मन का मयूर नाचा,जबसे है सावन आया।
जबसे है सावन आया,मन का मयूर नाचा।।
चातक पपीहा बोले, हौले से मनवा डोले।
सारी प्रकृति सजी है, धानी चूनर है ओढ़े।
नदियों ने नीर छलकाया,
जबसे है सावन आया।।
ये कारे कारे बदरा,जैसे भीगा-भीगा कजरा।
चमकती है बिजुरिया,माथे की जैसे बिंदिया।
धरती पर यौवन छाया,
जबसे है सावन आया।
सूरज भी छिप कर निकले,जैसे लजा रहा हो।
चंदा भी सहमा-सहमा, घूंघट में छिप रहा हो।
अंबर ने ढोल बजाया,
जबसे है सावन आया।।
मन का मयूर नाचा, जबसे है सावन आया।
जबसे है सावन आया, मन का मयूर नाचा।।
रश्मि पांडेय शुभि