अमरोहा से उजागर शिक्षा की सच्चाई: टपकती छतें, बंद स्कूल और प्रधान के घर में चलती कक्षाएं

Aanchalik Khabre
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गढ़ावली स्कूल

अमरोहा का गढ़ावली गांव — कहानी सिर्फ एक स्कूल की नहीं

उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के गढ़ावली गांव के प्राथमिक विद्यालय में 305 बच्चों का नामांकन है। लेकिन स्कूल भवन की हालत ऐसी बदतर है कि पढ़ाई ग्राम प्रधान के घर में जारी है:

स्कूल की छतें टपकती हैं, चौचार (चार) कमरों की दीवारें गिरने की कगार पर हैं।

प्रधानाध्यापिका कुमारी पूनम ने एक वर्ष से मरम्मत के लिए विभाग को आवेदन भेजा है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। वे कहती हैं कि “जब तक मैं इस विद्यालय में हूं, तब तक बच्चों को इन खतरनाक कमरों में नहीं बैठने दूंगी – चाहे मुझे तनख्वाह से किराए का मकान लेना पड़े।”

बारिश में पानी भर जाता है, बच्चों को स्कूल भेजना खतरनाक लगता है।

सुरक्षा जोड़ है: स्कूल के बगल से रेलवे लाइन गुजरती है, लगभग 60 बच्चे उसे पार करके आते हैं, और स्कूल स्टाफ ही उनकी सुरक्षा देखता है।

उचित खेल का मैदान नहीं, रसोई भी नहीं, मिड‑डे मील पुराने ऑफिस में बनती है जो क्लासरूम बना दिया गया है।

खंड शिक्षा अधिकारी के निर्देश पर ग्राम प्रधान अर्चना देवी के घर को क्लासरूम बनाया गया। विभाग की सिर्फ आश्वासन देने की नीति यहाँ विफल साबित हो रही है।

यह केवल एक गांव की कहानी नहीं है—यह लाखों बच्चों की आवाज़ है जो बुनियादी शिक्षा, संरचना एवं सुरक्षा की लड़ाई लड़ रहे हैं।

उत्तर प्रदेश की प्राथमिक स्कूलों की मौजूदा स्थिति

Basic infra vs real ground
सरकार का दावा है कि ‘Operation Kayakalp’ के तहत मार्च 2025 तक लगभग 97% सरकारी विद्यालयों में बुनियादी सुविधाएँ (शौचालय, जल, बिजली, boundary wall) हैं

लेकिन अगस्त 2025 में अमर उजाला ने प्रमुख जिलों में बहुत सारे भवनों की जर्जर स्थिति की पुष्टि की—टपकती छतें, गंदे व अंधेरे कमरे, दीवारें गिरना तय जैसी स्थिति

नोएडा के सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में भारी वर्षा से जल भराव, छतों से रिसाव और असुरक्षित कक्षाएं हुईं, कई कक्षाएं पूरी तरह बंद कर दी गईं। निजी स्रोतों के मुताबिक सालाना बजट केवल ₹50‑75 हज़ार तक सीमित है, जिसका अधिकांश हिस्सा सामग्री पर खर्च होता है, मरम्मत के लिए अपर्याप्त

स्कूलों का विलय (merger) नीति: फायदे और नुकसान

जुलाई 2025 तक राज्य सरकार ने 10,827 कम नामांकन वाले प्राथमिक विद्यालयों को मर्ज़ किया, ताकि संसाधन समेकित किए जा सकें; खाली हुए भवनों को अंगनवाड़ी/बालवाटिका में परिवर्तित किया जाएगा

सबसे पहले जून 2025 की सरकार की नीति लागू हुई, लेकिन विरोध के बाद जुलाई अंत में संशोधन किया गया—अब 50 से अधिक नामांकन वाले स्कूल, और 1 किमी या रेल/नदी पार करने वाले स्कूलों को विलय से बाहर रखा गया

शिक्षक‑संस्थान और अनुपस्थिति

राज्य में स्टाफ रिक्तियों की भारी संख्या—लगभग 2 लाख शिक्षण पद खाली हैं (प्रधानाचार्य, सहायक शिक्षक समेत)। केवल प्राथमिक स्तर पर ही नहीं बल्कि माध्यमिक स्तर पर भी परेशानी

CBGA/CRY रिपोर्ट के अनुसार प्रति‑छात्र खर्च ₹9,167 है जबकि राष्ट्रीय औसत ₹12,768

ग्रामीण स्कूलों में अध्ययन बताता है कि UP में शिक्षक अनुपस्थिति अनुपात ~31% है—राष्ट्रकीय सर्वेक्षण में सर्वाधिक राज्यों में शुमार

सीखने के परिणाम में सुधार

Pratham के ASER 2024 रिपोर्ट के अनुसार, कक्षा III के छात्रों में जो कक्षा II की पाठ पढ़ सकते हैं, उनकी संख्या 2024 में 28%, यह 2016 (7%) की तुलना में चार गुना से अधिक है; कक्षा V में 51% पढ़ सकते हैं (2016 में केवल 24%)

गणितीय क्षमता भी सुधार में मिली: subtraction/division जैसे गुणात्मक सुधार स्पष्ट।

बिजली, टॉयलेट, किताब‑पढाई सुविधाओं में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है

नई समीक्षा और सुरक्षात्मक पहल

अगस्त 2025 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने “comprehensive infrastructure review” का आदेश दिया है। हर जिला‑ स्तर पर टीम बनाकर संरचनात्मक, स्वच्छता, विद्युत, जल, फर्नीचर आदि की जांच हो रही है। असुरक्षित भवनों में अस्थायी व्यवस्था और मरम्मत/विनिर्माण पर तत्काल ध्यान देने का निर्देश

साथ ही, आज 5 अगस्त 2025 को UP सरकार ने खतरनाक भवनों की पहचान कर उनके ध्वस्त या सील किए जाने की प्रक्रिया तेज़ करदी है, और अस्थायी पाठशालाएं पंचायत या सचिवालय भवनों में संचालित करने की अधिसूचना भी जारी की है

 

विश्लेषण: गढ़ावली से लेकर पूरे प्रदेश तक – क्या जमीनी हकीकत तस्वीर के साथ मेल खाती है?

संरचनात्मक चूक: नीति बन गई पर देखरेख कहाँ?

गढ़ावली का प्राथमिक विद्यालय केवल एक उदाहरण नहीं, बल्कि उन हजारों स्कूलों में से एक है जहां भवन की जर्जर स्थिति है, बावजूद इसके विभागीय नजर में कोई सुधार नहीं हुआ।

अमर उजाला और Noida रिपोर्ट से स्पष्ट है कि कई जिलों में स्कूलों की संरचना असुरक्षित है

जब मुख्यमंत्री स्वयं समीक्षा के निर्देश दे रहे हैं और उच्च स्तरीय रिपोर्ट तैयार हो रही है, तब भी क्यों इतने विद्यालय निरीक्षण की प्रक्रिया से छूट जाते हैं? यह क्रियान्वयन में भारी कमी दर्शाता है।

शिक्षा का अधिकार और सामाजिक‑सुरक्षा त्रुटि

बच्चों की सुरक्षा (जैसे रेल लाइन पार करना) प्राथमिकता सीमित तक सीमित है, लेकिन गढ़ावली की तरह स्थानों पर सुरक्षा उपाय मानक से बहुत पीछे हैं।

विलय नीति ने दूरदराज़ क्षेत्रों के बच्चों के लिए स्कूल बंद कर दूरी बढ़वाने जैसी चुनौतियाँ उत्पन्न कीं। संशोधन हुए, पर गढ़ावली जैसे गांव शायद विलय नीति में शामिल न हुए, या प्रशासन की नजरों से छूट गए।

इंफ्रा कवरेज और अनुपस्थिति में विरोधाभास
सरकार दावा कर रही है कि 97% स्कूलों में बुनियादी सुविधाएँ हैं, लेकिन जमीन पर अमर उजाला रिपोर्ट जैसी घटनाएँ बताती हैं कि प्लास्टर गिरना, टपकना, गंदगी और बंद कक्षाओं की समस्या व्यापक है

शिक्षक रिक्तता, अनुपस्थिति (31%) जैसी बातें एक तरफ, दूसरी ओर शिक्षण गुणवत्ता में ASER जैसे स्वतंत्र सर्वे के डेटा से सुधार भी मिलते हैं—पर यह सुधार बहु‑स्तरीय नीति प्रयास का परिणाम हो सकता है, लेकिन सुरक्षा‑संरचना के बिना दीर्घकालिक नहीं टिकेगा।

सीखने और संरचना का संतुलन

ASER रिपोर्ट में सुधार, डिजिटल कक्षाएं (smart classrooms), प्रशिक्षण (4.5 लाख शिक्षकों को प्रशिक्षित) जैसे कदम सकारात्मक हैं

लेकिन मौजूदा संरचनात्मक अस्थिरता बच्चों की शारीरिक सुरक्षा, नियमित उपस्थिति और मानसिक स्वास्थ्य पर सन्देह उत्पन्न करती है।

निष्कर्ष और सिफारिशें

तत्काल सुधार और स्थायी व्यवस्था
त्वरित निरीक्षण और मरम्मत — अमरोहा जैसे सभी जिलों में तकनीकी टीमों की त्वरित तैनाती, ध्वस्त/खतरनाक भवनों का नियत समय में पुनःनिर्माण ।

अस्थायी क्लासरूम का विकल्प — पंचायत भवन, ग्राम प्रधान कार्यालय जैसे सुरक्षित विकल्पों में अस्थायी शिक्षण व्यवस्था।

पुन: नामांकन और अवसंरचना ट्रैकिंग — खाली या जर्जर भवनों की पहचान कर उन्हें मॉनिटर्ड डेटाबेस में रखा जाए और मरम्मत की प्रगति बहाल रखी जाए।

शासन‑व्यवस्था में जवाबदेही और सामुदायिक भागीदारी
अनुभागीय पदाधिकारी, प्रधानाध्यापक और ब्लॉक‑स्तरीय अधिकारी तय क्षेत्र के स्कूलों की निगरानी करें।

पालक‑समिति व पंचायतों को सक्रिय करें, जिससे स्थानीय स्तर पर यदि शिकायत आए तो तुरंत सुधार किए जा सकें।

नीति‑स्तर सुधार

स्टाफ रिक्तियों को भरना और अनुपस्थिति पर नियंत्रण — स्थायी नियुक्तियों को सुनिश्चित किया जाए, अनुपस्थित शिक्षकों पर कार्रवाई हो।

मिड‑डे मील, पुस्तक आपूर्ति, न्यूनतम पढ़ाई सामग्री सुनिश्चित करना — Basti जैसे उदाहरणों से पता चलता है कि भोजन‑दूध में मिलावट, किताबों की कमी अभी भी बड़ी समस्या है

निष्कर्षस्वरूप

गढ़ावली की कहानी शिक्षा व्यवस्था की सीमा रेखा को स्पष्ट करती है: जहाँ शिक्षण गुणवत्ता सुधारने के पैमाने पर निश्चित कदम उठाए गए, वहीं संरचनात्मक सुरक्षा, प्रतिक्रिया तंत्र और आधार‑भूत संरचना कवरेज में बड़ी खामियाँ स्पष्ट रूप से मौजूद हैं।
जहाँ ASER‑जैसे सर्वे शिक्षण परिणामों में सकारात्मक प्रगति बताते हैं, वहीं भवनों की ज़र्जरता, पानी‑रिसाव और सुरक्षा‑कुछ भी, बच्चों के अधिकार और भविष्य को संकट में डाल सकते हैं। शिक्षा में सुधार तभी स्थायी होगा, जब सीखने और संरचना दोनों में संतुलन और जवाबदेही मिले।

इस तरह यह ना केवल अमरोहा की, बल्कि यूपी में लाखों बच्चों की आवाज बन चुकी है—बुनियादी शिक्षा की गुणवत्ता के लिए, संरचनात्मक सुरक्षा के लिए, और अधिकार के लिए लड़ाई।

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