सूखी काटली नदी: शेखावाटी की प्यास और एक महत्वपूर्ण नदी पुनर्जीवन की पुकार

Aanchalik Khabre
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सूखी काटली नदी

झुंझुनू /शेखावाटी, 30 जुलाई, 2025

शेखावाटी अंचल की जीवनरेखा मानी जाने वाली काटली नदी आज खुद अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। कभी कल-कल बहती, खेतों को सींचती और इस क्षेत्र की जीवनदायिनी रही काटली नदी अब भीषण गर्मी में सूखी पड़ी है, मानसून की अच्छी बारिश के बावजूद भी इसमें पानी का नामोनिशान नहीं है। यह केवल एक प्राकृतिक घटना नहीं, बल्कि एक गंभीर पर्यावरणीय और सामाजिक मुद्दा बन गया है, जिसके समाधान के लिए अब जन-अभियान छेड़ा गया है। हाल ही में, सामाजिक अधिकारिता मंत्री अविनाश गहलोत को मुख्यमंत्री के नाम एक ज्ञापन सौंपा गया है, जिसमें इस काटली नदी को पुनर्जीवित करने और उसके संरक्षण की मांग की गई है।

काटली नदी का परिचय: जीवनरेखा से सूखी धारा तक का सफर

काटली नदी का ऐतिहासिक और भौगोलिक महत्व अविस्मरणीय है। अरावली की पहाड़ियों से निकलने वाली यह मौसमी नदी सीकर जिले के खंडेला और तोरावाटी पहाड़ियों से अपना उद्गम लेती है। यह झुंझुनू जिले से होते हुए चूरू जिले में प्रवेश करती है और अंततः रेत में विलीन हो जाती है। लगभग 100 किलोमीटर की यात्रा तय करने वाली यह काटली नदी अपने बेसिन क्षेत्र में हजारों लोगों की आजीविका और पशुधन के लिए महत्वपूर्ण थी। इसके किनारे सदियों से सभ्यताएं पनपी हैं, और यह क्षेत्र अपनी कृषि समृद्धि के लिए जाना जाता था, जिसका सीधा संबंध काटली नदी के जल से था। हालांकि, पिछले कुछ दशकों में, अत्यधिक दोहन, अतिक्रमण, अवसादन (siltation) और वर्षा के पैटर्न में बदलाव ने इस काटली नदी को एक सूखी नाली में बदल दिया है।

काटली नदी के सूखने के कारण: एक बहुआयामी समस्या

काटली नदी के सूखने के पीछे कई जटिल कारण हैं। सबसे प्रमुख कारणों में से एक है भूजल का अत्यधिक दोहन। कृषि और शहरीकरण के बढ़ते दबाव के कारण, भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा है, जिससे काटली नदी को मिलने वाला प्राकृतिक प्रवाह कम हो गया है। इसके अलावा, काटली नदी के किनारे अनियोजित निर्माण और अतिक्रमण ने इसके प्राकृतिक जलमार्गों को अवरुद्ध कर दिया है। कृषि अपवाह और शहरी कचरे के कारण जल गुणवत्ता में गिरावट भी एक बड़ी चुनौती है, भले ही वर्तमान में पानी न हो, लेकिन भविष्य में इसके पुनर्जीवन के लिए यह एक महत्वपूर्ण विचार है। वर्षा जल संचयन की कमी और पारंपरिक जल निकायों पर ध्यान न देना भी इस स्थिति को और गंभीर बना रहा है।

काटली नदी बचाओ जन अभियान: एक नई उम्मीद

इस गंभीर स्थिति को देखते हुए, सरस्वती रूरल एंड अर्बन डेवलपमेंट सोसाइटी के “काटली नदी बचाओ जन अभियान” ने एक महत्वपूर्ण पहल की है। संयोजक सुभाष कश्यप और भाजपा नेता मोहन सिंह मेहरा टोंक ने बताया कि प्रदेश में अच्छी बारिश के बावजूद काटली नदी सूखी है, जो चिंता का विषय है। उन्होंने मुख्यमंत्री ज्ञापन के माध्यम से एक अभिनव समाधान का प्रस्ताव रखा है: सिंधु जल समझौते के तहत भारत के हिस्से के अतिरिक्त जल को काटली नदी में लाने की मांग। यह एक महत्वाकांक्षी लेकिन संभावित रूप से transformative विचार है जो काटली नदी को एक नया जीवन दे सकता है। यदि यह योजना सफल होती है, तो यह न केवल काटली नदी को पुनर्जीवित करेगा बल्कि पूरे शेखावाटी क्षेत्र की जल सुरक्षा को भी मजबूत करेगा।

काटली नदी संरक्षण: व्यापक दृष्टिकोण और सामूहिक प्रयास

मुख्यमंत्री ज्ञापन के माध्यम से उठाई गई यह मांग केवल पानी लाने तक सीमित नहीं है, बल्कि काटली नदी संरक्षण के व्यापक मुद्दे को भी संबोधित करती है। इसमें काटली नदी के बेसिन क्षेत्र में वृक्षारोपण, अतिक्रमण हटाना, पारंपरिक जल स्रोतों का जीर्णोद्धार, और वर्षा जल संचयन संरचनाओं का निर्माण शामिल है। डॉ. शायर सिंह शेखावत, विक्रम सैनी, शीशराम राजोरिया, युधिष्ठिर सारण, जयपाल यादव, नीरज वशिष्ठ सहित कई लोगों ने इस ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर इस महत्वपूर्ण अभियान को अपना समर्थन दिया है। यह दिखाता है कि काटली नदी के पुनर्जीवन की इच्छा इस क्षेत्र के लोगों में कितनी गहरी है।

काटली नदी का पुनर्जीवन: शेखावाटी के भविष्य की कुंजी

काटली नदी का पुनर्जीवन सिर्फ एक पर्यावरणीय परियोजना नहीं है, बल्कि यह शेखावाटी की आर्थिक और सामाजिक स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है। एक बार जब काटली नदी फिर से बहने लगेगी, तो यह कृषि उत्पादन को बढ़ाएगी, भूजल स्तर को रिचार्ज करेगी, जैव विविधता को बढ़ावा देगी, और स्थानीय पर्यटन को भी बढ़ावा दे सकती है। यह क्षेत्र के युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करेगी और पलायन को रोकने में मदद करेगी।

सरकार और नागरिक समाज के बीच सहयोग इस परियोजना की सफलता के लिए महत्वपूर्ण होगा। सरकार को न केवल सिंधु जल समझौते के शेष जल को काटली नदी तक लाने की व्यवहार्यता का अध्ययन करना चाहिए, बल्कि दीर्घकालिक काटली नदी संरक्षण योजनाएं भी विकसित करनी चाहिए। इसमें काटली नदी बेसिन प्रबंधन, जल गुणवत्ता निगरानी, और जन जागरूकता अभियान शामिल होने चाहिए। स्थानीय समुदायों को काटली नदी के प्रबंधन और संरक्षण में सक्रिय रूप से शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि वे ही इसके सबसे बड़े हितधारक हैं।

काटली नदी को पुनर्जीवित करने का यह अभियान एक बड़े लक्ष्य का प्रतीक है: राजस्थान की सभी सूखी नदियों को फिर से जीवंत करना। यह एक चुनौती है, लेकिन असंभव नहीं है। देश के अन्य हिस्सों में भी ऐसी सफल परियोजनाएं हुई हैं जहां नदियों को पुनर्जीवित किया गया है। काटली नदी के मामले में, राजनीतिक इच्छाशक्ति, वैज्ञानिक योजना और जन भागीदारी का संयोजन आवश्यक होगा।

मंत्री गहलोत ने मुख्यमंत्री ज्ञापन को आगे भेजने और आवश्यक कार्रवाई का आश्वासन दिया है, जो एक सकारात्मक कदम है। उम्मीद है कि यह आश्वासन ठोस कार्रवाई में बदलेगा और जल्द ही काटली नदी फिर से अपने पुराने गौरव को प्राप्त कर पाएगी। यह केवल काटली नदी के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण शेखावाटी के भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है। काटली नदी का प्रवाह इस क्षेत्र की समृद्धि और जीवन शक्ति का प्रतीक है, और इसका पुनर्जीवन पूरे समुदाय के लिए आशा की एक नई किरण लेकर आएगा।

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