भूमिका: साहित्य का एक युग – प्रेमचंद
जब भी हिंदी साहित्य की बात होती है, एक नाम सबसे पहले जेहन में आता है — मुंशी प्रेमचंद। वे केवल एक लेखक नहीं थे, बल्कि भारत की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक चेतना को शब्दों में ढालने वाले महाकवि थे। अपने उपन्यासों, कहानियों और नाटकों के माध्यम से उन्होंने साहित्य को आम जनमानस की भाषा बना दिया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले के लमही गांव में हुआ था। उनका असली नाम धनपतराय श्रीवास्तव था। पिता अजायब लाल डाक मुंशी थे और माँ का नाम आनंदी देवी था। बाल्यावस्था में ही माता-पिता का देहांत हो गया, जिससे उनका जीवन कठिनाइयों से भरा रहा। आर्थिक तंगी के कारण उन्हें शिक्षा के दौरान कई परेशानियों का सामना करना पड़ा, लेकिन पढ़ाई के प्रति उनका झुकाव कभी कम नहीं हुआ।
अध्यापन से साहित्य की ओर
प्रेमचंद ने करियर की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की। शिक्षक रहते हुए ही उन्होंने लिखना शुरू किया। उनकी पहली कहानी 1901 में “सरस्वती” पत्रिका में प्रकाशित हुई। उनका पहला उपन्यास “असरारे मआबिद” (देवस्थान रहस्य) उर्दू में था। धीरे-धीरे वे हिंदी की ओर मुड़े और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
नाम परिवर्तन: धनपतराय से प्रेमचंद
प्रारंभ में वे “नवाब राय” के नाम से लिखते थे, लेकिन सरकार की ओर से उनकी कृति “सोज़े वतन” पर प्रतिबंध लगने के बाद उन्होंने “प्रेमचंद” नाम अपना लिया। यह नाम हिंदी साहित्य में अमर हो गया।
प्रेमचंद की लेखन शैली और विषयवस्तु
यथार्थवादी लेखन (Realistic Writing)
प्रेमचंद पहले लेखक थे जिन्होंने भारतीय गांव, किसान, दलित, मजदूर, स्त्री और निम्न वर्ग की समस्याओं को प्रमुखता से उठाया। उनका लेखन आदर्शवाद और यथार्थवाद का सुंदर संगम है।
सामाजिक सुधार पर बल
उनकी रचनाओं का उद्देश्य समाज में सुधार लाना था। वे दहेज प्रथा, विधवा विवाह, जातिगत भेदभाव, सामंतवाद और अंग्रेज़ी शासन के अत्याचारों पर खुलकर लिखते थे।
प्रमुख कृतियाँ
उपन्यास:
- गोदान (1936) – भारतीय किसान की त्रासदी का यथार्थ चित्रण।
- गबन – मध्यवर्गीय जीवन और स्त्रियों की स्थिति।
- सेवासदन – वेश्यावृत्ति और स्त्री की सामाजिक स्थिति।
- रंगभूमि – सामंतवाद और समाज का संघर्ष।
- कर्मभूमि – गांधीवादी विचारधारा और सामाजिक आंदोलन।
कहानियाँ:
प्रेमचंद की कहानियाँ भावनात्मक गहराई और सामाजिक संवेदनशीलता से भरी हैं। कुछ लोकप्रिय कहानियाँ:
- पूस की रात
- ईदगाह
- कफन
- नमक का दरोगा
- ठाकुर का कुआँ
प्रेमचंद का पत्रकारिता में योगदान
उन्होंने “हंस” और “जमाना” जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया। इन पत्रिकाओं के माध्यम से उन्होंने अपने विचारों को व्यापक जनसमूह तक पहुँचाया।
प्रेमचंद और गांधीवाद
प्रेमचंद महात्मा गांधी से प्रभावित थे। उनका उपन्यास “कर्मभूमि” गांधीवादी विचारों पर आधारित है। वे मानते थे कि साहित्यकार को समाज में परिवर्तन लाने का माध्यम बनना चाहिए, और उन्होंने यह कार्य निष्ठा से किया।
व्यक्तिगत जीवन
प्रेमचंद का जीवन सरल, त्यागमय और संघर्षों से भरा था। उन्होंने दो विवाह किए। दूसरी पत्नी शिवरानी देवी स्वयं भी लेखिका थीं। पारिवारिक जिम्मेदारियों और आर्थिक संकटों के बावजूद उन्होंने लेखन नहीं छोड़ा।
अंतिम समय और मृत्यु
जीवन के अंतिम वर्षों में वे गंभीर रूप से बीमार हो गए थे। 8 अक्टूबर 1936 को वे इस दुनिया को अलविदा कह गए। परन्तु उनकी लेखनी आज भी जीवित है — प्रेरणास्रोत बनकर।
प्रेमचंद की विरासत
हिंदी साहित्य का आधार स्तंभ
मुंशी प्रेमचंद को “उपन्यास सम्राट” कहा जाता है। उनकी कृतियाँ आज भी पाठ्यक्रम में पढ़ाई जाती हैं और साहित्यिक विमर्श का केंद्र बनी हुई हैं।
सिनेमा और टेलीविज़न में छवि
उनकी कहानियों और उपन्यासों पर आधारित कई फिल्में और टीवी धारावाहिक बने हैं, जैसे “शतरंज के खिलाड़ी”, “गोदान” और “ईदगाह”।
Q. मुंशी प्रेमचंद का असली नाम क्या था?
A: धनपतराय श्रीवास्तव।
Q. मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध रचनाएँ कौन-कौन सी हैं?
A: गोदान, गबन, सेवासदन, रंगभूमि, कफन, पूस की रात।
Q. मुंशी प्रेमचंद को उपन्यास सम्राट क्यों कहा जाता है?
A: उन्होंने हिंदी और उर्दू साहित्य को यथार्थवाद और सामाजिक सरोकार से जोड़ा, जिससे वे आमजन की आवाज़ बन गए।
Q. प्रेमचंद का कौन सा उपन्यास किसान की पीड़ा पर आधारित है?
A: गोदान।
निष्कर्ष: साहित्य के सच्चे कर्मयोगी
मुंशी प्रेमचंद वह दीपक हैं, जिन्होंने अंधेरे समाज में अपने विचारों की रोशनी से रास्ता दिखाया। वे आज भी प्रासंगिक हैं क्योंकि उनके द्वारा उठाए गए मुद्दे आज भी समाज में जीवंत हैं। वे केवल एक साहित्यकार नहीं, बल्कि समाज के सजग प्रहरी और भारतीय आत्मा की आवाज़ थे।
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