कहां से और कैसे होती है आश्रम की आवश्यकता पूरी,वर्षो से बाँट रहे हैं स्वर्ग निर्माता पृकृति पुत्र त्यागीजी-आंचलिक ख़बरें- रमेश कुमार पाण्डे

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जिला कटनी – आज तक किसी से कुछ ना मांगा ईश्वर की कृपा से जरूरतमंद लोगों को भोजन शिक्षा और संस्कार वह भी स्वयं ही पूरे कार्य चाहे वह प्रसाद बनाना हो परोसना हो या फिर बर्तन साफ करना लोग हैरान होते हुए पूछते भी है कहा से और कैसे होती है आश्रम की आवश्यकता पूरी और कहा से लाते हैं इतनी ऊर्जा
दुनिया मे अपनी सच्ची आस्था से परचम लहराने वाले कर्मयोगी पृकृति पुत्र त्यागी जी जो कि अपनी जन्मभूमि को दुनिया की सबसे पवित्र तीर्थ के साथ दुनिया का पहला ज्ञान तीर्थ और धरती पर स्वर्ग का अवतरण करने संस्कृति का संवर्धन हो इस हेतु राष्ट्र रक्षा विश्व कल्याण के भाव को समेटे लगातार अपना सम्पूर्ण जो ईश्वर से मिला है ईश्वर को ही सौंप चुके है ।
बाधाये कैसे सम्हालते हैं?WhatsApp Image 2022 03 13 at 5.10.59 PM 1
पृकृति पुत्र त्यागी जी ने सत्संग के दौरान बताया कि जैसे ही आप अपने आप को ईश्वर को सौप देते है मानव से देवता बनने की दिशा में चल पङते है और इस पवित्र कार्य में सिर्फ पवित्र विचारों ही आपके साथी होते है भीङ नही ।
भीङ को साधक नही जादूगर चाहिये
त्यागी जी ने कहा हमे न तो तन मन धन कुछ नहीं चाहिए और न ही हम कुछ देने की सामर्थ्य रखते है यही सत्य है वह परमात्मा ही पृकृति ही सबको सब कुछ देती है निमित्त कोई बन जाता है श्रेय किसी को मिल जाता है।
लाखों लोगो को भोजन, वस्र ,जूते ,चप्पल,पेन,कापी, किताब के साथ ही हर सम्भव वस्तु बाँट ही रहे है त्यागी जी
कहाँ से कैसे होता है मुझे कुछ नहीं पता मेरी सामर्थ्य तो स्वयं को भी पालने की नही है लेकिन जिस पालनहार ने दुनिया रची उसे सबकी चिंता होती है बस सत्य को न छोङे चाहे दुनिया एक तरफ़ हो और आप दूसरे तरफ यह सत्य है कि गृहस्थ जीवन मे झूठ फरेब कर जीवन यापन करना पङ सकता है लेकिन जब परमात्मा स्वतः मिल जाये तो किस चीज को पाने के लिये होङ लगाना बाकी रह जाता है ।
स्वर्ग या नरक कल्पना ही सही लेकिन कल्पना को साकार करने का अवसर मिला हमें इसके लिए ईस्वर को बारंबार नमन है कि उसने अरबों खरबो की जनसंख्या मे हमारे जैसै एक तिनके को चुना और सत्य सत्य और सत्य के मार्ग पर चलने दुनिया को इमानदारी से चलने जादूगरी से दूर रहने सच्ची साधना करने का अवसर ईश्वर की ही कृपा है ।
जहाँ समाज में कुछ लोगों ने धर्म को ही लूट का अड्डा बना रखा है वही त्यागी जी ने धर्म को स्वयं समझने के लिए संदेश देते हुए कहा कि अपनी जरूरतों को सीमित करें हमारे खर्च जितने अधिक होंगे हम उतने ही अधिक घृणित कार्य करते रहेंगे और नाम धर्म का जरूरतों का परिवार पालन का देंगे।
मुझमें कोई शक्ति नहीं जो है वह पृकृति का है यही परम सत्य है मुझसे कुछ भी पाने की चेष्टा न करें सिवाय सत्य संकल्पों के
मुझे न भीङ लगानी न चमक के पीछे भागना मुझे परमात्मा के गुणानवाद मे ही मिले इस जीवन को लगाना है यह कथन त्यागी जी के द्वारा संकल्पित होकर जनहित में संदेश हेतु ही है ।
मिले हुए जीवन के प्रत्येक पल को परमात्मा के चरणों में समर्पित कर
सेवा सुमिरण और सत्संग मे ही लगाना है चूंकि विकास और विनास दोनो साथ चलते है ।
कर्मयोगी पृकृति पुत्र त्यागी जी ज्ञान तीर्थ स्वर्ग धाम विलायत कला कटनी मध्य प्रदेश भारत

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