आँगनवाड़ीकर्मियों की ऐतिहासिक हड़ताल पर थोपा गया एस्मा आँगनवाड़ीकर्मियों के दमन और शोषण का नया औजार है ― शिवानी कौल
11 मार्च, नई दिल्ली आज प्रेस क्लब दिल्ली में दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन (DSAWHU) के द्वारा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया।
यूनियन की अध्यक्षा शिवानी कौल ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि हमारी यूनियन के नेतृत्व में हज़ारों आँगनवाड़ी की वर्कर एवं हेल्पर बहनों ने 38 दिनों तक हड़ताल करके एक बहादुराना एवं ऐतिहासिक संघर्ष को अंजाम दिया। 38 दिनों तक चले इस हड़ताल ने महज़ आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार और भाजपा की केन्द्र सरकार को ही चुनौती नहीं दी, बल्कि समूची पूँजीवादी व्यवस्था को भी इसने बेनक़ाब किया। तीन विशाल महारैलियों में दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों ने समूचे दिल्ली शहर सहित देश और दुनिया को अपने संघर्ष से वाकिफ़ कराया एवं उनका समर्थन भी जीता। दिल्ली सरकार और एलजी द्वारा मिलकर लगाया कि यह एस्मा कानून केन्द्रीय कानून एस्मा से जनविरोधी, मज़दूर विरोधी और मज़दूरों के हड़ताल करने और संगठित होने के अधिकार से भी वंचित करता है। यह कानून मज़दूरों से बेगारी कराने की खुली छूट देता है और उनके मौलिक अधिकारों पर हमला करता है।
असल में एस्मा की यह पूरी कार्यवाही विभाग के अफ़सरों, सुपरवाइजरों और सीडीपीओ को आँगनवाड़ीकर्मियों को प्रताड़ित करने, उन्हें निशाना बनाने और उनपर बदला लेने के तहत कार्रवाई करने की पूरी छूट देती है। और कल पूरा दिन यह देखने को भी मिला। यूनियन हड़ताल के स्थगन के बाद जैसे ही आँगनवाड़ीकर्मी पुनः नियुक्ति (जॉइनिंग) के लिए अपने-अपने सेण्टरों पर गयी तो अनेकों जगहों पर सुपरवाइजरों और सीडीपीओ के द्वारा उनसे ज़बरदस्ती माफ़ी नामे लिखवाने के प्रयास किये गये। यही नहीं अनेकों सेण्टरों पर महिलाकर्मियों से कोरे कागज़ों पर हस्ताक्षर लेने के प्रयास भी किये गये। इस तरह की हरक़तें न केवल ग़ैरकानूनी हैं बल्कि ये हरक़तें भड़काऊ भी हैं। वहीं माहिला एवं बाल विकास के नये मंत्री कैलाश गेलात भी आंगनवाड़ीकर्मियों की समस्याओं को लेकर भी घड़ियाली आंसू बहाते दिख रहे है। असल में केजरीवाल सरकार यूनियन के ‘नाक में दम करो अभियान’ से घबरायें हुए हैं। अगर मंत्री महोदय को आंगनवाड़ीकर्मियों की वाकई चिन्ता है तो तत्काल उन्हें प्रतिनिधिक यूनियन (DSAWHU) से वार्ता करनी चाहिए, विभाग को हड़ताली आंगनवाड़ीकर्मियो के टर्मिनेशन व धमकी भरे आदेशों को रद्द करना चाहिए और विभाग की सीडीपीओ और सुपरवाईजरों द्वारा माफीनामों कार्रवाई पर तत्काल रोक लगाकर, उपरोक्त अधिकारियों पर कार्रवाई करनी चाहिए।
इस हड़ताल से भाजपा की केन्द्र सरकार भी भयाक्रान्त थी और आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार की तो ऐसी छीछालेदर जनता के बीच कभी हुई ही नहीं थी। अपनी लाख कोशिशों के बावजूद केन्द्र की भाजपा सरकार और दिल्ली की केजरीवाल की आप सरकार इस हड़ताल को तोड़ने में नाक़ामयाब रहे। अन्तत:, उन्होंने अपने इस डर में ही आपसी सहमति बनाकर उपराज्यपाल के ज़रिये दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों की इस अद्वितीय और ऐतिहासिक हड़ताल पर एसेंशियल सर्विसेज़ मेण्टेनेंस एक्ट के ज़रिये छह महीने की रोक लगा दी है।
ग़ौरतलब है कि यह क़ानून केवल सरकारी कर्मचारियों पर ही लगाया जा सकता है। लेकिन सरकार तो आँगनवाड़ीकर्मियों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देती ही नहीं है! वह तो उन्हें स्वैच्छिक कार्यकर्ता मानती है, जो मानदेय पर काम करते हैं! फिर दिल्ली के उपराज्यपाल महोदय इस पर एस्मा किस प्रकार लगा सकते हैं? ज़ाहिर है, यह क़दम पूरी तरह से असंवैधानिक और ग़ैर-कानूनी है।
लेकिन आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी दोनों इस कदर भयाक्रान्त हैं कि इनका दिमाग़ काम करना बन्द कर चुका है। ये भूल गये कि आँगनवाड़ीकर्मी तो कर्मचारी हैं ही नहीं, तो फिर इन पर एस्मा कैसे लगाया जा सकता है! ये किसी भी तरह से जारी हड़ताल को रोकना चाहते हैं। इन्होंने तर्क दिया है कि चूँकि दिल्ली में बच्चों व औरतों की देखरेख के कार्य को हानि पहुँच रही है, इसलिए आँगनवाड़ीकर्मियों की हड़ताल पर एस्मा लगाया जा रहा है। लेकिन ये भूल गये कि ये 22000 आँगनवाड़ीकर्मी ख़ुद भी ग़रीब और मध्यवर्ग से आने वाली औरतें ही हैं, जिन्हें ख़ुद भी घर चलाना है। उन्हें छह-साढ़े छह हज़ार (हेल्पर के लिए) और बारह-साढ़े बारह हज़ार (वर्कर के लिए) की ख़ैरात देकर स्वैच्छिक कार्यकर्ता बोलकर काम कराना क्या जायज़ है? जब इन औरतों ने इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठायी तो भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी दोनों ने ही अपने झगड़े भुलाकर साँठ-गाँठ कर ली और उपराज्यपाल के ज़रिये हड़ताल पर छह महीने के लिए एस्मा लगा दिया। वास्तव में, इनके द्वारा आपसी मिलीभगत से एस्मा लगाया जाना इनके डर को दिखलाता है और आँगनवाड़ीकर्मियों के संघर्ष की एक बड़ी राजनीतिक जीत है। इस संघर्ष के कारण दिल्ली सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के मंत्री राजेंद्र पाल गौतम एवं विभाग के ज्वाइंट डायरेक्टर नवलेंद्र कुमार सिंह को अपनी कुर्सी भी गंवानी पड़ी। विभाग के नए मंत्री कैलाश गहलोत ने HESMA के जरिए हड़ताली बहनों से बदला लेने की भावना से प्रेरित होकर पत्र जारी कर दिया है। ऐसा लगता है मंत्री महोदय ने आन्दोलन से कोई सीख नहीं लिया है, इनका भी वही हश्र होगा जो राजेंद्र पाल गौतम का हुआ।
एस्मा लगाये जाने के बाद काम पर लौटने वाली जिन बहनों को दिक्कत हो रही है और जिन्हें फर्जी टर्मिनेशन ऑर्डर मिले हैं उनके समाधान के लिए दिनाँक 10/03/22 को यूनियन का एक प्रतिनिधिमण्ल उपराज्यपाल के पास गया। उपराज्यपाल के कार्यालय में घंटों इंतजार करवाने के बाद एक अधिकारी ने ज्ञापन लेते हुए कहा हम आपकी मांगों पर गंभीरतापूर्वक विचार करेंगे। उपराज्यपाल कार्यालय से हमारा साफ कहना था कि आप अगर केजरीवाल सरकार को बचाने के लिए हड़ताल के ऊपर एस्मा लगा सकते हैं तो आपको हड़ताल में शामिल में जिन बहनों पर विभाग प्रतिशोध की भावना से कार्यवाही करते हुए टर्मिनेशन आर्डर जारी किया है उन्हें भी आप रद्द करना होगा।
दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन इस अन्यायपूर्ण कदम का पहला जवाब इसे अदालत में चुनौती देकर देगी। यदि देश की न्यायपालिका वास्तव में स्वतंत्र और निष्पक्ष है, तो वह इस ग़ैर-कानूनी और असंवैधानिक आदेश को रद्द करेगी और हड़ताल के बुनियादी अधिकार को सुनिश्चित करेगी। यदि वह सरकार और चुनावी पार्टियों की जेब में नहीं बैठी है, तो वह या तो आँगनवाड़ीकर्मियों को नियमितीकरण कर सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने का आदेश सरकार को देगी या फिर एस्मा को रद्द करेगी क्योंकि एस्मा सरकारी कर्मचारियों पर ही लगाया जा सकता है। अगर न्यायपालिका ऐसा नहीं करती है, तो यह सिद्ध हो जायेगा कि हमारे देश की न्यायपालिका भी निष्पक्ष और स्वतंत्र नहीं है, बल्कि मुनाफाखोरों, अमीरों और सत्ताधारियों की जेब में बैठी है।
एस्मा लगाये जाने के मद्देनज़र दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन हड़ताल को फिलहाल अदालत में मसले का समाधान होने तक स्थगित कर रही है। यदि वहाँ इस निर्णय को न्यायपालिका ने पलटा नहीं तो हम एस्मा को तोड़ते हुए हड़ताल पर जाने को बाध्य होंगे। इसलिए हम केवल हड़ताल को कुछ समय के लिए स्थगित करने का निर्णय लिया। संघर्ष अब तीन नये रूपों में जारी रहेगा।
पहला, हम अदालत में कानूनी तौर पर इस असंवैधानिक व गैर-कानूनी रूप में एस्मा लगाए जाने को रद्द करवाएँगे और यदि न्यायपालिका में भी हमें न्याय नहीं मिलता तो हम एस्मा का भी नागरिक अवज्ञा द्वारा उल्लंघन करेंगे और हड़ताल फिर से शुरू करेंगे।
दूसरा, इस दौरान दिल्ली के नगर निगम चुनावों में 22,000 आँगनवाड़ीकर्मी आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी दोनों का पूर्ण बहिष्कार करेंगी, उनकी वोटबन्दी करेंगी। न सिर्फ 22,000 आँगनवाड़ीकर्मियों के परिवार इन दोनों पार्टियों को वोट नहीं देंगे, बल्कि वे पूरे शहर में भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी के खिलाफ भण्डाफोड़ आन्दोलन चलाते हुए जनता को इनकी सच्चाई से अवगत कराएँगी।
तीसरा, भाजपा और आप के नेताओं को अपने-अपने इलाकों में आँगनवाड़ीकर्मी चुनाव प्रचार के लिए नहीं घुसने देंगी। उन्हें हमारे बीच अपनी शकल दिखाने का भी कोई अधिकार नहीं है। उनका स्वागत जूतों-चप्पलों की मालाओं और कालिख से किया जायेगा।
यह बहिष्कार करना हमारा ऐसा अधिकार है, जिसे कोई एस्मा छीन नहीं सकता और न ही कोई सरकारी विभाग इसके लिए हम पर कोई कार्रवाई कर सकता है।
यदि न्यायपालिका इस असंवैधानिक और गैर-कानूनी एस्मा को रद्द नहीं करती तो हम हज़ारों आँगनवाड़ीकर्मी एस्मा को तोड़ने को भी मजबूर होंगी, क्योंकि कोई हमसे कर्मचारी का दर्जा दिये बिना मूँगफलियों के मोल गुलामों की तरह बेगार नहीं करा सकता। वास्तव में, ऐसा कराने वाली व्यवस्था और सरकार ही अन्यायपूर्ण है और अन्याय के विरुद्ध विद्रोह करना हर इंसान का जन्मसिद्ध अधिकार है, चाहे उस अन्याय को सरकार और व्यवस्था किसी कानून का हवाला देकर ही क्यों न करे। अंग्रेजों ने अन्यायपूर्ण नमक कानून बनाया था तो इस देश के लोगों ने उस कानून को तोड़कर सही किया था या ग़लत? जब ट्रेड डिस्प्यूट बिल के खिलाफ भगतसिंह और उनके साथियों ने संघर्ष का बिगुल फूँका था तो उन्होंने सही किया था या ग़लत? साफ़ है बहनों — जब अन्याय कानून बन जाये, तो विद्रोह हमारा अधिकार बन जाता है।
लेकिन पहले हम इस देश की न्यायपालिका को एक अवसर देंगे कि वह सिद्ध करे कि वह वाकई निष्पक्ष और स्वतंत्र है। या तो वह सरकार को आदेश दे कि हमें कर्मचारी का हक़ देकर हमारा नियमितीकरण करे, हमें वाजिब पे-स्केल के आधार पर वेतन दे, या फिर एस्मा को रद्द करे। केवल तब तक के लिए हम अपने संघर्ष को नये रूपों में जारी रखेंगे और हड़ताल को स्थगित करेंगे। यदि वहाँ भी न्याय नहीं मिलता, तो हमें मानना पड़ेगा कि हमारे देश में अब अन्याय ही कानून बन गया है और उसके खिलाफ़ बग़ावत करते हुए हम एस्मा को तोड़ते हुए फिर से हड़ताल को शुरू करेंगे।
तब तक भाजपा और आप का दिल्ली नगर निगम चुनावों में पूर्ण बहिष्कार और उनकी वोटबन्दी का आन्दोलन हम दिल्ली में चलाएँगी और पूरी दिल्ली की जनता को इन दोनों झूठी, बेईमान और भ्रष्टाचारी पार्टियों की असलियत से अवगत कराएँगी। यह आन्दोलन अभी से शुरू है और सारी आँगनवाड़ी बहनों ने इसके लिए कमर कस ली है क्योंकि इन दोनों ही पार्टियों की असलियत हमारे सामने नंगी हो चुकी है।