है, लेकिन सत्ता पक्ष के लोगों द्वारा विपक्षी पार्टी को संरक्षण देने का आरोप झेल रहे विधानसभा अध्यक्ष पत्रकारों के भी निशाने पर आ गए हैं। चूड़ा दही भोज के माध्यम से पत्रकारों से परिचय बढ़ा रहे अध्यक्ष महोदय को सत्ता पक्ष के वरिष्ठ मंत्री ने ही खुद से सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगा दिया। शायद मंत्री जी भूल गए आसन सदन के प्रति जिम्मेदार है पार्टी के प्रति नहीं। वहीं विधानपरिषद जो उच्च सदन है अपने कार्यकारी अध्यक्ष से ही बजट सत्र पूरा करने को अग्रसर है। उच्च सदन में मुख्यमंत्री द्वारा सदन को दरकिनार करते हुए विपक्षी दल के विधान पार्षद को जहां नसीहत दे डाली, वहीं सदन में चर्चा का स्तर औसतन ही रहा। जहां एक ओर स्वच्छता अभियान, निर्माण कार्य, स्वास्थ्य के साथ जनोपयोगी वस्तुओं पर भी चर्चा औसत दर्जे की रही। वहीं जनप्रतिनिधियों और वेतन पेंशनभोगियों की समस्याओं पर सदन का ध्यान आकर्षित किया गया।
विधानपरिषद में रिपोर्टिंग के दौरान सदन में एक शब्द वेबसाइट पर उपलब्ध है, का प्रयोग कई बार किया गया। सदन की प्रक्रिया को जनता तक पहुंचाने वाले वेबसाइट पत्रकारों को ही सदन में प्रवेश से रोक दिया गया है। युवा मत्रियों से लबरेज नीतीश सरकार को जनता तक अपनी बात पहुंचाने के लिए युवा पीढ़ी के पत्रकारों से ज्यादा भरोसा पारम्परिक मीडिया के वरिष्ठ पत्रकार पर ही जताया गया है। पत्रकार और पत्रकारिता के बुरे दिन में सरकार पत्रकारों की एकता को तोड़ने के लिए इस बार कई हथकंडे अपना रही है।

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