मुंबई की गलियों में हलचल थी। एक आम दिन की तरह लोग अपने कामों में व्यस्त थे, किसी को कोई अंदाजा नहीं था कि कुछ ही घंटों में शहर में एक नया तूफान आने वाला है। न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक की शाखाएँ, जो कल तक आम लोगों की गाढ़ी कमाई की रखवाली कर रही थीं, आज एक किले की तरह खड़ी थीं—दरवाजे बंद, अंदर अफरा-तफरी और बाहर नाराजगी की लहर।
सुबह का सूरज अभी पूरी तरह निकला भी नहीं था कि मुंबई, ठाणे, पुणे और दूसरे शहरों में न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक की शाखाओं के बाहर भीड़ उमड़ने लगी। जिन लोगों के चेहरे कल तक संतोष और भरोसे से भरे थे, वे आज चिंता की लकीरों से झुके हुए थे। “सर, बैंक में पैसा नहीं निकाल सकते!”—यह सुनते ही 62 साल के रामनाथ शर्मा के हाथ से उनका फोन छूट गया। वह अपनी पत्नी के इलाज के लिए बैंक आए थे, लेकिन यहाँ तो कुछ और ही हो रहा था। भीड़ से आवाज़ें उठीं—
ये कैसा मजाक है?
हमने अपना खून-पसीना इस बैंक में रखा था, अब निकाल नहीं सकते?”
“हमें तो कोई जानकारी ही नहीं दी!”
बंद दरवाजों के पीछे का सच
यह खबर आग की तरह फैली। न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक पर रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की कड़ी पाबंदियाँ लग गई थीं। किसी को भी पैसे निकालने की इजाजत नहीं थी, नए लोन नहीं दिए जा सकते थे, और यहाँ तक कि बैंक कोई नई जमा राशि भी स्वीकार नहीं कर सकता था। यह पाबंदी अगले 6 महीनों तक जारी रहने वाली थी।
इस आदेश के पीछे RBI की बड़ी चिंताएँ थीं। बैंक की वित्तीय स्थिति डगमगा रही थी। गड़बड़ियाँ चल रही थीं, जिन पर अब तक पर्दा पड़ा था। लेकिन जब यह पर्दा हटा, तो सच्चाई किसी झटके से कम नहीं थी।
लोगों की आँखों में डर, जेब में सन्नाटा
ठाणे की एक शाखा के बाहर खड़ी 55 साल की उषा गुप्ता फूट-फूट कर रो रही थीं। उनकी बेटी की शादी अगले महीने थी, और उन्होंने अपने गहनों को गिरवी रखकर 12 लाख रुपये बैंक में फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) के तौर पर जमा किए थे।
“मैंने अपनी जिंदगीभर की बचत यहाँ रखी थी, अब क्या होगा?”
एक अन्य ग्राहक, संजय मेहरा, गुस्से में थे। उनका कहना था—
“अगर हमें पहले ही जानकारी दी जाती, तो हम अपने पैसे निकाल लेते! RBI को हमारी चिंता नहीं?”
कुछ ग्राहकों की तो पूरी जिंदगी की जमा पूंजी इस बैंक में फंसी हुई थी। किसी के 40 लाख रुपये की FD थी, किसी ने बेटी की पढ़ाई के लिए पैसे जमा किए थे, और कुछ बुजुर्गों के लिए यह उनका रिटायरमेंट फंड था। लेकिन अब? अब वे हाथ मल रहे थे।
RBI का फैसला—आखिर क्यों?
RBI के नियमों के मुताबिक, जमाकर्ताओं को डिपॉजिट इंश्योरेंस स्कीम के तहत अधिकतम 5 लाख रुपये तक का बीमा कवर मिलेगा। यानी अगर किसी का इससे ज्यादा पैसा बैंक में जमा है, तो उसे बस 5 लाख तक ही मिल पाएंगे। लेकिन यह भी कोई तत्काल राहत नहीं थी—इसके लिए उन्हें पहले बैंक में दावा दर्ज कराना होगा।
मार्च 2024 तक बैंक में कुल जमा राशि 2,436 करोड़ रुपये थी, लेकिन अब इस रकम पर ताले पड़ चुके थे।
“अब बैंक में पैसा रखना सुरक्षित नहीं?”
यह पहली बार नहीं था जब किसी को-ऑपरेटिव बैंक पर इस तरह की कार्रवाई हुई हो।
2019 में पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक (PMC Bank) का मामला सामने आया था, जिसमें हजारों ग्राहकों की पूंजी डूब गई थी। कई लोगों की जिंदगीभर की कमाई इस घोटाले में चली गई थी। कुछ समय बाद PMC Bank को एक निजी वित्तीय संस्थान सेंटरम फाइनेंशियल सर्विसेज ने अधिग्रहित कर लिया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
सवालों के घेरे में बैंकिंग सिस्टम?
अब सवाल यह था कि आखिर बार-बार छोटे जमाकर्ताओं के साथ ऐसा क्यों हो रहा है? सरकारी और बड़े प्राइवेट बैंक सुरक्षित माने जाते हैं, लेकिन को-ऑपरेटिव बैंक अक्सर घोटालों की चपेट में आ जाते हैं।
क्या इन बैंकों में पहले से घोटाले चल रहे होते हैं, जिन पर कोई ध्यान नहीं देता?
क्या जमाकर्ताओं के पैसे को लेकर कोई सुरक्षा गारंटी नहीं है?
और सबसे अहम—अगर एक बैंक पर पाबंदी लगानी थी, तो ग्राहकों को पहले से जानकारी क्यों नहीं दी गई?
“इससे अच्छा तो घर में ही पैसे रखते!—यही शब्द हर ग्राहक के होंठों पर थे।
लाइन में लगी उम्मीदें
न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक की शाखाओं के बाहर लंबी लाइनें थीं। लेकिन यह कोई आम बैंक लाइन नहीं थी, जहाँ लोग पैसे जमा करवाने या निकालने आए हों। यह एक संघर्ष की लाइन थी।
बैंक के बाहर लॉकर एक्सेस के लिए कूपन बांटे जा रहे थे। जिन ग्राहकों के लॉकर थे, उन्हें ही अंदर जाने दिया जा रहा था। लेकिन पैसे निकालने की मांग करने वालों के लिए सिर्फ खाली हाथ लौटने की मजबूरी थी।
एक महिला ने शिकायत की—
“परसों ही मैंने 20 हजार रुपये जमा किए थे, अगर पता होता कि बैंक बंद होने वाला है तो कभी ना करती!”
बचाव का रास्ता?
फिलहाल, जमाकर्ताओं के लिए रास्ते बंद थे। RBI के मुताबिक, बैंक अपनी कोई भी संपत्ति बेच या ट्रांसफर नहीं कर सकता। यह आदेश 13 फरवरी 2025 से प्रभावी हो गया था।
अभी तक सरकार या किसी वित्तीय संस्था की ओर से कोई राहत की घोषणा नहीं हुई थी। अगर बैंक की स्थिति नहीं सुधरती, तो यह बैंक भी PMC बैंक की तरह अधिग्रहित हो सकता है। लेकिन सवाल यह है कि **तब तक ग्राहकों का क्या होगा?
क्या ग्राहक फिर से भरोसा कर पाएंगे?
बैंकिंग सेक्टर में भरोसा सबसे अहम चीज होती है। लेकिन न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक के मामले ने इसे बुरी तरह हिला दिया था।
रामनाथ शर्मा, जिनकी पत्नी का इलाज रुक गया था, अब किसी पर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं थे।
“अब मैं कोई बैंक नहीं रखूँगा, घर में ही पैसा रखूँगा। कम से कम किसी के कहने पर बंद तो नहीं होगा!”
“हम मेहनत करते हैं, बचाते हैं, लेकिन जब जरूरत होती है, तो बैंक हमें धोखा दे देते हैं!”
“अगर यही हाल रहा, तो लोग बैंकिंग सिस्टम से भरोसा खो देंगे!”
आगे क्या?
क्या सरकार कोई राहत योजना लाएगी?
क्या किसी और संस्था को इस बैंक को संभालने के लिए बुलाया जाएगा?
या फिर ग्राहक अपने ही पैसे के लिए सालों तक दर-दर भटकते रहेंगे?
न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक का मामला सिर्फ एक बैंक तक सीमित नहीं था—यह पूरे देश में उन लाखों ग्राहकों की कहानी थी, जो छोटे-छोटे को-ऑपरेटिव बैंकों पर भरोसा करते थे। लेकिन जब यही बैंक उनका भरोसा तोड़ देते हैं, तो उन्हें आखिर किस पर भरोसा करना चाहिए?
बैंक की तिजोरी बंद थी।
ग्राहकों की उम्मीदें भी।
अब देखना था कि इस कहानी का अगला अध्याय क्या होगा…