ये साधारण सी बात है , जब पता लगे की श्रऋधांजलि उन लोगों ने दी जो असहाय है और कमजोर हैं। जो कुछ कर भी नहीं सकते नारी के सम्मान के लिए,
लेकिन तब कैसा लगेगा, जब ये बात सामने आए की कुछ इसे लोग , जो समाज को एक दिशा देते है, जो जनता का प्रतिनिधित्व करतें हैं उनके सवालों, आशाओं, मांगों को सरकार के सामने रखते हैं साथ ही सरकार को उसका आयना दिखाते हैं , ने भी सिर्फ़ मोमबत्ती जलाकर उनकी ॐ शांति कर दिया, और पल्ला झाड़ लिया…… बस बाकि कुछ नही
मानता हूँ की पत्रकारों को भी इसका बेहद दुःख है। यहाँ तक की द टाईम्स ऑफ़ इंडिया की महिला पत्रकार भी इस हमले का शिकार हो गयीं। अगर हम पत्रकारों को भी इतना दुःख है तो उनके पास तो लेखनी की सबसे बड़ी ताकत है तो क्यों नही उसका इस्तेमाल करते? और सिस्टम के गलियारों की गंदगी को सामने लाते ? उनको जनता जरूर जवाब देगी चुनाव मैं लेकिन असल बात तो यह है
भारत देश मैं मुर्दों पर राजनीति होती है देश में गांधी गोडसे के नाम पर संसद में रोते रहते हैं जिनके बारे में आज की युवा पीढ़ी इतिहास ही नहीं जानती है ना ही कभी इतिहास में पढ़ाया गया है क्यों हमारे देश के नेता गांधी गोडसे के नाम पर रोते हैं आज जो देश में हो रहा है किसी सांसद विधायक ने इस ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया है ।
शायद सब चाहते हैं की सब लोग मोमबत्ती जलाकर शोक प्रकट कर रहे हैं तो क्यों न रूपये-दो रूपये की मोमबत्ती जलाओ और शोक प्रकट कर दो। कल फिर ओर किसी बहन के साथ ऐसा होगा तो असहाए समाज की तरह फिर कुछ मोमबत्तियां वे “हाथ” जला देंगे जो समाज का आईना अपने पास रखते हैं, जो रखते हैं होंसला समाज बदलने का।
एक बात मेरी बिल्कुल समझ में नही आई कि अगर मेरे हिंद के लोग इतने दुखी हैं तो वो मोमबत्ती जलाकर कैमरे कि तरफ़ मुह किए हुए क्यों थे ? क्या वे अपना दुःख जमाने को दिखना चाहते थे या फिर उस बहन के परिवार वालों को? कि ये देखो हमें भी दुख है
कम से कम कोई एक व्यक्ति तो इधर-उधर खड़ा होता ! रही बात कैमरामैन कि तो वह तो ख़ुद-ब-ख़ुद सबको कवर कर लेता।
मैं सच कहूं तो उनके दुःख को समझ नहीं पाया लोगों कि मोमबत्तियां तेज़ हवा मैं बुझ रही थी, लेकिन उनका उस दुःख माध्यम कि तरफ़ ध्यान न होकर दुःख को कैमरे में दिखाने के प्रति ज्यादा था। मुह कैमरे कि तरफ़ करे खड़े हुए थे ? अगर हेंडसम और ब्यूटीफुल चेहरे आ भी गए तो बुझी मोमबत्ती से क्या दुःख खाक नजर आयेगा ?
मोमबत्ती जलाकर शान्ति नही मिलेगी। दुष्कर्म इसलिए हुए हैं की समाज समझ सके की ” हमने अपनी जान दी तुम्हारे लिए दी, और अब तुम वोट दो ‘हमारे ‘लिए ……..”। कोई बहन ये नही कहती कि हमारे साथ जो हुआ उसकी शहादत में मोमबत्तियां जलाई जायें , वो सिर्फ़ इतना चाहती है कि मेरे साथ हुए दुष्कर्म के अपराधियों को जड़ से उखाड़ फैका जाए ताकि अगली बार कोई इतनी घिनोनी हरकत ही न करे , कभी माँ ओं कि गोद सूनी न हों, बच्चे अनाथ न हों, ……..
शायद मैं ही ग़लत हूँ । ये भी तो हो सकता है, कि मोमबत्ती के साथ दांत बतातें हुए दिख जाए बस…… बाद मैं मोमबत्ती जलाकर दुःख प्रकट करते रहेंगे ।
क्या मोमबती पकड़े और अपना चेहरा टीवी पर दिखाना जरूरी है? जिसे दुःख होगा वो अपने को tv पर कभी नही दिखना चाहेगा क्योंकि वो नही चाहेगा कि मेरे दुखी चहरे को देख कर लोग और दुखी हो जायें
इसलिए मोमबती जलाना बन्द करो जमीन पर उतरकर ऐसे मामलों का सामना करो
ना कि मोमबती जला कर शोक प्रकट
जय श्री राम 🚩
ज्ञान प्रकाश शर्मा
खरगोन बड़वाह म, प्र,