Sant Tukaram: अभंग की अमर वाणी और सामाजिक चेतना के संत

Aanchalik Khabre
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Sant Tukaram

भूमिका:

भारत की संत परंपरा में अनेक महापुरुष हुए हैं जिन्होंने जनमानस को ईश्वर के निकट लाने का कार्य किया। परंतु कुछ संत ऐसे होते हैं जो केवल भक्ति नहीं, बल्कि समाज की आत्मा में क्रांति का संचार करते हैं। Sant Tukaram उन्हीं विभूतियों में से एक थे। वे न केवल एक महान संत और कवि थे, बल्कि एक समाज सुधारक, आध्यात्मिक शिक्षक और मानवता के पुजारी भी थे।

उनकी रचनाएँ – अभंग – महाराष्ट्र की जनता के हृदय में आज भी गूंजती हैं। Sant Tukaram ने भक्ति को केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे जीवन की गहराई में उतारा। वे कहते थे: “भक्ति में आत्मा की सच्चाई होनी चाहिए, पाखंड नहीं।”


Sant Tukaram का जीवन परिचय:

Sant Tukaram का जन्म लगभग 1608 ईस्वी में महाराष्ट्र के पुणे जिले के देहु गांव में एक कुणबी मराठा परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम बुलेश्वर और माता का नाम कन्बाई था। परिवार वैश्य जाति से था और व्यवसाय करते थे।

बाल्यकाल में ही Sant Tukaram ने धार्मिक प्रवृत्तियों में रुचि लेनी शुरू कर दी थी। जब वे किशोर अवस्था में पहुँचे, तभी भयंकर अकाल और पारिवारिक अस्थिरता ने उन्हें सांसारिक जीवन से विरक्त कर दिया। अपनी पत्नी और पुत्र की मृत्यु के बाद उनका जीवन पूरी तरह आध्यात्मिक साधना की ओर मुड़ गया।


Sant Tukaram और वारकरी परंपरा:

Sant Tukaram महाराष्ट्र की वारकरी परंपरा के प्रमुख संत थे। यह परंपरा श्रीविठोबा (विट्ठल) की भक्ति पर आधारित है, जो पंढरपुर में स्थित हैं। Sant Tukaram ने पंढरपुर के विठोबा को अपना आराध्य माना और उन्हें “माझा देवा” कहकर संबोधित किया।

वारकरी परंपरा की प्रमुख विशेषता है – जातिवाद विरोध, पाखंड से संघर्ष, कर्म की महिमा और हर व्यक्ति में ईश्वर की उपस्थिति का भाव। इन मूल्यों को Sant Tukaram ने अपने अभंगों के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाया।


Sant Tukaram की भक्ति का स्वरूप:

Sant Tukaram की भक्ति निराकार से अधिक साकार रूप में विठोबा के प्रति केंद्रित थी, परंतु उनका दृष्टिकोण अत्यंत उदार और व्यापक था। वे कहते थे:

“देव माझ्या अंतरी, मग का शोधावा मंदिरी?”
(ईश्वर मेरे भीतर है, फिर क्यों मंदिर ढूँढूँ?)

उनकी भक्ति आत्म-निरीक्षण पर आधारित थी। वे बाह्याचार, मूर्तिपूजा की जड़ता और कर्मकांड की नकल का विरोध करते थे। Sant Tukaram ने यह संदेश दिया कि ईश्वर को पाने के लिए आडंबर नहीं, सच्चा हृदय और नम्रता चाहिए।


Sant Tukaram के अभंग: जीवन और भक्ति का संगम

Sant Tukaram की सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक देन उनके “अभंग” हैं। अभंग मराठी भाषा की एक काव्य विधा है, जो भगवान से संवाद और समाज से प्रश्न दोनों करती है। उन्होंने लगभग 4000 से अधिक अभंग रचे, जिनमें भगवान विठोबा से प्रेम, समर्पण, समाज की कुरीतियों पर कटाक्ष और आत्म-विश्लेषण का स्वर मिलता है।

कुछ प्रसिद्ध अभंग:

  • “जनी माजे गुण गायले”
  • “तुका म्हणे धावा विठोबा, माझे मना”
  • “आतां विश्वासी हेचि खरे, भक्ती विनाय कोणी न सरे”

इन अभंगों में संत तुकाराम की भाषा अत्यंत सरल, गेय और जनमानस के निकट थी। उन्होंने कभी भी विद्वानों की संस्कृत या ब्राह्मणों की भाषा को अपनाने का प्रयास नहीं किया – उन्होंने जन की भाषा को ही भक्ति का माध्यम बनाया।


Sant Tukaram और सामाजिक क्रांति:

Sant Tukaram ने जाति-प्रथा, ब्राह्मणवाद, कर्मकांड, पाखंड और धार्मिक ठेकेदारी का प्रखर विरोध किया। उन्होंने कहा:

“जात पात न लगे भक्तीला”
(भक्ति में जात-पात का कोई स्थान नहीं)

Sant Tukaram ने यह साफ किया कि ब्राह्मण होना केवल जन्म का प्रश्न नहीं, बल्कि कर्म, ज्ञान और नम्रता का विषय है। उन्होंने स्त्रियों, शूद्रों, दलितों, और किसानों को भी भक्ति के अधिकार दिए और उन्हें संग कीर्तन, भजन और सत्संग में आमंत्रित किया।


Sant Tukaram और आत्मबोध:

Sant Tukaram केवल भक्ति ही नहीं, बल्कि आत्मज्ञान के कवि भी थे। उन्होंने आत्मा और परमात्मा के संबंध, संसार के मोह, मृत्यु के भय, और अहंकार के विनाश जैसे विषयों पर अद्भुत चिंतन प्रस्तुत किया।

उनका यह अभंग प्रसिद्ध है:

“तुका म्हणे आयुष्य स्वप्नाहून फसवे,
साचे गा साजणे, नाम विठोबा वाचवे”

(तुकाराम कहते हैं, यह जीवन एक भ्रम है, केवल भगवान का नाम ही सच्चा है)


Sant Tukaram और संत ज्ञानेश्वर का संबंध:

Sant Tukaram ने संत ज्ञानेश्वर के कार्य से प्रेरणा ली और उन्हें “ज्ञानोबा माऊली” कहकर सम्मानित किया। वे ज्ञानेश्वरी (भगवद्गीता का मराठी अनुवाद) को अत्यंत श्रद्धा से पढ़ते थे।

संत नामदेव, चोखामेला, एकनाथ, और ज्ञानेश्वर – इन सभी संतों की परंपरा का समन्वय Sant Tukaram की वाणी में दिखाई देता है।


Sant Tukaram की मृत्यु और शरीर का अंतर्द्धान:

Sant Tukaram के जीवन की सबसे रहस्यमयी घटना उनका अंतर्द्धान (शरीर सहित स्वर्गारोहण) है। ऐसा माना जाता है कि 1649 ई. में, भक्ति और कीर्तन करते-करते वे भगवान विठोबा के विमान में बैठकर शरीर सहित बैकुंठ चले गए।

यह घटना महाराष्ट्र की लोक-चेतना में आज भी “तुकाराम बीज” के रूप में पूजनीय है।


Sant Tukaram का प्रभाव और प्रेरणा:

Sant Tukaram ने केवल अपने समय को नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित किया। छत्रपति शिवाजी महाराज Sant Tukaram के अनुयायी थे और उन्होंने कई बार उनसे मार्गदर्शन प्राप्त किया।

आज भी Sant Tukaram के अभंग महाराष्ट्र के हर गाँव, हर मंदिर, हर वारकरी जत्थे में गूंजते हैं। पुणे से पंढरपुर तक की वारी यात्रा में लाखों वारकरी तुकाराम की पालखी लेकर भक्ति की मिसाल कायम करते हैं।


Sant Tukaram की आज की प्रासंगिकता:

आज जब धर्म पाखंड और राजनीति का साधन बन रहा है, जब जाति और ऊँच-नीच की दीवारें फिर से खड़ी हो रही हैं, तब Sant Tukaram की वाणी अत्यंत प्रासंगिक हो जाती है।

वे हमें सिखाते हैं:

  • धर्म वह नहीं जो वाद-विवाद करे, धर्म वह है जो सबको अपनाए।
  • भक्ति का मार्ग आडंबर नहीं, सरलता और सच्चाई है।
  • संत का जीवन सेवा, नम्रता और आत्म-बोध से परिपूर्ण होना चाहिए।

Sant Tukaram: एक दृष्टि (सारणी रूप में)

विषय विवरण
जन्म लगभग 1608, देहु, महाराष्ट्र
मृत्यु 1649 (कथित शरीर सहित वैकुंठ गमन)
भाषा मराठी
रचनाएँ 4000+ अभंग
प्रमुख आराध्य श्री विठोबा (विट्ठल)
परंपरा वारकरी संप्रदाय
प्रभाव संत शिवाजी, संत नामदेव, वारकरी परंपरा
प्रेरणा ज्ञानेश्वर, नामदेव, एकनाथ

प्रमुख उद्धरण (Quotes by/about Sant Tukaram):

  1. “तुका म्हणे, ओळखावा आत्मा, विठोबा नाही बाहेर”
  2. “Worship is not in rituals but in compassion and service.” – Inspired by Sant Tukaram
  3. “Sant Tukaram’s poetry is a revolution in spirituality and equality.” – Dr. S. Radhakrishnan

निष्कर्ष:

Sant Tukaram एक ऐसे संत थे जिन्होंने ईश्वर को केवल पूजा का विषय नहीं, बल्कि जीवन का साथी बना दिया। वे केवल मंदिरों के संत नहीं थे – वे खेतों, गलियों, जनजनों के संत थे। उनका जीवन हमें बताता है कि सच्ची भक्ति में न जाति होती है, न वेशभूषा, न भाषा – केवल प्रेम, समर्पण और सच्चाई होती है।

“Sant Tukaram की वाणी आज भी गूंजती है – भक्ती ही मुक्ती है, सेवा ही साधना है, और नाम ही जीवन का आधार है।”

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