राजेंद्र राठौर
हिंदी साहित्य भारती मप्र द्वारा इंदौर में ‘‘साहित्य में समरसता’’ विषय पर प्रादेषिक सम्मेलन का हुआ आयोजन, झाबुआ जिले से भी साहित्यकारों ने की सहभागिता, किया गया सम्मानित
झाबुआ। हिंदी साहित्य भारती मप्र द्वारा श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति इंदौर में संत श्री रविदासजी की जयंती पर ‘‘साहित्य में समरसता’’ विषय पर विमर्श के साथ चार सत्रों में प्रादेशिक सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें प्रथम संगठनात्मक सत्र में हिंदी साहित्य भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रविन्द्र शुक्ल एवं संगठन महामंत्री डॉ. रमा सिंह के साथ प्रदेश अध्यक्ष डॉ. स्नेहलता श्रीवास्तव, संगठन महामंत्री गोपाल माहेश्वरी, महामंत्री नरेंद्र व्यास एवं महाकौशल, प्रांताध्यक्ष प्रणय श्रीवास्तव तथा मध्य भारत प्रांताध्यक्ष दिनेश बिरथरे सहित बड़ी संख्या में प्रतिनिधि उपस्थित रहे।
डॉ. शुक्ल ने अपने मार्गदर्शन में कहा कि हमें व्यक्तिगत लाभों से उठकर सृजन का ऐसा मार्ग चुनना चाहिए जो भारतीय संस्कृति की पुनः प्रतिष्ठा कर सके, जब तक हम बौद्धिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होंगे, तब तक आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना साकार नहीं हो सकती। इसी उद्देश्य से ही हिंदी साहित्य भारती का गठन किया गया है। आपने सभी से हिन्दी साहित्य भारती के एप से जुड़ने और अन्य मित्रों को भी जोड़ने का आग्रह किया। वहीं दोनों प्रांताध्यक्षों ने अपने वृत्त तथा आगामी योजना से सदन को अवगत कराया। राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. शुक्ल ने मार्च तक सभी जिलों में इकाइयों का गठन करने तथा जून तक प्रांत सम्मेलन आयोजित करने के निर्देश दिए। डॉ. रमा सिंह ने भी महामंत्री संगठन के रूप में संगठन कौशल पर चर्चा की। संत रविदास और समरसता पर केंद्रित कार्यक्रम के दूसरे सत्र में कार्यक्रम संयोजक डॉ. स्नेहलता श्रीवास्तव ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि समरसता जीवन के हर क्षेत्र में आवश्यक है। आज साहित्य और समरसता दोनों की ही चुनौतियां अधिक जटिल हो गई है,इसीलिए आवश्यक है कि समरसता के मानदंडों और प्रतिमानों का आधुनिक संदर्भों में मूल्यांकन करें। आज विचारणीय बिंदु यह है कि हम कैसे समाज को संस्कार रूप में समरसता दे सकते हैं ?
समरसता भारतीय संस्कृति की धमनियों में बहता हुआ रक्त है
साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे ने अपने विचार रखते हुए कहा कि समरसता भारतीय संस्कृति की धमनियों में बहता हुआ रक्त है। आज समस्या यह है कि आधुनिक युग में समरसता को जातीय समरसता तक सीमित कर दिया है। सारे पंथ के लोग भारत की मिट्टी को एक मानने लगे है, यही समरसता है और यही भाव समृद्ध भारत के विकास का मार्ग है। मप्र लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष डॉ. राजेशलाल मेहरा ने कहा कि भारत का अर्थ ही है समरसता भारत जहै। लोक साहित्य सभी शास्त्रों को जीवन में उतारने का कार्य करता है, जो साहित्य समरसता न हो, वह साहित्य ही नहीं है। सत्र की अध्यक्षता कर रहे डॉ. धर्मेंद्र सरल शर्मा ने श्रीकृष्ण सरल के साहित्य की समरसता से सदन को परिचित करवाया।
किया गया सम्मान
अंतिम चतुर्थ सत्र में साहित्यकार डॉ. रविन्द्र शुक्ल, डॉ. विकास दवे और डॉ मुरलीधर चांदनीवाला को साहित्य शिरोमणि सम्मान से अलंकृत किया गया। इस दौरान झाबुआ से डॉ. जया पाठक, थांदला, डॉ.कला जोशी इंदौर एवं डॉ. चित्रा जैन उज्जैन को इकाई अध्यक्ष के अति सक्रिय कार्यकाल के लिए ‘‘साहित्य सेवी सम्मान’’ से सम्मानित किया। डॉ. जय बैरागी झाबुआ, कर्नल डॉ. गिरिजेश सक्सेन , घनश्याम मैथिल ‘अमृत’, डॉ. मीनू पांडेय, अशोक मनवानी, डॉ अर्जुन दास खत्री भोपाल, मीरा जैन उज्जैन, डॉ. ममता चंद्रशेखर व अजय जैन ‘विकल्प’ इंदौर आदि को साहित्य भारती गौरव सम्मान से नवाजा गया। कार्यक्रम में अतिथि परिचय डॉ. गीता दुबे, विजय सिंह चैहान तथा मधुलिका सक्सेना भोपाल द्वारा दिया गया । कार्यक्रम का सुंदर संचालन डॉ. कला जोशी, श्रीमती रश्मि बजाज एवं श्रीमती रजनी झा ने किया । अंत में संगठन महामंत्री गोपाल माहेश्वरी ने सभी का आभार माना।