उर्स मुबारक 2025: आध्यात्मिक शांति, सूफी कव्वाली और भाईचारे का संगम
लंगर सेवा और सूफी संगीत के साथ उर्स का आयोजन, प्रेम और सौहार्द का संदेश
झांसी में धार्मिक और सांस्कृतिक समरसता का प्रतीक, बाबा इंसाफ शाह चिश्ती का उर्स
रिपोर्ट = कलाम कुरैशी
हर वर्ष की तरह, झांसी में इस साल भी सूफी संत शाहों के शाह औलिया हजरत बाबा इंसाफ शाह चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह का पारंपरिक उर्स मुबारक बड़े हर्षोल्लास और शान-ओ-शौकत के साथ मनाया जा रहा है। यह आयोजन मजार-ए-अकदस इंसाफ शाह बाबा (गंगाधर राव स्थल, मुक्ताकाशी मंच के सामने, किला रोड) पर हो रहा है और 23 फरवरी तक चलेगा। इस उर्स के माध्यम से श्रद्धालु आध्यात्मिकता, प्रेम और भाईचारे का अनुभव करते हैं।
यह उर्स न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल भी पेश करता है। इस अवसर पर सभी धर्मों और समुदायों के लोग श्रद्धा और आस्था के साथ भाग लेते हैं। पूरे आयोजन में लंगर और शरबत का वितरण किया जाता है ताकि किसी को भी भोजन की असुविधा न हो।
22 फरवरी: इस दिन बड़ी फातिहा होगी। रात्रि में नमाज-ए-इशा के बाद सूफियाना रंग में रंगी कव्वाली का आयोजन किया जाएगा, जिसमें देशभर के प्रसिद्ध कव्वाल अपनी प्रस्तुतियां देंगे।
23 फरवरी: इस दिन कुल की फातिहा होगी, और इसके बाद अमन, चैन और खुशहाली के लिए दुआएं मांगी जाएंगी। इसी के साथ उर्स का समापन होगा।
यह आयोजन स्थानीय जनता के लिए न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इसमें भाग लेने वाले लोग आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करने के साथ-साथ समाज में प्रेम और सद्भावना की भावना को भी मजबूत करते हैं।
सूफी संत बाबा इंसाफ शाह चिश्ती की दरगाह पर हर साल हजारों श्रद्धालु अपनी हाजिरी लगाने आते हैं और दुआएं मांगते हैं। यह आयोजन धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
सूफी परंपरा प्रेम, शांति और इंसानियत का संदेश देती है। यह आयोजन विभिन्न समुदायों के बीच भाईचारे और सौहार्द को प्रोत्साहित करता है।
इस उर्स में हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों के लोग बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं, जो सांप्रदायिक सौहार्द का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है।
सूफी संतों की शिक्षा सभी जाति, धर्म और समुदाय के लोगों को एक सूत्र में पिरोने का कार्य करती है।
बाबा इंसाफ शाह चिश्ती का उर्स भारतीय संस्कृति और परंपराओं के समन्वय का एक आदर्श उदाहरण है, जहां सभी धर्मों के लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ आकर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।
उर्स मुबारक केवल धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह सामाजिक मेल-मिलाप और भाईचारे को भी बढ़ावा देता है। इस अवसर पर लोगों का उत्साह और श्रद्धा देखने लायक होती है।
धार्मिक अनुभव: श्रद्धालु बाबा की दरगाह पर चादर चढ़ाकर अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
आध्यात्मिक शांति: सूफी कव्वाली के मधुर सुरों में डूबकर लोग आध्यात्मिक शांति का अनुभव करते हैं।
सामाजिक समरसता: हिन्दू-मुस्लिम एकता को मजबूती प्रदान करने वाला यह आयोजन समाज में प्रेम और सौहार्द को बढ़ावा देता है।
लंगर सेवा: इस दौरान सभी धर्मों के लोगों के लिए लंगर और शरबत की व्यवस्था रहती है, जिससे समाज में समभाव और सहयोग की भावना प्रकट होती है।
सूफी कव्वाली उर्स का मुख्य आकर्षण होती है। इसकी धुन और बोल लोगों को आध्यात्मिक अनुभव कराते हैं। इस अवसर पर सूफी संगीत की प्रस्तुतियां होती हैं, जो लोगों को भक्तिरस में सराबोर कर देती हैं।
सूफी संगीत की विशेषता:
इसमें प्रेम, भक्ति और अध्यात्म का संगम देखने को मिलता है।
यह संगीत मन की शांति और आत्मिक सुकून प्रदान करता है।
सूफी कव्वाली में गाए जाने वाले शेर और नगमे दिल को छू लेने वाले होते हैं।
झांसी में आयोजित होने वाला यह उर्स हिन्दू-मुस्लिम एकता की अनूठी मिसाल है। यह न केवल धार्मिक आयोजन है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह आयोजन भक्ति, प्रेम और इंसानियत का संदेश फैलाने का कार्य करता है।
सूफी परंपरा के मूल्यों को आत्मसात कर यह उर्स समाज में प्रेम, भाईचारे और सौहार्द को बढ़ावा देता है। इसमें भाग लेने वाले श्रद्धालु आध्यात्मिक शांति प्राप्त करने के साथ-साथ सामाजिक एकता को भी सुदृढ़ करने का कार्य करते हैं।
इस आयोजन से स्पष्ट होता है कि भारत की सांस्कृतिक विरासत कितनी समृद्ध और विविधतापूर्ण है। यह उर्स दर्शाता है कि धर्म और जाति के भेद से ऊपर उठकर प्रेम और सौहार्द की भावना को अपनाना ही सच्ची मानवता है।