1. प्रस्तावना
हम जो बनते हैं, वे क्यों बनते हैं? मनोवैज्ञानिक दशकों से इस प्रश्न से जूझ रहे हैं। इस लेख में, हम इस बात की पड़ताल करेंगे कि बचपन की विशेषताओं और अनुभवों का बाद के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त, हम यह भी पूछेंगे कि हम बचपन में जैसे थे, वैसे क्यों थे?
2. बचपन की विशेषताओं का भविष्य से संबंध
विज्ञान से यह स्पष्ट होता जा रहा है कि शुरुआती जीवन विशेषताएँ, जैसे कि संज्ञानात्मक कौशल और सामाजिक-भावनात्मक विशेषताएँ, बाद के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उच्च IQ वाले बच्चों को स्कूल में बेहतर ग्रेड मिलते हैं, वे बेहतर कॉलेज में जाते हैं और अधिक कमाई करते हैं। सामाजिक रूप से सक्षम बच्चे अधिक मित्र बनाते हैं, अधिक संतुष्ट होते हैं और स्वस्थ होते हैं। जो बच्चे चिंतित या असामाजिक व्यवहार करते हैं, वे बाद में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं, अकेलेपन और अपराध की संभावना रखते हैं।
3. क्या हम बचपन जैसे ही रहते हैं? (स्थिरता बनाम परिवर्तन)
कुछ विशेषताओं में समय के साथ स्थिरता होती है। उदाहरण के लिए, जो बच्चे अधिक क्रोधित या शांत होते हैं, वे बड़े होकर भी वैसे ही रहते हैं। लेकिन, हर चीज़ में स्थिरता नहीं होती। कुछ लोग अपने अनुभवों के कारण बदलते हैं। यह समझना महत्वपूर्ण है कि कुछ हद तक हम वैसे ही रहते हैं, लेकिन अनुभव और पर्यावरण के प्रभाव से हम बदल भी सकते हैं।
4. हम बचपन में जैसे थे, वैसे क्यों थे?
हम अपने जीवन की शुरुआत कुछ विशेषताओं के साथ करते हैं। यह सवाल उठता है कि ये विशेषताएँ कहां से आती हैं? इस पर दो मुख्य विचारधाराएँ हैं:
प्रकृति बनाम पोषण (Nature vs Nurture)।
5. प्रकृति बनाम पोषण की बहस
प्रकृति सिद्धांत यह कहता है कि हम जैसे हैं, वह हमारे आनुवंशिकी के कारण है। जैसे हमारे बालों का रंग या आंखों का आकार आनुवंशिक होता है, वैसे ही हमारा स्वभाव और बुद्धि भी हो सकती है।
पोषण सिद्धांत कहता है कि हमारे अनुभव और पर्यावरण हमें बनाते हैं। मनोविश्लेषक जैसे फ्रायड मानते थे कि बचपन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व को गहराई से प्रभावित करते हैं। व्यवहारवादियों ने माना कि व्यवहार पर्यावरण से सीखा जाता है।
6. आधुनिक विज्ञान की समझ: प्रकृति और पोषण दोनों
अब यह स्पष्ट है कि यह बहस अप्रासंगिक है। हम दोनों का मिश्रण हैं। हमारे जीन और पर्यावरण एक-दूसरे पर प्रभाव डालते हैं। उदाहरण के लिए, एक बच्चा जो सामाजिक है, उसे अधिक सामाजिक अनुभव मिलते हैं, जो उसके सामाजिक कौशल को और विकसित करते हैं। ऐसे अनुभवों से उसका स्वभाव और अधिक प्रबल हो सकता है।
7. परिवार का प्रभाव
परिवार बच्चे का पहला सामाजिक अनुभव होता है।
परिवार कई प्रकार से बच्चे को प्रभावित करता है:
1. भौतिक वातावरण
घर में कितनी किताबें हैं, टीवी पर क्या आता है, क्या खिलौने हैं – ये सब संज्ञानात्मक विकास पर प्रभाव डालते हैं।
2. पारिवारिक संरचना
एकल परिवार, संयुक्त परिवार, भाई-बहन की संख्या – यह सब बच्चे के अनुभवों को ढालते हैं।
3. विस्तारित परिवार और समुदाय
दादा-दादी, चाचा-चाची, पड़ोसी – इन सभी का बच्चे की सोच और विकास पर प्रभाव होता है।
4. माता-पिता का व्यक्तित्व और मानसिक स्वास्थ्य
तनावग्रस्त या उदास माता-पिता बच्चों को भावनात्मक रूप से असुरक्षित बना सकते हैं।
5. सामाजिक-आर्थिक स्थिति
गरीबी में रहने वाले बच्चों को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का अधिक सामना करना पड़ता है।
8. पालन-पोषण: एक द्विदिशीय प्रक्रिया
माता-पिता अपने बच्चों का पालन-पोषण करते हैं, लेकिन बच्चे भी अपने माता-पिता के व्यवहार को प्रभावित करते हैं। यह एक द्विदिशीय प्रक्रिया है।
पारस्परिक नियतत्ववाद
बंडुरा का यह सिद्धांत कहता है कि व्यक्ति, व्यवहार और पर्यावरण एक-दूसरे पर प्रभाव डालते हैं।
Attachment सिद्धांत
बच्चों की माँ से जुड़ाव की शैली उनके सामाजिक और भावनात्मक विकास पर प्रभाव डालती है।
9. शिशु भी बनाते हैं अपने पालन-पोषण को
हर बच्चा अपने स्वभाव से अपने माता-पिता के साथ संबंध बनाता है। एक शांत बच्चा शायद अधिक दुलार पाए, जबकि रोने वाला बच्चा माता-पिता को थका सकता है।
जीन-पर्यावरण सहसंबंध
बच्चे का स्वभाव और माता-पिता की प्रतिक्रिया एक चक्र की तरह होता है – एक दूसरे को प्रभावित करता है।
10. माता-पिता की मान्यताएँ और पालन-पोषण की शैली
माता-पिता अपने पालन-पोषण के तरीके खुद नहीं गढ़ते; वे समाज, संस्कृति, और निजी अनुभवों से सीखते हैं।
1. प्रत्यक्ष व्यवहार
जो माता-पिता बच्चों को मारते हैं, उन्हें भी शायद खुद बचपन में मारा गया हो।
2. अभिभावकीय मान्यताएँ
माता-पिता मानते हैं कि कौन-सा व्यवहार सही है – यह उनकी संस्कृति और सोच पर निर्भर करता है।
3. सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव
हर समाज के अपने मानदंड होते हैं कि बच्चों को कैसे पाला जाए।
4. स्व-प्रभावकारिता
माता-पिता खुद को कितना सक्षम मानते हैं, यह भी उनकी शैली को प्रभावित करता है।
11. निष्कर्ष: विकास एक जटिल प्रक्रिया
विकास एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें जीन, अनुभव, पर्यावरण और समाज सभी की भूमिका होती है।
यह प्रक्रिया सरल नहीं है – बल्कि यह जटिल, बहुस्तरीय और निरंतर बदलती रहने वाली है।
हम जो बनते हैं, उसमें हमारे बचपन, हमारे माता-पिता, हमारे अनुभव और हमारा स्वभाव – सबका योगदान होता है।