अमेरिका की धमकियों के बीच रूस में भारत का ‘सुपर एक्टिव’ डिप्लोमैटिक मिशन – रणनीतिक स्वायत्तता का स्पष्ट संदेश

Aanchalik Khabre
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भारत-रूस

रूस और भारत के बीच कूटनीतिक गतिविधियाँ इन दिनों तेजी से बढ़ रही हैं। जहां अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत को बार-बार टैरिफ की धमकियां दे रहे हैं, वहीं भारत ने इन धमकियों को नजरअंदाज करते हुए रूस के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को और मजबूत करने का निर्णय लिया है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजित डोभाल रूस के दौरे पर हैं, और कुछ ही दिनों में विदेश मंत्री S. Jaishankar (एस. जयशंकर) भी रूस की यात्रा करेंगे।

यह घटनाक्रम इस बात का संकेत है कि भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति और रणनीतिक स्वायत्तता को लेकर पूरी तरह स्पष्ट है और किसी भी बाहरी दबाव के आगे झुकने के मूड में नहीं है। भारत ने अब तक कहीं भी यह नहीं कहा है कि वह रूस से कच्चा तेल खरीदना कम करेगा या पूरी तरह रोक देगा। इसके विपरीत, भारत ने रूस में अपना डिप्लोमैटिक मिशन और अधिक सक्रिय कर दिया है।

 

ट्रंप की चेतावनियां और भारत का जवाब

डोनाल्ड ट्रंप लगातार भारत पर 25% से ज्यादा टैरिफ लगाने की धमकी दे रहे हैं। उनका आरोप है कि भारत रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदकर उसे वैश्विक बाजार में ऊंचे दामों पर बेच रहा है, जिससे रूस की “वॉर मशीन” को मदद मिल रही है। लेकिन भारत ने इन दावों को खारिज करते हुए साफ कहा है कि उसकी प्राथमिकता राष्ट्रीय हित और आर्थिक सुरक्षा है।

भारत इस समय अपनी जरूरत का करीब 35-40% कच्चा तेल रूस से खरीद रहा है। 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले यह आंकड़ा केवल 0.2% था। भारत ने यह भी कहा है कि अगर रूसी तेल अन्य स्रोतों से सस्ता है, तो वह अपने नागरिकों को महंगा पेट्रोल क्यों दिलाए?

 

रूस के साथ गहराता सहयोग

NSA अजित डोभाल और उनके रूसी समकक्षों के बीच रक्षा सहयोग को लेकर बातचीत चल रही है। इसमें S-400 मिसाइल सिस्टम की अतिरिक्त खरीद, भारत में इसके रखरखाव की व्यवस्था, और Su-57 फाइटर जेट्स जैसे अत्याधुनिक हथियारों की खरीद की संभावना पर चर्चा की जा रही है।

इसके साथ ही भारत और रूस के बीच ऊर्जा सहयोग भी एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को स्थिर बनाए रखने और घरेलू ईंधन की कीमतों को काबू में रखने के लिए रूस से सस्ता तेल खरीदना भारत की रणनीति का हिस्सा है।

 

मोदी-पुतिन बैठक की तैयारी

डोभाल और जयशंकर की यात्राएं सिर्फ रक्षा और ऊर्जा तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह भी माना जा रहा है कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच प्रस्तावित शिखर सम्मेलन की जमीन तैयार कर रहे हैं। दोनों देशों के बीच 2000 से हर साल वार्षिक शिखर बैठकें होती हैं, और 2021 से 2+2 संवाद (विदेश व रक्षा मंत्रियों की संयुक्त बैठक) भी शुरू हो चुकी है।

 

भारत का स्पष्ट रुख

भारत ने अमेरिकी धमकियों को ‘अनुचित और अविवेकपूर्ण’ बताते हुए साफ कहा है कि वह अपने हितों की रक्षा के लिए हर आवश्यक कदम उठाएगा। रूस ने भी भारत का समर्थन करते हुए कहा है कि संप्रभु देशों को अपने साझेदार चुनने का पूरा अधिकार है।

इस पूरी स्थिति से एक बात स्पष्ट होती है – भारत अब दबाव में नहीं, बल्कि दृढ़ रणनीतिक सोच के साथ अपने विदेशी रिश्ते तय कर रहा है। अमेरिका की टैरिफ राजनीति के बीच भारत ने रूस के साथ अपनी साझेदारी और रणनीतिक स्वायत्तता दोनों को मजबूती से दोहराया है।

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