दिल्ली के वसंत विहार इलाके में 30 जुलाई को एक बार फिर से महिलाओं की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े हो गए जब एक महिला पर उसी आरोपी ने जानलेवा हमला कर दिया, जिस पर उसने पिछले साल बलात्कार का आरोप लगाया था। पीड़िता एक सैलून मैनेजर है, जिसने साहस के साथ आरोपी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। लेकिन उसकी यह बहादुरी उसे लगभग जान गंवाने की कीमत पर चुकानी पड़ी।
हमले की पूरी घटना
पीड़िता जब काम से लौट रही थी, तब वह एक ऑटो रिक्शा में सवार थी। तभी दो युवक पीछे से आए और ऑटो में घुसकर उस पर गोलियां चला दीं। हमले में शामिल दोनों युवकों में से एक वही बलात्कार आरोपी अबुज़ैर साफी है, जो कुछ हफ्ते पहले ही अंतरिम जमानत पर जेल से बाहर आया था।
पुलिस के अनुसार, आरोपी पिछले दो से तीन दिनों से महिला का पीछा कर रहा था और उसके आने-जाने के रूट पर नजर रख रहा था। महिला की दिनचर्या पर निगरानी रखने के बाद उसने इस हमले को अंजाम दिया।
पुलिस की कार्रवाई
घटना के तुरंत बाद दिल्ली पुलिस ने दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है और उन पर हत्या के प्रयास (Attempt to Murder) की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है। मामले की जांच में यह भी सामने आया है कि आरोपी महिला द्वारा दायर बलात्कार केस से नाराज़ था और बदला लेने की नीयत से यह हमला किया गया।
कानून व्यवस्था पर सवाल
यह घटना दिल्ली जैसे राजधानी शहर में महिला सुरक्षा की स्थिति पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाती है। एक ओर जहां सरकार “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसे नारे देती है, वहीं दूसरी ओर पहले से आरोपित अपराधी भी जब जमानत पर बाहर आकर पीड़िता पर हमला करने लगते हैं, तो यह कानून व्यवस्था की विफलता को दर्शाता है।
मानवाधिकार और सुरक्षा की पुकार
यह मामला सिर्फ एक महिला के खिलाफ हिंसा नहीं है, बल्कि यह न्याय प्रणाली पर एक कड़ा प्रहार है। क्या एक पीड़िता को सुरक्षा की गारंटी देना कानून का कर्तव्य नहीं है? क्या जमानत पर रिहा होने वाले आरोपियों की निगरानी नहीं की जानी चाहिए?
समाज की जिम्मेदारी
यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि सिर्फ कानून ही नहीं, समाज को भी पीड़ित के साथ खड़ा होना होगा, ताकि ऐसे मामलों में न्याय की प्रक्रिया निर्भीक और सुरक्षित रह सके।
समापन
इस दर्दनाक घटना ने फिर साबित कर दिया है कि जब तक अपराधियों पर कठोर कार्रवाई और निगरानी नहीं होगी, तब तक पीड़िताएं खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर पाएंगी। समय आ गया है कि जमानत नीतियों, महिला सुरक्षा, और पीड़िता की सुरक्षा व्यवस्था पर फिर से गंभीरता से विचार किया जाए।
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