कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने गुरुवार को एक अहम प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और चुनाव आयोग (ECI) पर गंभीर चुनावी अनियमितताओं का आरोप लगाया। उन्होंने दावा किया कि देशभर में सुनियोजित तरीके से वोटर फ्रॉड किया जा रहा है और इसमें चुनाव आयोग की भूमिका संदिग्ध है। राहुल गांधी ने इसे संविधान और लोकतंत्र पर सीधा हमला बताया।
“वोट चोरी के हमारे पास ठोस सबूत हैं”
राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने बीते छह महीनों में एक विशेष टीम गठित कर बेंगलुरु सेंट्रल लोकसभा सीट और उससे संबंधित महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र के मतदाता डेटा का वैज्ञानिक और डिजिटल विश्लेषण किया। उनके अनुसार, इस विश्लेषण से बड़े पैमाने पर धांधली और गड़बड़ियों का खुलासा हुआ।
उन्होंने प्रेस को निम्नलिखित तथ्यों से अवगत कराया:
- 1,00,250 फर्जी वोट अकेले महादेवपुरा में पाए गए।
- 11,965 डुप्लीकेट वोटर्स, जो एक से अधिक बार वोट देने के योग्य बनाए गए।
- 40,009 ऐसे मतदाता, जिनके पते या तो फर्जी थे या अस्तित्व में नहीं थे।
- 10,452 बल्क वोटर्स, जिनके पते एक ही स्थान पर दर्ज थे—जो व्यवहारिक रूप से असंभव है।
- 4,132 मतदाता, जिनके पास मान्य फोटो नहीं थे।
- 33,692 मतदाता, जिन्होंने फॉर्म 6 का गलत उपयोग कर खुद को रजिस्टर करवाया।
राहुल गांधी ने कहा, “अगर चुनाव आयोग हमें पिछले 10 से 15 वर्षों का मशीन-रीडेबल वोटर डेटा और सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध नहीं कराता, तो वह इस अपराध में सहभागी माना जाएगा।”
“चुनाव आयोग की भूमिका पर गंभीर सवाल”
राहुल गांधी ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सीधा सवाल उठाते हुए कहा कि ECI, जिसकी जिम्मेदारी चुनाव की पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करना है, खुद इस साजिश में लिप्त दिख रही है। उन्होंने यह भी कहा कि जब कांग्रेस ने इन अनियमितताओं की शिकायत करने की कोशिश की, तो उन्हें डेटा तक पहुंच से वंचित कर दिया गया।
उन्होंने आरोप लगाया, “यह कोई सामान्य चुनावी गड़बड़ी नहीं है, बल्कि संविधान के मूल सिद्धांत ‘एक व्यक्ति, एक वोट’ के खिलाफ किया गया अपराध है। यह हमारे लोकतंत्र की आत्मा पर हमला है।”
“25 सीटों की चोरी से सत्ता में बनी भाजपा”
राहुल गांधी ने यह भी दावा किया कि 2024 के लोकसभा चुनावों में BJP को सत्ता बनाए रखने के लिए केवल 25 सीटों की ज़रूरत थी, और उन्होंने इन्हीं सीटों पर छोटे अंतर से जीत दर्ज की—जिनमें से कई में कथित रूप से फर्जी वोटिंग हुई।
उन्होंने कहा, “33,000 से कम वोटों के अंतर से भाजपा ने 25 लोकसभा सीटें जीतीं। ऐसे में यदि फर्जी वोटर लिस्ट और धांधलियों को शामिल किया जाए, तो यह स्पष्ट होता है कि यह लोकतांत्रिक जनादेश नहीं, बल्कि ‘प्रबंधित जीत’ थी।”
“महज एक राज्य की बात नहीं, राष्ट्रीय स्तर की साजिश”
कांग्रेस नेता ने जोर देकर कहा कि यह केवल कर्नाटक या महादेवपुरा तक सीमित मामला नहीं है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव (2023) और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (2024) में भी पार्टी को इसी प्रकार की संभावित चुनावी धांधली की आशंका हुई थी, जो अब उनके अनुसार स्पष्ट हो चुकी है।
“बीजेपी वह एकमात्र पार्टी है जिस पर सत्ता-विरोधी लहर (anti-incumbency) का असर नहीं दिखता। क्या यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास को नहीं डगमगाता?” उन्होंने सवाल उठाया।
चुनाव आयोग ने मांगे सबूत
प्रेस कॉन्फ्रेंस के तुरंत बाद, कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने राहुल गांधी को पत्र भेजकर उनके द्वारा लगाए गए आरोपों के समर्थन में ठोस दस्तावेजी सबूत और विवरण मांगे हैं।
इस पत्र में राहुल गांधी से आग्रह किया गया है कि वे “रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्टर्स रूल्स, 1960 की धारा 20(3)(b)” के तहत घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करके उन मतदाताओं के नामों की सूची जमा करें, जिनके नाम या तो गलत तरीके से जोड़े गए हैं या हटा दिए गए हैं, ताकि आगे की कार्रवाई की जा सके।
“ECI ने अभी तक नहीं कहा कि मैं गलत हूं”
राहुल गांधी ने प्रेस को यह भी याद दिलाया कि उनके लगाए गए आरोपों पर अभी तक चुनाव आयोग ने उन्हें झूठा नहीं कहा है। उन्होंने कहा,
“मैं एक राजनेता हूं, यह मेरा कर्तव्य है कि मैं जनता को सच बताऊं। इसे आप मेरी सार्वजनिक शपथ समझें।”
राजनीतिक हलकों में गूंज और अगला कदम
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई है। जहां CPI जैसी कुछ विपक्षी पार्टियां राहुल गांधी के साथ खड़ी दिखीं, वहीं BJP ने इसे एक ‘निराधार और हताशा से भरा हुआ आरोप’ कहा।
हालांकि, यह स्पष्ट है कि यदि राहुल गांधी द्वारा दिए गए आंकड़े और सबूत कानूनी मानकों पर खरे उतरते हैं, तो यह मामला केवल राजनीतिक बयानबाजी तक सीमित नहीं रहेगा—बल्कि यह भारत के चुनाव तंत्र पर एक बड़ी संवैधानिक बहस की शुरुआत हो सकती है।
निष्कर्ष
राहुल गांधी के आरोपों ने देश के चुनावी तंत्र और संस्थाओं की पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यदि उनके द्वारा प्रस्तुत आंकड़े सत्य पाए जाते हैं, तो यह भारत के लोकतंत्र के लिए एक गंभीर संकट होगा।
अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि:
- क्या चुनाव आयोग इन दावों की स्वतंत्र जांच कराएगा?
- क्या न्यायपालिका इस मामले में स्वप्रेरित संज्ञान लेगी?
- और सबसे महत्वपूर्ण—क्या मतदाता अपने लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए जागरूक और सतर्क होंगे?