ग्रिगोरी रासपुतिन (जन्म: 22 जनवरी 1869 – मृत्यु: 30 दिसंबर 1916) एक साइबेरियन किसान और रहस्यमयी साधु था, जिसकी कहानी आज भी दुनिया को हैरान करती है। रूस के तुयुमेन क्षेत्र के पास स्थित पोख्रोवस्कोए गांव में जन्मे रासपुतिन, पढ़ाई के बावजूद अनपढ़ ही रहे और अपने भोग-विलास भरे जीवन के कारण उन्हें “रासपुतिन” नाम मिला, जिसका मतलब होता है – “भ्रष्ट या बिगड़ा हुआ व्यक्ति”।
रहस्यवादी साधु की शुरुआत
रासपुतिन का जीवन एक साधारण किसान के रूप में शुरू हुआ। 18 साल की उम्र में उसका एक रहस्यमयी धार्मिक अनुभव हुआ, जिसके बाद उसने आध्यात्मिक रास्ता चुना। वह वेरखोटुरे के एक मठ गया और वहाँ “ख्लिस्ती” नामक एक कट्टर धार्मिक संप्रदाय से जुड़ा। लेकिन रासपुतिन ने उनकी शिक्षाओं को विकृत कर दिया। उसने प्रचार किया कि “पवित्र शांति” की अवस्था तक पहुँचने के लिए लंबे समय तक भोग-विलास और यौन थकावट जरूरी है।
हालाँकि वह कभी मठवासी नहीं बना। 19 साल की उम्र में उसने प्रोस्कोव्या फ्योडोरोवना से शादी की और उसके चार बच्चे हुए। फिर भी वह घर नहीं बंधा। उसने ग्रीस के माउंट एथोस और यरूशलम की यात्रा की, जहाँ उसने ग्रामीणों से दान लेकर जीवन बिताया। इन यात्राओं के दौरान ही रासपुतिन ने खुद को एक चमत्कारी “संत” या “स्तारेत्स” के रूप में प्रस्तुत करना शुरू कर दिया।
शाही दरबार में रासपुतिन
1903 में रासपुतिन रूस की राजधानी सेंट पीटर्सबर्ग पहुँचा। वहाँ के धार्मिक अधिकारी थियोफन और हरमोजेन ने उसे स्वीकार किया। उस समय शाही दरबार में रहस्यवाद और आध्यात्मिक शक्तियों का बहुत आकर्षण था। गंदे कपड़े पहनने वाला, बिखरे बालों और चमकदार आँखों वाला रासपुतिन वहाँ के दरबारियों को बेहद रहस्यमय और शक्तिशाली लगा।
1905 में रासपुतिन की मुलाकात रूस के राजा निकोलस द्वितीय और रानी एलेक्ज़ैंड्रा से हुई। उनका बेटा एलेक्सी एक गंभीर बीमारी “हीमोफीलिया” से पीड़ित था, जिसमें खून रुकता नहीं था। 1908 में एक बार जब एलेक्सी की हालत बहुत बिगड़ी, तब रासपुतिन को महल बुलाया गया। रासपुतिन ने लड़के की हालत में आश्चर्यजनक सुधार कर दिया—शायद सम्मोहन के जरिए। जाते समय उसने राजा-रानी से कहा, “इस बच्चे और आपके राजवंश का भाग्य मुझसे जुड़ा है।”
रासपुतिन की दोहरी जिंदगी
शाही परिवार के सामने रासपुतिन एक विनम्र संत बना रहा, लेकिन दरबार के बाहर वह वही पुराना रासपुतिन था—भोग-विलासी, महिलाओं के साथ संबंध बनाने वाला और खुद को “पवित्र स्पर्श” देने वाला बताने वाला। कई महिलाएं उसकी “चमत्कारी शक्तियों” से प्रभावित होकर उसके पास जातीं, लेकिन वह अक्सर उनका शोषण करता।
जब राजा निकोलस तक रासपुतिन की करतूतों की खबर पहुँची, तब भी उन्होंने उसे “पवित्र व्यक्ति” मानना बंद नहीं किया। जो लोग रासपुतिन की आलोचना करते, उन्हें पद से हटा दिया जाता या दूर भेज दिया जाता।
रूस पर रासपुतिन का नियंत्रण
1911 तक रासपुतिन की गतिविधियाँ सार्वजनिक रूप से शर्मनाक बन चुकी थीं। प्रधानमंत्री पी.ए. स्टोलिपिन ने राजा को उसकी हरकतों की रिपोर्ट सौंपी। राजा ने उसे दरबार से निकाल दिया, लेकिन रानी एलेक्ज़ैंड्रा ने कुछ महीनों में ही रासपुतिन को वापस बुलवा लिया।
1915 में जब प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था, तब राजा ने सेना की कमान अपने हाथ में ली और मोर्चे पर चला गया। रूस की आंतरिक सत्ता रानी के पास आ गई, और रासपुतिन बन गया उसका मुख्य सलाहकार। अब रासपुतिन का प्रभाव मंत्री चुनने से लेकर चर्च के उच्च पदों तक पहुँच गया। वह जिन लोगों को चुनता था, वे अक्सर अयोग्य और अवसरवादी होते थे। रासपुतिन ने सैन्य मामलों में भी हस्तक्षेप किया, जिससे रूस को नुकसान हुआ।
रासपुतिन किसी राजनीतिक दल का समर्थक नहीं था, लेकिन वह हर उस व्यक्ति का विरोध करता था जो राजशाही या उसके खिलाफ होता।
रासपुतिन की हत्या: एक साज़िश
1916 तक स्थिति इतनी बिगड़ चुकी थी कि कई लोगों ने रासपुतिन को खत्म करने की योजना बनाई। एक गुप्त साजिश रची गई, जिसमें शामिल थे – राजकुमारी के पति प्रिंस फेलिक्स यूसुपोव, ड्यूमा के सदस्य व्लादिमीर पुरिशकेविच और ज़ार का चचेरा भाई ग्रैंड ड्यूक दिमित्री।
29-30 दिसंबर की रात को रासपुतिन को यूसुपोव के घर बुलाया गया। कहा जाता है कि उसे ज़हर मिला शराब और केक दिए गए, लेकिन वह मरा नहीं। घबराकर यूसुपोव ने उसे गोली मार दी। रासपुतिन गिरा, लेकिन फिर उठकर भागने लगा। तब पुरिशकेविच ने उसे फिर गोली मारी। फिर conspirators ने उसके शरीर को बाँधा और बर्फ में छेद कर नेवा नदी में फेंक दिया।
हालांकि, बाद में की गई पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आया कि रासपुतिन की मौत गोली लगने से हुई थी, न कि डूबने से।
रासपुतिन: एक रहस्य
रासपुतिन का जीवन आज भी इतिहास का सबसे रहस्यमयी अध्याय बना हुआ है। उसने एक साधारण किसान से लेकर रूस के सबसे शक्तिशाली दरबारी तक का सफर तय किया। क्या वह वास्तव में चमत्कारी व्यक्ति था? या फिर एक चालाक धोखेबाज़ जिसने लोगों की भावनाओं से खेला?
रासपुतिन की कहानी इस सवाल को हमेशा ज़िंदा रखती है कि क्या आध्यात्मिकता के पीछे छिपे चेहरे हमेशा पवित्र होते हैं? या फिर कभी-कभी वे किसी राष्ट्र के विनाश की कहानी भी लिख सकते हैं?
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