तमाम दावों के बावजूद योगीराज में भी अपराधियों के हौसले बुलंद हैं और पुलिस की कार्यप्रणाली में कोई खास परिवर्तन नहीं दिखाई दे रहा।दूर न जाएं,केवल राजधानी की बात करें तो पुलिस के इस लापरवाह रवैये के कारण सरकार के ईमानदार छवि वाले अधिकारियों का काम करना मुश्किल हो रहा है।
बात गोमतीनगर थाने और कैसर बाग थाने की करते हैं।मदरसा दारूल उलूम वारसिया,गोमतीनगर,लखनऊ में कोई बैध प्रबन्ध समिति कार्यरत नही है।
क्योंकि इसकी कालातीत प्रबन्ध समिति के कोई नवीन चुनाव न होने के कारण दिनांक 26.12.2013 से वर्तमान अवधि तक कोई वैध प्रबन्ध समिति क्रियाशील नही है।
इस संबंध में ज़िला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी बालेन्दु द्विवेदी बताते हैं कि शरीफुल हसन द्वारा कार्यालय को गुमराह करते हुए व तथ्यों को छिपाते हुए वर्ष 2013 से वर्ष 2017 तक बिना प्रबन्धक रहते हुए कोषागार से वेतन आदि धनराशि अन्तरित किये जाने हेतु अपने हस्ताक्षर से कार्यालय को बिल प्रस्तुत किये जाते रहे हैं। यही नही अन्य विभागों से भी पत्राचार में श्री शरीफुल द्वारा स्वंय को उक्त समिति का प्रबन्धक बताया जाता रहा है।जबकि फर्म्स सोसाईटीस एवं चिट्स द्वारा वर्ष 2013 से कोई पंजीकृत समिति की सूची निर्गत ही नहीं की गई है और न ही निर्गत की जा सकती है क्योंकि उक्त प्रकरण में चुनाव प्रक्रिया मा0 उच्च न्यायालय खण्डपीठ समक्ष योजित रिट याचिका संख्या 3467 (एम0एस0)/2016 तथा रिट याचिका संख्या 3580 (एम0एस0)/2016 के अन्तरिम आदेश क्रमशः दिनांक 23.02.2016 तथा 24.02.2016 द्वारा समिति के चुनाव कार्यक्रम पर अन्तरिम रोक लगाई गई है।
चूंकि शरीफुल हसन पुत्र स्व0 कारी अबुल हसन जो कि नियमानुसार दिनांक 26.12.2013 से मदरसा दारुल उलूम वारसिया, विशाल खण्ड-4, गोमतीनगर, लखनऊ का वैध प्रबन्धक न रहते हुए भी मदरसे में कार्यरत शिक्षक एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के कोषागार से वेतनादि भुगतान कराने हेतु निरन्तर अपने हस्ताक्षर से हस्ताक्षरित बिल प्रस्तुत करता रहा था,के सम्बन्ध में प्राप्त शिकायत के आधार पर ज़िला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी बालेन्दु द्विवेदी द्वारा दिनांक 27.08.2017 को गुण-दोष के आधार पर यह आदेश पारित किया गया कि अरबी फारसी मदरसा सेवा नियमावली-2016 के धारा-12(5) के आधार पर शिक्षक/शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के वेतनादि का भुगतान किया जाएगा।
श्री द्विवेदी बताते हैं कि इसके उपरांत भी मदरसे के तमाम शिक्षक व शिक्षणेत्तर कर्मियों द्वारा उनके कार्यालय सहित अन्य अधिकारियों को शरीफल हसन के द्वारा उत्पीड़न करके आर्थिक व भौतिक लाभ प्राप्त करने की शिकायते प्राप्त हो रही थी। उक्त प्राप्त शिकयतों का संज्ञान लेते हुए उनके द्वारा शरीफुल हसन के विरुद्ध प्रथम सूचना मु0 अपराध सं0 639/2018 अन्तर्गत धारा 406, 409, 419, 420, 467, 468, 471 आई0पी0सी0 थाना गोमतीनगर, लखनऊ में पंजीकृत कराया गया।वे बताते हैं कि इस एफआईआर में मा0 उच्च न्यायालय द्वारा केवल अगली सुनवाई होने तक अभियुक्त की गिरफ्तारी पर रोक लगाई गयी है।किंतु विवेचना जारी रखने और आरोप पत्र दाखिल करने पर कोई रोक नहीं है।लेकिन इसके बावजूद गोमतीनगर पुलिस एक साल से अधिक समय बीत जाने के बावजूद प्रकरण में आरोप पत्र दाखिल नहीं कर पाई है।
ज़िला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी श्री द्विवेदी की मानें तो शरीफुल हसन और उसके साथियों द्वारा,मुकदमा पंजीकृत होने की तिथि से पेशबंदी में उनके विरुद्ध निरन्तर विविध फर्जी तथ्यों के आधार पर शिकायतें की जाती रही हैं। और श्री द्विवेदी द्वारा गोमतीनगर थाने में उनके द्वारा पंजीकृत कराये गये मुकदमें को वापस लेने अन्यथा गम्भीर मुकदमें में फँसाने की धमकी दी जाती रही है।
यही नहीं,सूत्र बताते हैं कि शरीफुल हसन के सगे साले तथा प्रतापगढ़ निवासी सजरूल इस्लाम की ओर से स्वयं को एक सामाजिक कार्यकर्ता बताते हुए श्री द्विवेदी के विरूद्ध मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, लखनऊ के न्यायालय में सी0आर0पी0सी0 की धारा-156(3) के अन्तर्गत एक वाद संख्या 897/2019 दिनांक 14.03.2019 को पंजीकृत कराया गया और श्री द्विवेदी को धमकी भी दी गई।बाध्य होकर श्री द्विवेदी द्वारा
शरीफुल हसन व उसके सहयोगियों के उद्दापन व धमकियों के विरुद्ध मु.अ0सं0 0093/2019 थाना कैसरबाग लखनऊ में पंजीकृत कराया गया।लगभग एक माह बीत जाने के बाद आज भी अपराधी पुलिस की पकड़ से बाहर हैं।
सूत्र बताते हैं कि प्रदेश में ऐसे तमाम ऐसे गिरोह सक्रिय हैं जो मदरसों में नियुक्तियों तथा चंदों के नाम पर बड़े पैमाने पर धन उगाही करते एवं कराते हैं।सरकार बदलने के बाद भी इन गिरोहों पर लगाम लगाना नई सरकार के लिए टेढ़ी खीर बना हुआ है।द्विवेदी जैसे अधिकारी इन शक्तियों से अकेले के दम पर मोर्चा खोले हुए हैं।लेकिन इनको राज्य सरकार की पुलिस का साथ नहीं मिल पा रहा है।
जब नई सरकार का गठन हुआ था तो नई उम्मीदें बंधीं थीं।लेकिन पुलिस के रवैये ने सभी प्रयासों पर पानी फेर दिया है।बदले माहौल में होना तो यह चाहिए था कि ऐसे असामाजिक एवं आपराधिक तत्वों के विरुद्ध कठोरकार्यवाही की जाती ताकि योगी सरकार निष्पक्ष एवं ईमानदार प्रशासनिक अधिकारी निर्भीक होकर अपना कार्य कर पाते।किंतु स्थानीय पुलिस के संरक्षण से ईमानदार छवि वाले अधिकारियों का काम करना मुश्किल हो रहा है।देखते हैं योगी सरकार की पुलिस कब जागती है?

