राजेंद्र राठौर
सफलता की कहानी
झाबुआ, सुनीता की शादी 2007 में रानापुर विकासखंड के ग्राम खडकुई में हुई। संयुक्त परिवार होने के बावजूद भी घर की आर्थिक स्थिति इतनी कमज़ोर थी की परिवार के सभी पुरुषो को मजदूरी करने पलायन पर जाना पड़ता था। कभी-कभी त्योहारों पर साहूकार से ज्यादा ब्याज दर पर ऋण लेना पड़ता था। जिसे चुकाने के बाद सुनीता के पास कोई बचत नहीं होती थी। जैसे-जैसे समय निकल रहा था, परिवार की जरूरते भी बढ़ रही थी, जैसे बच्चो को अच्छी शिक्षा दिलवाना, पक्का घर बनाना। सुनीता इन परिस्थितियों से बाहर निकलना चाहती थी, लेकिन परिवार के लिए चाह कर भी कुछ नहीं कर पाने के कारण वे खुद को बहुत कमजोर एवं असहाय समझती थी।
सन् 2011 में सुनीता म.प्र. – डे राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ी। सुनीता ने बताया की हमारे गाँव में आजीविका मिशन द्वारा बैठक का आयोजन किया गया था, जिसमें मैं और मेरे पति शामिल हुए, बैठक में हमें समूह संचालन की विस्तृत रूप से जानकारी मिली, सुनीता ने आस-पास की 10 महिलाओं को जोड़कर ‘‘महारानी तेजकुंवर महिला बचत समूह“ का गठन किया। समूह से जुड़कर सुनीता ने हस्ताक्षर करना सीखा पहले कभी सुनीता बैंक नहीं गई थी, अब वे स्वयं बैंक जा कर अपने काम कर लेती है, धीरे- धीरे समूह की बैठक में शामिल होने से सुनीता को कई योजनाओं की जानकारी मिलने लगी।
समूह की बैठक से ही एक बार उन्हें ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (RSETI) द्वारा चलाये जा रहे उद्यमी विकास कार्यक्रम की जानकारी मिली, जिसमे उन्हें 45 दिन की किराना दूकान प्रशिक्षण के बारे में बताया, आजीविका मिशन के माध्यम से सुनीता को झाबुआ RSETI भवन भेजा गया जहाँ उन्हें किराना दुकान व्यवसाय करने पर पूरी समझ बनाई गई। सुनीता को RSETI से प्रशिक्षण लेने के प्रमाण पत्र एवं मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के अंतर्गत 50 हजार का ऋण प्राप्त हुआ जिसमें उन्हें 10 हजार तक की सब्सिडी मिली, ऋण लेकर सुनीता ने अपने गाँव में किराना दूकान खोली, इसी प्रकार RSETI के माध्यम से सुनीता के पति ने भी पेंटिंग का प्रशिक्षण प्राप्त किया.
और अपने विकासखंड के क्षेत्र में ही पेंटिंग का कार्य करने लगे, अब उन्हें पलायन पर नहीं जाना पड़ता, गाँव में रहकर की सुनीता एवं उनके पति की आय 20 हजार से 25 हज़ार तक हो जाती है। सुनीता ने अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा दिलवाने के लिए प्राइवेट स्कूल में भरती करवाया है। सुनीता ने समूह से 15000 रू का ऋण लेकर सिलाई भी खरीदी है। किराना दुकान के साथ-साथ वे सिलाई का काम भी करती है। समूह से जुड़ने के बाद सुनीता ने एक आत्मनिर्भर और सशक्त महिला के रूप में मिसाल कायम की है। सुनीता अपने जीवन के इस व्यापक बदलाव के लिए आजीविका मिशन को धन्यवाद देते हुए कहती है, “पहले गाँव में मुझे कोई नहीं जानता था, समूह से जुड़ने के पूर्व में एक आम गृहणी की तरह जीवन की परेशानियों से जूझ रही थी विशवास नही था की गाँव में मैं अपनी एक अलग पहचान बना पाउंगी, सिर्फ मैं ही नहीं गाँव की सभी माहिलाये आज समूह के माध्यम से अपनी बात एवं परेशानियॉ एक दुसरे से बाँट कर हल कर पाती है, इस बदलाव के लिए मैं आजीविका मिशन को धन्यवाद देती हुॅं।