श्री Vaidyanath ज्योतिर्लिंग को मनोकामना ज्योतिर्लिंग के नाम से भी जाना जाता है
निसिंग। निसिंग, करनाल और अम्बाला से श्रद्धालुओं की एक बस बुधवार को जगन्नाथ मंदिर में दर्शन करने के बाद झारखंड में श्री Vaidyanath के दर्शन किए। भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री Vaidyanath शिवलिंग को 9वां ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग झारखंड में वह ऐसा देवघर नाम की जगह पर स्थित है।
यहां स्थित ज्योतिर्लिंग को मनोकामना ज्योतिर्लिंग के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। सावन के महीने में यहां पर मेला भी लगता है। शिव ने रावण से कहा कि आज से मेरी पूजा-अर्चना के बाद जो कोई अंगूठे से स्पर्श करेगा उसका पूजा सफल होगा।
इसके बाद रावण ने शिव की यहां पूजा-अर्चना की और तब से Vaidyanath की पूजा अर्चना के बाद अंगूठे से शिवलिग को दबाने की परंपरा चली आ रही है। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने वाले भक्त की मनोकामना पूरी होती है। इस दौरान श्रद्धालु कांवड़ में पवित्र गंगाजल भरकर यहां लाते हैं और भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं।
झारखण्ड राज्य के पूर्व में संथाल परगना में स्थित Vaidyanath मंदिर जिसे Vaidyanath के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा एक मंदिर है जिसे समस्त ज्योतिर्लिंगों की गणना में नौवां स्थान प्राप्त है। वैद्यनाथ में ज्योतिर्लिंग स्थित होने के कारण इस जगह को हम देवघर के नाम से भी जानते हैं। ऐसी मान्यता है कि श्री Vaidyanathज्योतिर्लिंग के दर्शन व पूजन से रोगों से मुक्ति मिलती है।
इस वजह से Vaidyanath मंदिर में मौजूद शिवलिंग़ को कामना लिंग भी कहा गया है
इस वजह से Vaidyanath मंदिर में मौजूद शिवलिंग़ को कामना लिंग भी कहा गया है।यहां की सबसे ख़ास बात यह है कि यह ऐसा स्थान हैं, जहां शिव और शक्ति दोनों एक साथ विराजमान हैं। दरअसल देवघर में ज्योतिर्लिंग होने के साथ-साथ शक्तिपीठ भी है। मान्यता है कि यह वही स्थान है, जहां माता सती का ह्रदय कट कर गिरा था। यानि यहां भक्तों को शिव और शक्ति दोनों के एक साथ दर्शन करने का लाभ मिलता है। एक बार रावण ने हिमालय में भगवान शिव की घोर तपस्या की।
इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने रावण को दर्शन दिया और वर मांगने को कहा। इस पर रावण ने कहा कि आपको मेरे साथ लंका चलना होगा। लेकिन भगवान शिव ने शर्त रखी कि मैं तुम्हारे साथ लंका चलने के लिए तैयार हूँ, लेकिन तुम्हे मुझे उठाकर ले जाना होगा और अगर मार्ग में कहीं रखा तो मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा।
भगवान शिव की शर्त मानकर रावण ज्योतिर्लिंग लेकर लंका की तरफ चल दिया। दूसरी तरफ देवी-देवता इससे चिंतित होकर भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे। इस पर भगवान विष्णु ने वरुण देव को आचमन कर रावण के पेट में जाने का आदेश दिया। इससे रास्ते में ही रावण को जोर से लघुशंका आई।
ऐसे में रावण ने ज्योतिर्लिंग को एक अहीर को दिया और खुद लघुशंका करने चला गया। लेकिन शिवलिंग भारी होने के कारण अहीर ने उसे वहीं भूमि पर रख दिया। इस तरह यह ज्योतिर्लिंग वहीं स्थापित हो गया।
इसके बाद रावण ने वापस ज्योतिर्लिंग को उठाने की कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हुआ और खाली हाथ लंका लौट गया। इसके बाद ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र सहित अन्य देवी-देवताओं ने वहां पहुंचकर ज्योतिर्लिंग की पूजा-अर्चना की।
जोगिंद्र सिंह, निसिंग
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