भारतीय आध्यात्मिक चेतना के आकाश में यदि किसी आत्मा ने एक नवीन धर्म, एक नई सामाजिक चेतना और मानवता की एक वैश्विक दृष्टि दी, तो वे थे Guru Nanak Dev। वे न केवल सिख धर्म के संस्थापक थे, बल्कि एक युगद्रष्टा, समाज-सुधारक और आध्यात्मिक क्रांति के अग्रदूत भी थे। Guru Nanak Dev का जीवन, उनके उपदेश, यात्राएं और उनके द्वारा स्थापित सिद्धांत आज भी मानव समाज के लिए एक अमूल्य धरोहर हैं।
Guru Nanak Dev का जन्म और बाल्यकाल
Guru Nanak Dev का जन्म 15 अप्रैल 1469 को वर्तमान पाकिस्तान के ननकाना साहिब (तत्कालीन तलवंडी) में हुआ था। उनके पिता का नाम मेहता कालू चंद और माता का नाम तृप्ता देवी था। वे खत्री जाति के बेदी वंश से संबंधित थे।
बाल्यकाल से ही Guru Nanak Dev असाधारण प्रतिभा के धनी थे। वे सांसारिक विषयों में कम और अध्यात्म में अधिक रुचि रखते थे। वे अपने प्रश्नों और विचारों से अक्सर अपने गुरुजन और परिजनों को चकित कर देते थे।
आध्यात्मिक जागरण और परम सत्य की खोज
Guru Nanak Dev के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटना तब घटी जब वे करीब 30 वर्ष के थे। वे एक बार बेइन नदी में स्नान करने गए और तीन दिन तक लापता रहे। जब वे लौटे, तो उन्होंने कहा –
“ना कोई हिंदू, ना मुसलमान”।
यह वाक्य उस युग की सांप्रदायिकता और धार्मिक भेदभाव के विरुद्ध एक मौन क्रांति था। उन्होंने यह घोषणा की कि ईश्वर एक है और वह सभी का है।
Guru Nanak Dev की यात्राएं (उदासियाँ)
Guru Nanak Dev ने अपने जीवनकाल में चार प्रमुख यात्राएं (उदासियाँ) कीं, जो भारत से लेकर मक्का, बगदाद, तिब्बत और श्रीलंका तक फैली हुई थीं। इन यात्राओं का उद्देश्य था:
- सत्य का प्रसार
- जातिवाद, अंधविश्वास, मूर्तिपूजा और पाखंड का विरोध
- ईश्वर की एकता और नाम-स्मरण की महिमा का प्रचार
इन यात्राओं में उन्होंने हिंदू, मुस्लिम, सूफी, जैन, बौद्ध, और अन्य मतों के विद्वानों से संवाद किया। Guru Nanak Dev का तरीका तर्क, प्रेम और करुणा पर आधारित था।
Guru Nanak Dev की शिक्षाएं
Guru Nanak Dev के उपदेशों को तीन प्रमुख सिद्धांतों में समाहित किया जा सकता है:
- नाम जपो – ईश्वर के नाम का निरंतर स्मरण करो।
- किरत करो – ईमानदारी से श्रम करो।
- वंड छको – अपने अर्जन को दूसरों के साथ बाँटो।
इन सिद्धांतों ने आध्यात्मिकता को व्यवहारिक जीवन से जोड़ा। Guru Nanak Dev ने यह भी कहा कि केवल बाहरी कर्मकांड से मुक्ति नहीं मिलती, बल्कि मन की पवित्रता आवश्यक है।
सामाजिक सुधारक के रूप में Guru Nanak Dev
Guru Nanak Dev ने कई सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया:
- जातिवाद: उन्होंने कहा, “जात पात पूछे न कोई, हरि को भजे सो हरि का होई।”
- नारी पर अत्याचार: उन्होंने नारी को सम्मान देते हुए कहा – “सो क्यों मंदा आखिए, जित जमे राजान।”
- धार्मिक पाखंड: उन्होंने तीर्थों, बलि-प्रथा, ढोंग और आडंबर का विरोध किया और कहा कि सच्चा तीर्थ मन की शुद्धता है।
- साम्प्रदायिकता: उन्होंने न तो हिंदू रीति को श्रेष्ठ बताया, न मुस्लिम रीति को गलत। उन्होंने सत्य की साधना को ही धर्म का सार बताया।
Guru Nanak Dev और सिख धर्म की नींव
Guru Nanak Dev ने कोई औपचारिक धर्म की स्थापना नहीं की थी, लेकिन उनके अनुयायियों की संख्या निरंतर बढ़ती गई। उन्होंने “सतनाम”, “एक ओंकार” और “नाम-स्मरण” को धर्म का मूल बताया।
उनके बाद सिख धर्म को गुरुओं ने संगठित रूप दिया, लेकिन उसकी नींव Guru Nanak Dev के सिद्धांतों पर ही आधारित थी। उन्होंने लंगर प्रणाली (सामूहिक भोजन) की शुरुआत की, जहाँ सभी जाति-वर्ग के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते थे।
Guru Nanak Dev की वाणी और गुरु ग्रंथ साहिब
Guru Nanak Dev की वाणी आज गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित है। उनकी भाषा सजीव, सरल और हृदयस्पर्शी थी। वे हिंदी, पंजाबी, फारसी, बृज और संस्कृत का मिश्रण बोलते थे, जिससे सभी वर्गों तक उनकी बात पहुँचती थी।
उनकी प्रमुख रचनाएं:
- जपुजी साहिब: प्रत्येक सिख दिन की शुरुआत इसी पाठ से करता है।
- आसा दी वार
- बारहमाहा
- सिद्ध गोष्ठी
इनमें उन्होंने आध्यात्मिक अनुभवों, जीवन के अर्थ, ईश्वर की महिमा और मानवता की सेवा पर बल दिया।
Guru Nanak Dev के प्रमुख संदेश: सारणी के रूप में
संदेश | विवरण |
---|---|
एक ओंकार | ईश्वर एक है, जो सबका है |
नाम जपो | निरंतर ईश्वर का स्मरण |
कीरत करो | ईमानदारी से श्रम |
वंड छको | कमाई का बाँटना |
नारी का सम्मान | स्त्री को ईश्वर की अद्भुत रचना मानना |
जातिवाद का विरोध | सभी मनुष्य बराबर हैं |
सेवा भाव | मानव सेवा को परम सेवा मानना |
Guru Nanak Dev का निधन और उत्तराधिकार
Guru Nanak Dev ने अपना उत्तराधिकारी भाई लहणा (जो बाद में Guru Angad Dev कहलाए) को बनाया। उन्होंने 22 सितंबर 1539 को करतारपुर (अब पाकिस्तान में) में अपने शरीर का त्याग किया।
उनके अनुयायियों में कुछ ने उनके सम्मान में हिंदू रीति से अंतिम संस्कार की बात की, तो कुछ ने मुस्लिम तरीके से। किंवदंती है कि जब उनका शव उठाने के लिए कपड़ा हटाया गया, तो वहाँ केवल फूल मिले – जिन्हें दोनों समुदायों ने अपनी-अपनी परंपरानुसार संस्कारित किया।
Guru Nanak Dev की आज की प्रासंगिकता
आज जब दुनिया धर्म के नाम पर बंटी हुई है, जब भौतिकता ने आध्यात्मिकता को पीछे छोड़ दिया है, तब Guru Nanak Dev की शिक्षाएं पहले से अधिक महत्वपूर्ण हो गई हैं।
- धर्म को आडंबर नहीं, सेवा और प्रेम बनाना
- नारी को गरिमा देना
- जात-पात से ऊपर उठकर समभाव रखना
- परिश्रम, ईमानदारी और बाँटने की संस्कृति अपनाना
Guru Nanak Dev के प्रभाव की झलक
- भारत में सिख धर्म का उदय
- पंजाब से लेकर कनाडा तक गुरुद्वारों की स्थापना
- लंगर सेवा: आज दुनिया के कोने-कोने में गुरुद्वारे भूखों को भोजन दे रहे हैं
- गुरु पर्व: हर साल लाखों लोग Guru Nanak Dev का प्रकाशोत्सव मनाते हैं
निष्कर्ष
Guru Nanak Dev केवल एक धार्मिक गुरु नहीं थे, वे मानवता के प्रतिनिधि, आध्यात्मिक क्रांतिकारी और युगद्रष्टा थे। उन्होंने न किसी मजहब को तोड़ा, न नया धर्म बनाया, बल्कि सत्य, करुणा और सेवा का एक ऐसा पुल बनाया जिस पर चलकर कोई भी आत्मज्ञान पा सकता है।
उनकी वाणी आज भी प्रेरणा देती है:
“ना को बैरी, नाही बेगाना, सगल संग हमको बन आई।”
आज की पीढ़ी को Guru Nanak Dev से यह सीख लेनी चाहिए कि धार्मिकता केवल पूजा में नहीं, जीवन जीने के तरीकों में होनी चाहिए।