भगवान महावीर स्वामी जी जन्म, जाति, ज्ञान, दर्शन ,शील में सर्वश्रेष्ठ थे।
-प्रवर्तक पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी म.सा.
आत्मो्द्धार वर्षावास के अन्तर्गत दिनांक 24 सिम्बर को विराट धर्मसभा को सम्बो्धित करते हुए प्रवर्तक पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी म.सा. ने प्रेरक विचार व्यक्त करते हुए कहॉ कि ज्ञान,दर्शन, चारित्र तीन प्रमुख आराधना है। पढना, लिखना, श्रुत ज्ञान की आराधना है। जो ज्ञान संसार से विरक्ति दिलाऍ विषय कषाय से मुक्ति दिलाऍ, वह सम्यग ज्ञान है। भगवान द्वारा बताया ज्ञान संसार से विरक्ति दिलाने वाला है। ज्ञान के अतिचारो को छोड़कर भगवान ने ज्ञान की आराधना की। देव, गुरू, धर्म पर श्रद्धा रखकर श्रद्धा को मजबुत बनाना दर्शन आराधना है। 9 तत्वो को जानकर जानने योग्य जानना, ग्रहण करने योग्य ग्रहण करना, श्रद्धा पर अटल रहना दर्शन आराधना है। गुणीयों के गुणगान करना भी दर्शन आराधना है। साधु साध्वी, श्रावक, श्राविका, अरिहंत, सिद्ध भगवान के गुणगान, भाव पूर्ण प्रशंसा करना, स्तुति करना दर्शन आराधना है। गुणगान करने से आत्मा की सम्यकत्व निर्मल होती है। आपने आगे कहॉ कि व्रतो, नियमो का दृढता पूर्वक पालन करना चारित्र आराधना है। आपने भगवान के गुणो के बारे में बताते हुए कहॉ कि मेरू पर्वत जो पृथ्वी के मध्य स्थित है, सूर्य के समान तेज वाला प्रतीत होता है, प्रकाशमान है। सूर्य उदय होता है तो उसका प्रकाश दसो दिशाओं को प्रकाशितकरता है। सूर्य का प्रकाश एक हजार योजन तक नीचे फैलता है, तथा कुल 1900 योजन तक प्रकाशित करता है,। भगवान राजा के समान बीच में सिंहासन पर बैठते थे, आस पास साधु साध्वी , श्रावक, श्राविका की बैठक होती थी। भगवान के अनंत ज्ञान से सारा लोक आलोकित, प्रकाशवान होता था। भगवान जन्म, जाति, ज्ञान, दर्शन, शील में सर्वश्रेष्ठ थे। भगवान जन्म से ही पूर्वभव के अर्जित गुण लेकर आऍ थे। साधु बनते है तो उच्च् गौत्र का उदय होता है। किसी के गुणगान स्तुति करते है तो उस गुणवान आत्मा को देखकर, सुनकर उनके प्रति अहोभाव बढते है। उसमें तल्ली्न हो जाऍ तो जीव तीर्थंकर नाम कर्म का बंध करता है। भक्ति करने से दुसरे जीव जो अज्ञानी है, उनका भी भक्ति भाव बढता है। आपने आगे बताया कि निषध पर्वत लम्बा्ई में सबसे बड़ा है तथा रुचल चक पर्वत गोलाई में श्रेष्ठ है, वैसे ही भगवान की प्रज्ञा लंबी तथा आगे की सोच वाली थी। अपनी प्रज्ञा से मुनियो के बीच में भगवान श्रेष्ठ थे। वे प्रकृष्ठ पूण्य के स्वामी थे। भगवान मर्यादावान थे, कभी भी मर्यादा का उल्लघंन नहीं करते थे,जैसा कथन करते थे, वैसा पालन करते थे। उत्तम श्रेष्ठ पुरूष कभी भी मर्यादा का उल्लघंन नहीं करते है। पूज्य गुरूदेव ने श्रीमती सीमा गांधी के 31 उपवास की खुब अनुमोदना करते हुए उन्हे तथा उनके परिवार को धन्य वाद दिया। आज की धर्म सभा में आश्चर्य जनक प्रसंग उस समय उपस्थित हुआ जब बागली (देवास )नगर के युवा श्री सुयशजी पिता मनोज जी बोथरा ने आजीवन ब्रह्मचर्य के प्रत्याख्यान ग्रहण किए पूज्य श्री ने इनको धन्यवाद देते हुए कहॉ कि ब्रह्मचर्य घोर तप है, यह सभी तपो में श्रेष्ठ है। श्री सुयश जी अपने पिता के अकेले अविवाहित पुत्र है।
भगवान महावीर स्वामीजी तथा साधुजी हमारे कल्याण मित्र है ।
– पूज्य संयत मुनिजी म.सा.
धर्म सभा में पूज्य अणुवत्स संयत मुनि जी म.सा.ने कहॉ कि भगवान महावीर स्वामीजी हमारे कल्याण मित्र है। सभी साधु भी कल्याण मित्र है। जो कल्याण में सहायक हो वह मित्र है । भगवान भी हमारे कल्याण में सहायक है। हमने पूर्व के कई भवो में भगवान से भी शत्रुता अवश्य. की होगी। भगवान तो शत्रुता छोड़कर मोक्ष पधारे ,पर हम शत्रुता के कारण संसार में भ्रमण कर रहे है। भगवान ने सभी जीवों से शत्रुता छोड दी। जीव किसी के भी प्रति शत्रुता द्वेष, करता है, तो उसका स्वयं का बिगडता है। जीव द्वेष में बंधा हुआ है। शत्रुता पाल के रखी यही बंधन है। जब तक शत्रुता समाप्त नहीं होगी तब तक जीव बंधता रहेगा। जिससे शत्रुता है, उससे जीवन भर नहीं बोलूँगा तो, जीवन भर के लिए बंधन हो गया। अगले भव में कोई निमित्त मिले तो शत्रुता छुटे, अन्यथा शत्रुता भव-भव तक रहेगी। खिलाडीयो, भाई- भाई, माता-पिता, पिता-पुत्र, नेताओ के प्रति भी द्वेष होता है, जब तक द्वेष के बंधन टूटे नहीं तब तक जीव संसार में परिभ्रमण करता रहेग। तिर्यंच के प्रति भी द्वेष होता है, कुत्ता जब भौंकता है तो उसे लकडी, पत्थर से मारते है। द्वेष का बंधन खतरनाक है। देवगति के देव के प्रति भी द्वेष होता है। नरक के जीव के प्रति भी द्वेष है, फिर उनसे लडने वहॉं जाना पड़ता है। द्वेष के निमित्त संसारी को ज्यादा मिलते है, साधु को कम। संसारी को राजी रखना पड़ता है। साधु को किसी से भी राग द्वेष की संभावना प्राय: नहीं होती है। गृहस्थ राग द्वेष में उलझा हुआ है। आपने आगे पूज्य आचार्य धर्मदास जी के बारे में बताया कि पूज्य श्री के बचपन के संस्कार आगे भी चले, पढने के लिये उनको गुरूकुल भेजा, पढाई के साथ वे चिंतन भी करते थे। सूर्य उगता है तो अस्त् होता है। क्या मेरा जीवन भी अस्त होगा, ऐसा चिंतन करते थे। वैराग्य की भावना चिंतन करने से आती है। गुरूकुल मे गुरू के प्रति विनय भाव रखते थे। गुरू भी उनसे खुश थे। गुरू खुश हो तो विशेष ज्ञान देते है। लोकोत्तर गुरू खुश हो तो भव-भव का बेडा पार कर देते है। माता-पिता के चरण स्पर्श करते है, तो अन्तर मन से आशीर्वाद देते है। वे सभी संतो, बड़ो से धर्म ज्ञान की चर्चा करते थे, आपने आगे कहा कि सीमा जी गांधी ने मासक्षमण की उग्र तपस्या की है, जिसकी अनुमोदना करते है, यह तपस्या उनके जीवन में कल्याणकारी बने, पूज्य सुहास मुनिजी म.सा. ने तपस्या पर सुन्दर गीत गाया ।गोधरा संघ द्वारा पूज्य गुरूदेव के 2025 के चार्तुमास की विनती की।
आज धर्मसभा में गोधरा, रावटी, बागली, सुवासरा, वासदा,पेटलावद, उज्जैन, मेघनगर से दर्शनार्थी दर्शन हेतु पधारे। श्रीमती सीमा गांधी का मासक्षमण आज पूर्ण हुआ। उनकी तपस्या का बहुमान सुजानमल कटकानी ने वर्षीतप की बोली लगा कर किया। संघ के 10 तपस्वी उपवास, एकासना, निवि तप से वर्षीतप की आराधना कर रहे है। वर्षावास प्रारम्भ से ही निरंतर एकासना, तेला,आयंबिल तप की लड़ी चल रही हे । पूरे प्रवचन का लेखन सुभाष चंद्र ललवानी द्वारा किया गया । सभा का संचालन प्रदीप रूनवाल ने किया ।