Humayun: संघर्ष, पराजय और पुनः विजय का आगमन

Aanchalik Khabre
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Humanyun

मुगल साम्राज्य के दूसरे सम्राट Humanyun (1508-1556) का जीवन एक ऐसे शासक की कहानी है, जिसे बार-बार अपने भाग्य से लड़ना पड़ा। वह एक ऐसा राजा था जो एक बार अपने सिंहासन से बेदखल हुआ, लेकिन फिर विजय प्राप्त कर वापस लौटा। इस लेख में हम Humanyun के प्रारंभिक जीवन, शासन, संघर्ष, निर्वासन और पुनः सत्ता प्राप्ति की गाथा को विस्तार से जानेंगे।

Contents
Humanyun का प्रारंभिक जीवन:-जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि:बाल्यकाल और शिक्षा:बाबर के उत्तराधिकारी के रूप में स्थिति:Humayun का राज्याभिषेक और प्रारंभिक शासन:-साम्राज्य की चुनौतियाँ:अफगान सरदारों और बहादुर शाह से संघर्ष:शासन में कमजोरी और नीति संबंधी भूलें:शेर शाह सूरी से संघर्ष और पराजय:-चौसा और कन्नौज की लड़ाई:Humanyun की हार के कारण:निर्वासन का जीवन:निर्वासन के वर्ष और ईरान में शरण:-फारसी सम्राट तहमास्प के दरबार में:पुनः सत्ता प्राप्ति की योजना:फारसी सहयोग से वापसी की तैयारी:Humanyun की भारत में पुनः वापसी और सत्ता प्राप्ति:-काबुल पर पुनः नियंत्रण:दिल्ली पर अधिकार:शासन की पुनर्स्थापना:Humanyun की मृत्यु और उत्तराधिकार:-अकस्मात् मृत्यु की घटनाएं:अकबर का राज्यारोहण:Humanyun की समाधि और उसका महत्व:Humanyun का मक़बरा:Humanyun की उपलब्धियां और व्यक्तित्व:-धार्मिक दृष्टिकोण और सहिष्णुता:स्थापत्य कला में योगदान:साहित्य और संस्कृति का संरक्षण:

 

Humanyun का प्रारंभिक जीवन:-

जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि:

Humanyun का जन्म 6 मार्च 1508 को काबुल में हुआ था। वह बाबर और उसकी पत्नी महम बेगम का पुत्र था। Humanyun का वास्तविक नाम “नसीरुद्दीन मोहम्मद हुमायूं” था। मुगल खानदान में जन्म लेने के बावजूद, उनका जीवन कभी भी आसान नहीं रहा।

बाल्यकाल और शिक्षा:

Humanyun को फारसी, अरबी, गणित, खगोलशास्त्र, और सैन्य रणनीति की शिक्षा दी गई थी। वह साहित्य और कला का प्रेमी था। प्रारंभ से ही उसमें विनम्रता, धर्मनिष्ठा और करुणा जैसे गुण विकसित हो गए थे, लेकिन उसमें अपने पिता बाबर जैसी राजनीतिक चतुराई की कमी थी।

बाबर के उत्तराधिकारी के रूप में स्थिति:

बाबर की मृत्यु 1530 ई. में हुई, और उसके बाद हुमायूं को दिल्ली की गद्दी सौंपी गई। बाबर ने अन्य पुत्रों को अलग-अलग प्रांत दिए, लेकिन सम्राट का उत्तराधिकारी Humanyun ही था। मगर शासन सँभालते ही उसे कई समस्याओं से जूझना पड़ा।

 

Humayun का राज्याभिषेक और प्रारंभिक शासन:-

साम्राज्य की चुनौतियाँ:

Humanyun को एक ऐसा साम्राज्य मिला था जो न केवल बिखरा हुआ था, बल्कि उसके शत्रु भी शक्तिशाली थे। अफगान सरदार, बंगाल का शासक महमूद लोदी, और गुजरात का बहादुर शाह उसके सबसे बड़े विरोधी थे।

अफगान सरदारों और बहादुर शाह से संघर्ष:

Humanyun ने बहादुर शाह के खिलाफ चम्पानेर और गुजरात में सफल अभियान चलाया, लेकिन वहां स्थायी नियंत्रण नहीं रख सका। इसके साथ ही बंगाल के अफगानों से भी लगातार संघर्ष होता रहा।

शासन में कमजोरी और नीति संबंधी भूलें:

Humanyun की सबसे बड़ी कमजोरी यह थी कि वह निर्णय लेने में धीमा था। उसने अपने भाइयों पर जरूरत से ज्यादा भरोसा किया, जिनमें खासकर कामरान मीरज़ा ने उसकी पीठ में छुरा घोंपा। राजनीतिक दूरदर्शिता की कमी ने उसके शासन को कमजोर बना दिया।

 

शेर शाह सूरी से संघर्ष और पराजय:-

चौसा और कन्नौज की लड़ाई:

1539 ई. में चौसा की लड़ाई में शेर शाह सूरी ने Humanyun को बुरी तरह हराया। उसके बाद 1540 ई. में कन्नौज की निर्णायक लड़ाई में Humanyun की पराजय हुई, और वह पूरी तरह सत्ता से बाहर हो गया।

Humanyun की हार के कारण:

  • राजनीतिक अदूरदर्शिता
  • भाईयों के साथ असहमति
  • शेर शाह की सैन्य रणनीति में श्रेष्ठता
  • जनता से दूरी और प्रशासनिक अनुभव की कमी

निर्वासन का जीवन:

हार के बाद Humanyun को भारत छोड़ना पड़ा। वह अपनी पत्नी हमीदा बानो बेगम के साथ राजपूताना, सिंध, बलूचिस्तान होते हुए फारस की ओर निकल पड़ा। इस दौरान उसका जीवन अत्यंत कष्टप्रद रहा।

 

निर्वासन के वर्ष और ईरान में शरण:-

फारसी सम्राट तहमास्प के दरबार में:

1544 ई. में Humanyun ईरान पहुँचा। वहाँ के शासक शाह तहमास्प ने उसे शरण दी। बदले में Humanyun को शिया मत स्वीकार करना पड़ा, लेकिन उसने ईमानदारी से फारसी सम्राट से मित्रता बनाए रखी।

पुनः सत्ता प्राप्ति की योजना:

शाह तहमास्प ने Humanyun को 12,000 सैनिकों की सहायता दी। Humanyun ने रणनीतिक रूप से पहले कंधार पर अधिकार किया और फिर काबुल की ओर बढ़ा, जहाँ उसके भाई कामरान मीरज़ा से संघर्ष हुआ।

फारसी सहयोग से वापसी की तैयारी:

फारसी सैन्य सहयोग से Humanyun ने धीरे-धीरे अफगान इलाकों पर नियंत्रण पाना शुरू किया। काबुल पर अधिकार कर लेने के बाद उसने भारत में वापसी की योजना बनाई।

 

Humanyun की भारत में पुनः वापसी और सत्ता प्राप्ति:-

काबुल पर पुनः नियंत्रण:

1545 ई. में Humanyun ने काबुल और कंधार पर पूर्ण अधिकार कर लिया। उसने अपने भाई कामरान को पराजित किया और उसे अंधा कर दिया जिससे वह भविष्य में कोई खतरा न बन सके।

दिल्ली पर अधिकार:

शेर शाह सूरी की मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारी कमजोर सिद्ध हुए। इसका लाभ उठाकर Humanyun ने 1555 ई. में दिल्ली पर पुनः अधिकार कर लिया और एक बार फिर से मुगल शासन की नींव रखी।

शासन की पुनर्स्थापना:

Humanyun ने अपने संक्षिप्त पुनः शासनकाल में न्याय, संस्कृति और प्रशासनिक पुनर्गठन की कोशिश की। उसने मुगल सत्ता को स्थिर किया, जो बाद में अकबर के शासन में और सशक्त हुआ।

 

Humanyun की मृत्यु और उत्तराधिकार:-

अकस्मात् मृत्यु की घटनाएं:

1556 ई. में Humanyun की मृत्यु बेहद असामान्य ढंग से हुई। वह दिल्ली के अपने पुस्तकालय (शेर मण्डल) की सीढ़ियों से गिर गया। सिर पर गहरी चोट लगने के कारण उसकी मृत्यु हो गई।

अकबर का राज्यारोहण:

Humanyun की मृत्यु के समय उसका पुत्र अकबर केवल 13 वर्ष का था। बैरम खाँ की देखरेख में उसे सम्राट घोषित किया गया। इसी के साथ मुगल साम्राज्य के “स्वर्ण युग” की शुरुआत हुई।

Humanyun की समाधि और उसका महत्व:

Humanyun की समाधि दिल्ली में स्थित है, जो भारत में मुग़ल स्थापत्य का पहला प्रमुख उदाहरण है। इसका निर्माण हमीदा बानो बेगम ने कराया और यह बाद में ताजमहल के लिए प्रेरणा बनी।

Humanyun का मक़बरा:

Humanyun का मक़बरा भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित एक ऐतिहासिक स्मारक है। इसका निर्माण मुग़ल सम्राट Humanyun की याद में उनकी पत्नी हाजी बेगम ने 1565 ई. में करवाया था। यह मक़बरा मुग़ल स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है और इसे भारत का पहला बाग़-मक़बरा भी कहा जाता है। इसकी वास्तुकला में फारसी, तुर्की और भारतीय शैलियों का सुंदर मिश्रण देखने को मिलता है।

इस इमारत का निर्माण लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से किया गया है। मक़बरे के चारों ओर चारबाग़ शैली के सुंदर बाग़ बने हुए हैं, जिनमें जल की नहरें और फव्वारे हैं। हुमायूं का मक़बरा केवल एक मक़बरा नहीं, बल्कि कई अन्य मुग़ल राजघराने के सदस्यों की समाधियाँ भी यहाँ स्थित हैं।

यह मक़बरा यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल है और पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र है। Humanyun का मक़बरा न केवल भारत के इतिहास और स्थापत्य कला की धरोहर है, बल्कि यह ताजमहल जैसे अद्भुत स्मारकों के विकास की प्रेरणा भी माना जाता है।

 

Humanyun की उपलब्धियां और व्यक्तित्व:-

धार्मिक दृष्टिकोण और सहिष्णुता:

Humanyun धार्मिक रूप से सहिष्णु था। उसने हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के साथ सम्मानपूर्ण व्यवहार किया। वह एक ज्ञानी, उदार और कलाप्रेमी शासक था।

स्थापत्य कला में योगदान:

हालाँकि उसका शासन काल संघर्षों से भरा रहा, फिर भी Humanyun ने कला और स्थापत्य को प्रोत्साहित किया। उसकी समाधि इसकी प्रमाण है। उसका महल “शेर मण्डल” भी स्थापत्य का अद्भुत उदाहरण है।

साहित्य और संस्कृति का संरक्षण:

Humanyun फारसी संस्कृति और साहित्य का संरक्षक था। उसके दरबार में कई विद्वान और कवि थे। उसने फारसी साहित्य को भारत में प्रोत्साहन दिया।

 

निष्कर्ष:-

Humanyun का जीवन भारतीय इतिहास का एक अनूठा अध्याय है। वह एक ऐसा सम्राट था जिसने पराजय का स्वाद चखा, लेकिन फिर भी हार नहीं मानी। उसका व्यक्तित्व उसकी सहिष्णुता, उदारता और कलाप्रेमी स्वभाव का परिचायक है। यदि वह अधिक समय तक शासन करता, तो शायद मुगल इतिहास की दिशा कुछ और ही होती। लेकिन फिर भी, उसका योगदान अमूल्य है और उसका संघर्ष, विजय और जीवन भारतीय इतिहास में सदा स्मरणीय रहेगा।

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