Mahakumbh 2025:: किन्नर अखाड़े में बवाल! ममता कुलकर्णी विवाद से हड़कंप

News Desk
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प्रयागराज महाकुंभ 2025 से जुड़ी कई खबरें देशभर में चर्चा का कारण बनी हुई हैं। इनमें सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरने वाला मामला अभिनेत्री ममता कुलकर्णी को किन्नर अखाड़े में महामंडलेश्वर बनाए जाने का रहा। इस निर्णय से किन्नर अखाड़े में विवाद खड़ा हो गया। अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी और संस्थापक ऋषि अजय दास के बीच टकराव पैदा हो गया। अन्य संतों ने भी इस फैसले का विरोध किया, जिससे विवाद और गहरा गया।

मामले के तूल पकड़ने पर ऋषि अजय दास ने ममता कुलकर्णी और लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी, दोनों को पद से हटा दिया। हालांकि, इस पर भी असहमति बरकरार रही। लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने इस फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि अजय दास को उन्हें हटाने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि 2017 में उन्हें ही अखाड़े से निकाला जा चुका था। उन्होंने आरोप लगाया कि अजय दास स्वार्थी उद्देश्य से ऐसा कर रहे हैं। वहीं, अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी ने लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी का समर्थन किया और अजय दास के अखाड़े में अधिकारों पर सवाल उठाए।

किन्नर अखाड़ा, जो आज सुर्खियों में है, महज नौ साल पुराना है। 13 अक्टूबर 2015 को इसकी स्थापना हुई थी, लेकिन इसे स्थापित करने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा। किन्नर समाज को समाज में समानता का दर्जा नहीं प्राप्त था और उनके साथ भेदभाव किया जाता था।

15 अप्रैल 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (NALSA) के ऐतिहासिक फैसले में ट्रांसजेंडरों को कानूनी अधिकार दिए। इस निर्णय ने किन्नर समाज को नई उम्मीद दी। इसके बाद लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने किन्नर अखाड़े की स्थापना का निर्णय लिया।

अप्रैल 2016 में उज्जैन सिंहस्थ कुंभ का आयोजन होना था। इसी दौरान लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने सरकार को पत्र लिखकर सिंहस्थ में किन्नर अखाड़े का कैंप लगाने की अनुमति मांगी। यह खबर फैलते ही अन्य अखाड़ों के संतों ने विरोध शुरू कर दिया। लेकिन अंततः किन्नर अखाड़े को सिंहस्थ 2016 में स्थान मिल गया। 22 राज्यों से आए किन्नर संतों ने इसमें भाग लिया और लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को आचार्य महामंडलेश्वर की गद्दी सौंपी गई।

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प्रयागराज महाकुंभ 2025 में किन्नर अखाड़ा

किन्नर अखाड़ा प्रयागराज महाकुंभ 2025 में भी शामिल है। इसका कैंप सेक्टर 16 में लगाया गया है, जबकि अन्य 13 अखाड़ों के शिविर सेक्टर 12 में हैं। तकनीकी रूप से किन्नर अखाड़ा जूना अखाड़े में विलय हो चुका है, जिससे अखाड़ों की कुल संख्या 13 रहती है। लेकिन ऋषि अजय दास का दावा है कि जूना अखाड़े के अनुबंध में ‘किन्नर अखाड़ा’ का नाम शामिल किया गया है, जिससे यह 14वां अखाड़ा माना जाना चाहिए।

सिंहस्थ 2016 में भले ही किन्नर अखाड़े को स्थान मिल गया था, लेकिन अखाड़ा परिषद ने उनके शाही स्नान पर आपत्ति जताई थी। इसके जवाब में किन्नर अखाड़े के संतों ने खुद को ‘उपदेव’ बताते हुए शाही स्नान किया। 2019 में प्रयागराज अर्धकुंभ में भी शाही स्नान को लेकर विवाद हुआ, जिसे जूना अखाड़े के समर्थन से सुलझाया गया।

ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर बनाने पर ऋषि अजय दास ने आपत्ति जताई। उनका कहना था कि बिना पूर्व सूचना के यह निर्णय लिया गया, जबकि ममता कुलकर्णी पर कई गंभीर आरोप हैं। उन्होंने किन्नर अखाड़े के संतों पर सनातन संस्कृति का पालन न करने और सोशल मीडिया प्रसिद्धि के लिए कुंभ में आने का आरोप लगाया।

वहीं, लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को समर्थन देते हुए अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी ने कहा कि अजय दास को परिषद नहीं मानती। किन्नर अखाड़ा शैव संप्रदाय से जुड़ा है। इनके इष्ट देव अर्धनारीश्वर और इष्ट देवी बहुचरा माता हैं। बहुचरा माता का प्रसिद्ध मंदिर गुजरात के मेहसाणा में स्थित है, और किन्नर संत किसी भी धार्मिक अनुष्ठान से पहले इनकी पूजा करते हैं।

किन्नर अखाड़े के संतों में विविधता देखी जाती है। कुछ साधु भगवा वस्त्र धारण करते हैं, धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करते हैं, और सन्यासी जीवन जीते हैं। कुछ साध्वियां सफेद वस्त्र पहनती हैं और धार्मिक गीतों का गायन करती हैं। वहीं, कुछ संत पारंपरिक नियमों से हटकर अपने अनुसार वस्त्र पहनते हैं।

किन्नर अखाड़े का वैश्विक विस्तार

किन्नर अखाड़े की संस्थापक लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने का संकल्प लिया है। बैंकॉक, मलेशिया, सिंगापुर, सेंट फ्रांसिस्को, हॉलैंड, फ्रांस और रूस सहित 200 से अधिक ट्रांसजेंडर संत इस अखाड़े से जुड़ चुके हैं। कई विदेशों में भी किन्नर अखाड़े की स्थापना करने की योजना है।

नागा साधु बनने के लिए व्यक्ति को किन्नर समाज में आस्था रखनी चाहिए और सांसारिक जीवन का त्याग कर अखाड़े की परंपराओं का पालन करने के लिए तैयार होना चाहिए। दीक्षा समारोह के बाद अखाड़े की परीक्षाओं को पास करने के बाद ही कोई व्यक्ति नागा साधु बन सकता है।

किन्नर अखाड़े में कोई भी व्यक्ति शामिल हो सकता है। इसके लिए उसे एक गुरु की तलाश करनी होती है, जो अखाड़े की परंपराओं से अवगत कराए। गुरु की स्वीकृति के बाद दीक्षा समारोह में भाग लेना पड़ता है, जहां नए सदस्य को अखाड़े के नियमों का पालन करना सिखाया जाता है। दीक्षा लेने के बाद व्यक्ति को कुछ परीक्षाओं से गुजरना होता है, जिसमें अखाड़े के नियमों और धार्मिक ग्रंथों की समझ का मूल्यांकन किया जाता है।

किन्नर अखाड़े का जीवन

किन्नर अखाड़े के ज्यादातर सदस्य मठों या अखाड़ों में रहते हैं, जहां वे धार्मिक अध्ययन और साधना में लीन रहते हैं। कुछ सदस्य अपने घरों में रहकर भी अखाड़े की गतिविधियों में भाग लेते हैं। अखाड़े के साधु-संतों का जीवन त्याग और भक्ति से परिपूर्ण होता है। वे सुबह स्नान के बाद पूजा-अर्चना करते हैं, धार्मिक ग्रंथों का पाठ करते हैं, और अखाड़े के अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। उनके लिए साधना ही सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है।

प्रयागराज महाकुंभ 2025 में किन्नर अखाड़े की उपस्थिति एक बार फिर इसे चर्चा में ला रही है। हालांकि, विवादों के बीच भी इस अखाड़े ने अपनी जगह बना ली है और अब यह वैश्विक स्तर पर विस्तार की ओर बढ़ रहा है।

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