झांसी में नाबालिग का अपहरण: दबंगों की दहशत, पुलिस की लापरवाही!
मासूम की चीखें और परिवार की तड़प
झांसी के बाहर ओरछा गेट इलाके में एक बार फिर इंसानियत शर्मसार हो गई। एक मासूम बच्ची की खुशियों को रौंदते हुए दबंगों ने दिनदहाड़े उसका अपहरण कर लिया।
इस निर्मम घटना से न केवल परिवार बल्कि पूरा मोहल्ला सकते में है।
बाहर ओरछा गेट निवासी सद्दाम पुत्र अफसर ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक महोदया को शिकायती पत्र सौंपा है, जिसमें उन्होंने बताया कि उनकी नाबालिग बहन, जिसकी उम्र मात्र 12 वर्ष है, को 28 फरवरी 2025 को दिन में करीब 11 बजे मोहल्ले के ही दो दबंग युवकों ने बहला-फुसलाकर अगवा कर लिया।
गुंडों का खौफ: मोहल्ले में पसरा सन्नाटा
इस वीभत्स घटना में जिनका नाम सामने आया है, वे हैं आकाश सिंह उर्फ जीतू और वीरेंद्र सिंह।
दोनों आरोपी बाहर ओरछा गेट, थाना कोतवाली के निवासी हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि ये दोनों अक्सर इलाके में दहशत का माहौल बनाए रखते थे, लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि ये मासूम बच्ची पर इस तरह कहर ढा देंगे।
परिवार की उम्मीदें और पुलिस का ढुलमुल रवैया
जब इस भयावह घटना की जानकारी परिवार को हुई, तो उन्होंने तुरंत पुलिस से गुहार लगाई।
थाना कोतवाली पुलिस ने मामला तो दर्ज कर लिया, लेकिन आरोपियों पर मात्र धारा 137 बी.एन.एस के तहत कार्यवाही की गई।
पीड़ित परिवार ने जब देखा कि पुलिस की कार्यवाही में गंभीरता की कमी है, तो उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक महोदया के सामने गुहार लगाई।
परिवार का कहना है कि उनकी नाबालिग बेटी के अपहरण के बावजूद पॉक्सो एक्ट जैसी गंभीर धारा को शामिल नहीं किया गया, जो पुलिस की कार्यशैली पर बड़े सवाल खड़े करता है।
पॉक्सो एक्ट न लगने से परिवार में रोष
पीड़ित परिवार का कहना है कि जब लड़की नाबालिग है और इस तरह का अपराध सामने आया है, तो पॉक्सो एक्ट क्यों नहीं लगाया गया?
क्या पुलिस सिर्फ औपचारिकता निभा रही है?
परिवार के लोग आक्रोशित हैं और उनका कहना है कि पुलिस की इस उदासीनता ने उनकी पीड़ा को और बढ़ा दिया है।
मासूम बच्ची की सलामती को लेकर परिवारजन हर पल डर में जी रहे हैं।
वहीं, मोहल्ले के लोग भी इस घटना से गहरे सदमे में हैं और पुलिस प्रशासन से जल्द न्याय की उम्मीद लगाए बैठे हैं।
सवालों के घेरे में पुलिस की कार्यप्रणाली
पुलिस की कार्यशैली को लेकर भी कई सवाल उठ रहे हैं।
क्या पुलिस का काम केवल एफआईआर दर्ज करना है?
क्या एक नाबालिग बच्ची के अपहरण के मामले में इतनी हल्की धारा पर्याप्त है?
अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?
परिवार ने पुलिस की निष्क्रियता और अपराधियों को बचाने के प्रयास पर गंभीर आरोप लगाए हैं।
परिवार की पीड़ा: आंसुओं में बयां होती दर्द की दास्तान
सद्दाम का कहना है कि उनकी बहन बहुत ही मासूम और भोली थी।
वह पढ़ाई में अच्छी थी और हमेशा खुश रहने वाली लड़की थी।
लेकिन अब उसके लापता होने के बाद घर में मातम पसरा हुआ है।
माँ के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे और पिता सदमे में हैं।
हर गुजरते पल के साथ घर में सन्नाटा और गहरा होता जा रहा है।
दबंगों की तलाश में क्यों ढिलाई?
परिवार के मुताबिक, पुलिस ने आरोपियों को पकड़ने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
पुलिस ने न तो दबंगों की तलाश के लिए छापेमारी की और न ही कोई सख्त कार्यवाही की।
परिवार के लोग अब पुलिस की लापरवाही से हताश और निराश हो चुके हैं।
आखिर कब तक मासूम की चीखें प्रशासन तक पहुंचेंगी?
क्या न्याय के लिए परिवार को दर-दर भटकना पड़ेगा?
क्या कहता है कानून? पॉक्सो एक्ट के तहत क्या होनी चाहिए थी कार्यवाही?
भारत में पॉक्सो एक्ट (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) के तहत किसी भी नाबालिग के खिलाफ यौन अपराध को गंभीरता से लिया जाता है।
इस एक्ट के तहत दोषियों को कड़ी सजा देने का प्रावधान है।
लेकिन इस मामले में पुलिस की तरफ से केवल धारा 137 बी.एन.एस के तहत मामूली मामला दर्ज करना, कानून के साथ खिलवाड़ जैसा प्रतीत होता है।
अगर पुलिस चाहती तो पॉक्सो एक्ट के तहत आरोपियों पर सख्त कार्यवाही की जा सकती थी।
परिवार ने प्रशासन से लगाई न्याय की गुहार
परिवारजन अब भी अपनी बेटी की सलामती के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।
उनका कहना है कि अगर समय पर पुलिस ने सही कदम उठाया होता तो शायद उनकी बेटी घर लौट आती।
परिवार ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक महोदया से गुहार लगाई है कि मामले को गंभीरता से लिया जाए और पॉक्सो एक्ट के तहत कार्यवाही करते हुए आरोपियों की जल्द गिरफ्तारी सुनिश्चित की जाए।
क्या मिलेगा न्याय? सवाल अब भी बरकरार
इस घटना ने एक बार फिर झांसी पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है।
क्या मासूम की चीखें और परिवार की पीड़ा प्रशासन तक पहुंचेगी?
क्या पुलिस आरोपियों को पकड़कर मासूम को घर वापस लाने में सफल होगी?
या फिर इस दर्दनाक घटना का अंत भी कई अन्य मामलों की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा?
न्याय के लिए उठती आवाजें
इस मामले ने इलाके में रोष फैला दिया है।
स्थानीय लोग भी पुलिस की निष्क्रियता पर सवाल उठा रहे हैं।
परिवार के समर्थन में मोहल्ले के लोग भी इकठ्ठा होकर न्याय की मांग कर रहे हैं।
क्या प्रशासन उनकी आवाज सुनेगा या फिर दबंगों की दहशत यूं ही कायम रहेगी?
अंतहीन प्रतीक्षा: मासूम की वापसी की उम्मीद
हर सुबह और हर रात परिवारजन बस एक ही दुआ मांगते हैं –
उनकी बेटी सलामत घर लौट आए।
हर दरवाजे पर नजरें टिकी हैं, हर आहट पर दिल धड़कता है।
परिवार को अब भी उम्मीद है कि पुलिस अपनी जिम्मेदारी निभाएगी और मासूम को सुरक्षित वापस लाएगी।
प्रशासन की जिम्मेदारी और समाज की भूमिका
यह मामला सिर्फ एक परिवार का नहीं है, बल्कि पूरे समाज की सुरक्षा का सवाल है।
क्या हम अपने बच्चों को सुरक्षित माहौल दे पा रहे हैं?
क्या पुलिस और प्रशासन ऐसे मामलों में संवेदनशीलता और तत्परता से कार्य कर रहे हैं?
जरूरत है कि पुलिस प्रशासन अपनी जिम्मेदारी को समझे और दोषियों को सख्त से सख्त सजा दिलाए।
समाज के लोगों को भी ऐसे मामलों में पीड़ित परिवार के साथ खड़ा होना चाहिए ताकि न्याय की आवाज दब न सके।
मासूम बच्ची के अपहरण और पुलिस की लापरवाही पर लोग सवाल उठा रहे हैं। अब देखना यह है कि प्रशासन कब और कैसे इस मामले में ठोस कदम उठाता है। परिवार और समाज को अब भी न्याय की उम्मीद है।