(पवन वर्मा )
ऋतुओं के अनुसार जीवन शैली और त्योहारों का निर्माण
हमारे देश में ऋतुओं को ध्यान में रखकर जीवन शैली, त्यौहार और परंपराएँ बनायी गयी हैं। श्रावण मास, वर्षा ऋतु का प्रतीक है। इस मास की अमावस्या को “हरियाली अमावस्या” कहते हैं। यह पर्व भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण, लोक आस्था और आध्यात्मिक चेतना का एक सुंदर संगम है। हरियाली अमावस्या केवल पर्व नहीं, प्रकृति से आत्मीय संबंध का उत्सव है।
हरियाली का उत्सव — प्रकृति की समृद्धि का प्रतीक
“हरियाली” शब्द से ही स्पष्ट है कि यह पर्व प्रकृति की हरियाली, हरितिमा और उसकी समृद्धि का उत्सव है। श्रावण की अमावस्या को “हरियाली अमावस्या” इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि इस समय खेतों, जंगलों और बाग-बगीचों में हरियाली ही हरियाली होती है।
परंपरा के अनुसार इस दिन:
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वृक्षारोपण
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नदी-तालाबों की पूजा
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देवी-देवताओं का पूजन
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पर्यावरण संरक्षण से जुड़े कार्य
किए जाते हैं। इस दिन शिव, पार्वती और नागदेवता की भी पूजा की जाती है। महिलाएं और किसान बड़े उत्साह से इसे मनाते हैं।
विभिन्न क्षेत्रों में हरियाली अमावस्या के विविध नाम
हरियाली अमावस्या हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से मनायी जाती है:
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उत्तर भारत में — हरियाली अमावस्या
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राजस्थान में — श्रावणी अमावस्या
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गुजरात में — वनों महोत्सव
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मध्य भारत में — हरियाली पूजा
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दक्षिण भारत में — आषाढ़ अमावस्या
कृषि, पूजा और पारिवारिक परंपराओं का पर्व
यह दिन कृषि की दृष्टि से बहुत ही शुभ माना जाता है। पुराने समय में राजा-महाराजा इस दिन वृक्षारोपण करवाते थे और नगरों में तालाब, बावड़ियाँ, कुएँ आदि की सफाई व संरक्षण करते थे।
इस दिन लोग सुबह स्नान कर पूजा करते हैं। महिलाएँ विशेष रूप से उपवास रखती हैं और शिव-पार्वती की पूजा कर अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।
प्रमुख परंपराएँ:
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वट वृक्ष, पीपल, नीम आदि वृक्षों की पूजा
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नदी, तालाब, कुएं आदि की साफ-सफाई
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नवविवाहित महिलाओं द्वारा मायके जाना और झूला झूलना
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लोकगीत गायन और समूहिक उत्सव
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नागदेवता और शिवलिंग का जलाभिषेक
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तुलसी के पौधे की विशेष पूजा
एक पारिवारिक परंपरा का सुंदर उदाहरण
मेरी माँ इस दिन दरवाजे पर हरे रंग से कुछ आकृतियां बनाती हैं और खीर-पूड़ी से उनकी पूजा करती हैं। इसे “हरियाली” कहा जाता है।
हरियाली अमावस्या और पर्यावरण संरक्षण का गहरा संबंध
हरियाली अमावस्या का एक प्रमुख उद्देश्य है पर्यावरण संरक्षण और वृक्षारोपण। यह पर्व याद दिलाता है कि मनुष्य और प्रकृति का संबंध एक-दूसरे पर निर्भर है। वृक्षों के बिना जीवन असंभव है – वे हमें ऑक्सीजन, फल, छाया और औषधियाँ प्रदान करते हैं।
वन महोत्सव के रूप में हरियाली अमावस्या
शासकीय एवं सार्वजनिक रूप से हरियाली अमावस्या को वन महोत्सव का रूप भी दिया गया है। इस दिन:
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सरकारी और निजी संस्थानों द्वारा लाखों पेड़ लगाए जाते हैं
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विद्यालयों, कॉलेजों और सामाजिक संस्थाओं में वृक्षारोपण अभियान चलाए जाते हैं
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समाज में पर्यावरण के प्रति चेतना उत्पन्न होती है
एक धार्मिक ही नहीं, सामाजिक और सांस्कृतिक पर्व
हरियाली अमावस्या केवल धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह लोकजीवन में रंग भरने वाला उत्सव है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में यह महिलाओं और युवाओं के लिए उल्लास का दिन होता है।
झूले पड़ते हैं, तरह-तरह के लोकगीत गाए जाते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सार्थक है यह पर्व
हमारे पूर्वजों का दृष्टिकोण कितनी वैज्ञानिक सोच लिए हुए था यह इसी पर्व की महत्ता से समझ आ जाता है।
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वर्षा ऋतु के मध्य का समय पेड़ लगाने के लिए उपयुक्त होता है
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नमी अधिक होने के कारण पौधों की जड़ें जम जाती हैं
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इस समय लगाए गए वृक्ष वर्षभर में परिपक्व हो जाते हैं
आइए, एक पेड़ अवश्य लगाएँ
इस पारंपरिक आयोजन को धार्मिक रूप दिए जाने से संपूर्ण जनमानस पूरी आस्था, विश्वास और ताकत से पर्यावरण संरक्षण एवं वृक्षारोपण में जुट जाता है।
जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आज की भाषा में कहें तो एकदम परफेक्ट है।
तो आइए हम भी इस अवसर पर प्रकृति को प्रणाम करें और एक वृक्ष अवश्य लगाएं।