झाबुआ के समीप ग्राम केयडावद में गल पर्व पर, मेले मे हजारों की संख्या में पहुंचे लोग। झाबुआ जिले मैं होलिका दहन के दूसरे दिन, सदियों पुरानी परंपरा गल पर्व का त्यौहार मनाया जाता है। अपने घर में सुख समृद्धि और स्वास्थ्य संबंधी समस्या दूर करने के लिए, मन्नत धारि द्वारा ली गई. मन्नत पुरी करने के लिए यह पर्व मनाया जाता है। जिसमें मन्नत धारी गल घूमता है, इस पर्व की तैयारी होलिका दहन के 8 दिन पूर्व शुरू हो जाती है। गल पर्व पर 1 दिन का मेला लगता है, जिसने आसपास के गांव से हजारों लोग आते हैं, जिसमें ग्रामीण नाच गाकर झूले चकरी का आनंद उठाते हैं, मन्नतधारी भी मान्यता पूरी करने के लिए, यहां परिवार के सदस्यों और गांव वालों के साथ हल्दी लगाकर, दूल्हा बनकर पहुंचता है।
इस पर्व में करीब 30 फीट ऊंची लकड़ी की चौकी होती है, जिसे गल कहते हैं। गल के ऊपरी छोर पर एक लंबी लकड़ी पर, मन्नत धारी को कमर के बल रस्सी से बांधा जाता है,फिर मन्नत के अनुसार गल देवता की जयकारे लगाते हुए, एक व्यक्ति नीचे से रस्सी पकड़कर गल के चारों तरफ दौड़ता है, और ऊपर हवा में झूलते हुए, पांच से सात परिक्रमा मन्नत धारी को लगावाई जाती है। उसके बाद नीचे उतर कर, सभी परिजन, रिश्तेदार मन्नत उतारने वाले से गले मिलकर, उसके द्वारा परिवार की सुख समृद्धि और स्वास्थ संबंधी बीमारियों को, दूर करने के लिए ली गई मन्नत के लिए उनका धन्यवाद देकर खुशियां मनाते हैं।
हजारों की संख्या में लोग यहां शांतिपूर्ण मेले का आनंद उठाए, इसके लिए पुलिस प्रशासन द्वारा भी काफी सुरक्षा इंतजाम किए जाते हैं, जगह-जगह पुलिस जवान तैनात रहते हैं। सुरक्षा इंतजामों का जायजा लेने केयडावद पहुंचे, झाबुआ जिला पुलिस अधीक्षक आशुतोष गुप्ता ने बताया की, आज यहां पहुंचकर आदिवासीयो की पुरानी परंपरा गल चुल देखी आदिवासियों द्वारा अपने परंपरा के प्रति इतना लगाओ इतना सम्मान देख कर बहुत अच्छा लगा, जिस तरह से वह अपने घर की सुख समृद्धि के लिए मन्नत लेते हैं, और खुशियों के साथ मन्नत उतार कर, परंपरा को निभाते हैं, यह देख कर अच्छा लगा। यहां सुरक्षा के सारे इंतजाम किए गए हैं. शांतिपूर्ण सभी पर्व बनाएं, यही पुलिस प्रशासन का प्रयास रहता है।