जीव को संसार में परिभ्रमण करते हुए सुख भोगों का अनंत बार सेवन करने के बाद भी तृप्ति नहीं हुई । पूज्य प्रवर्तक जिनेन्द्रमुनिजी म.सा-आंचलिक ख़बरें-राजेंद्र राठौर

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झाबुआ। आत्मोद्धार वर्षावास के अन्तर्गत 3 सितम्बर शनिवार को विराट धर्मसभा को प्रेरक उदबोधन देते हुए प्रवर्तक पुज्य जिनेन्द्रमुनिजी म.सा. ने कहा कि जीव मानव संबंधी ,देव संबंधी भोगों की अतृप्ति से उसकी बार बार अभिलाषा कर महामोहनीय कर्म का बंध करता हे । मनुष्य,देव, तथा तिर्यंच संबंधी तीन प्रकार के भेाग हे । वर्तमान में जीव मनुष्य संबंधी भोग का उपयोग कर रहा है । जीव ने संसार के भोग पदार्थो का अनंत बार सेवन किया, जिस योनी में गया, वहां सेवन किया । जीव का अनादिकाल से भोग पदार्थो से संबंध रहा हे । परन्तु जीव की आसक्ति बढी है, कम नही हुई है । जिस प्रकार अग्नि में तेल,घी,पेट्रोल, लकडी, आदि ज्वलनशील पदार्थ डालते है तो अग्नि अधिक प्रज्जवलित होती है । इसी तरह जीव को संसार के पदार्थों का भोग करते करते अग्नि की तरह भोग की तीव्रता तेज होती गई, पर अभी तक तृप्ति नही हुई । आपने आगे कहा कि जीव ने, कितना अनाज खाया, कितना घी, तेल, दुध पीया, कितनी मिठाई खाई, इसका कोइ हिसाब नही है ।व्यक्ति के पास धन बढता है तो या तो वह सद्कार्य में लगाता है या बर्बा्द करता हे । सद्कार्य में लगाने वाले कम, बर्बाद करने वाले ज्यादा है । मनुष्य , मनुष्य, देव तिर्यंच संबंधी भोगो से अभी तक तृप्त नही हुआ, बार बार इनकी अभिलाषा करता हे । आजकल भोग्य पदार्थो के लिये बहुत अधिक आरंभ, समारंभ किया जााता हे । बडे भोज में खाना रात मे बनता है, कई आयटम बना कर आरंभ समारंभ बढा रहे है । जीव के मन मे दया के भाव नही आते हे । पदार्थों के पीछे आरंभ समारंभ होता है,राग द्वेष बढता है, इससे गाढे कर्म का बंध होता हे । जो कर्म बांधे, फिर उदय मे आते हे, जीव कर्म की स्थिति बढाता जाता है । जीव ने इस लोक ,परलोक संबंधी, देवगति में भी विषयो का खुब अनुभव बार बार किया, वहां भी तृप्ति नही हुई ।
जीव को कभी विरक्ति नही होती हे, छोडने का मन नही होता, जीव मर्यादा का उल्लंघन करता हे, अनंतकाल हो गये पर तृप्ति नही हुई । जीव संसार में मनुष्य संबंधी , देव संबंधी पदार्थो का भोग कर 70 कोडाकोडी सागरोपम का कर्म बंध कर संसार में भटक रहा हे । व्यक्ति यदि इन विषय भोगों का त्याग करें तो उसकी संसार के प्रति आसक्ति घटती जाती है । आपने आगे कहा जैन धर्म विशिष्ट धर्म है, यहां, त्याग का महत्व है । त्याग मेे सुख है, भोग में सुख नही है ।
व्यक्ति धन की जगह धर्म के लिए मेहनत करे तो आत्मोद्धार होगा ।। – पूज्य संयतमुनिजी म.सा. ।
धर्मसभा मे अणुवत्स पुज्य संयतमुनिजी म.सा. ने कहा कि जीव का संसार मे अनादिकाल से वास हे । कोई अफसर एक ही जगह पर लंबे समय तक टिके रहे तो समझते है,कोई लाभ का कारण होगा । जीव भी अनादिकाल से 4 गति के लाभ लेने हेतु भ्रमण कर रहा है । वास्तव में घुमने फिरने वाला लाभ बराबर नहीं हे । यदि घूमने फिरने मे ही सुख मिलता तो , घुमक्कड जाति के लोग, पशु-पक्षी, ज्यादा सुखी होते । भगवान ने जो बताया वह ज्ञान है, भगवान ने जो बताया वह वाणी सत्य है । और संसार में जीव दुःखी होता हे यह समझना है । जीव चारों गति में उत्पन्न हुआ, दुःख देखा, पर संसार की आसक्ति को छोडने का मन नही हुआ । इसका फल देख ले तो वास्तविकता पता चलेगी । जिस व्यापार में हानि होना पक्का है तो व्यक्ति व्यापार नही करता है, लाभ वाला व्यापार करता है, चक्रवर्ती भी संसार मे आसक्त होने पर नरक मे जाता हे । जीव को अपना रिजर्वेशन मोक्ष में जाने का कराना चाहिए । संसार छोेडने का मन क्यो नही होता है जबकि संसार मे वास अधोगति की दीक्षा (वास) हेै संयम में वास उर्ध्वगति की दीक्षा (वास) है ।यह समझते हुए भी जीव को संसार ही अच्छा लगता हे । ज्ञानी की बात पर विश्वास भी करे , पर माने कौन ? “हिया की उपजे नही, पर की माने नही ” यदि ये दो दुर्गुण निकल जाएंगे तो व्यक्ति में अन्य गुण अपने आप आ जाएगें । व्यक्ति को गुण बढाने का प्रयास करना चाहिये । संसार में अनेक प्रकार की दुर्दशा है, पर वैराग्य का भाव कहा आता है। । वैराग्य भी आता है, पर कहा टिकता हे ?। जीव घुम रहा है, पर सुख नही मिल रहा है । व्यक्ति को संयम के लिये 8 भव निकालना है, तथा 7 भव देवलोक के ऐसे कुल अधिकतम 15 भव ही निकालना है ,तो उसका कल्याण हो जाएगा । श्रद्धापुर्वक संयम का पालन करें तो 15 भव में उद्धार हो जाएगा । व्यक्ति नासमझ के कारण संसार छोडता नही हे । जो व्यक्ति संयम मार्ग पर चलता है, तो उसकी अनुमोदना करना अच्छी बात हे । वह दिन धन्य होगा जिस दिन में संयम ग्रहण करूंगा, ऐसी भावना आना चाहिये । आज व्यक्ति मरर्णांतिक कष्ट सह लेता है पर धन की आसक्ति कम नहीं होती हे।आज व्यक्ति धन के लिये मेहनत करता है, यदि वह धर्म के लिये मेहनत करे तो आत्मोद्धार अवश्य होगा । धर्मसभा में अनोखीलाल जी मेहता संघ अध्यक्ष पेटलावद ने सभी संत मंडल, तथा श्रीसंघ झाबुआ से क्षमा याचना की तथा सभी तपस्वियों की सुख साता पूछी । पूज्य प्रवर्तक जी का आगामी चातुर्मास पेटलावद मे कराने की विनति की । धर्म सभा में आज पेटलावद, संजेली ,दाहोद,, एवम अन्य स्थानों के दर्शनार्थी बड़ी संख्या में पधारे। तपस्या के क्रम में श्रीमती भीनी कटकानी ने 32 उपवास , सुधीर रूनवाल ने 23, कु. सोनिका बरवेटा ने 18, श्रीमती सीमा व्होरा ने 17 कुमारी आयुषी घोडावत ने 12 , संजय गांधी ,श्रीमती सीमा गांधी ने 11 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किये कु. स्नेहा कटकानी ने 8 श्रीमती पलक जैन ने 11 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किये । वर्षावास में अभी तक 11 मासक्षमण पूर्ण हो चुके है । श्रीमती शीतल कटकानी का धर्मचक्र गतिमान है । वर्षावास प्रारंभ से ही तेला तथा आयंम्बित तप की लडी सतत चल रही हे । पूरे प्रवचन का लेखन सुभाषचन्द्र ललवानी द्वारा किया गया संभा का संचालन केवल कटकानी द्वारा किया गया ।

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