CBSE का नया Counseling Hub: छात्रों के समग्र विकास की दिशा में कदम

Aanchalik Khabre
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विद्यार्थियों के मानसिक, भावनात्मक और करियर संबंधी विकास को प्राथमिकता देने के लिए केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण और दूरदर्शी पहल के रूप में Counseling Hub and Spoke School Model,
की शुरुआत की है। यह मॉडल भारत की शिक्षा व्यवस्था में एक ऐसा बदलाव लाने का प्रयास है, जिसमें केवल शैक्षणिक प्रदर्शन ही नहीं, बल्कि विद्यार्थियों का समग्र विकास और मानसिक स्वास्थ्य भी उतना ही महत्वपूर्ण माना जाए।

शिक्षा का उद्देश्य केवल अंकों में वृद्धि नहीं, बल्कि एक सशक्त, आत्मनिर्भर और भावनात्मक रूप से संतुलित नागरिक का निर्माण होना चाहिए। इसी सोच के साथ सीबीएसई ने यह मॉडल प्रस्तुत किया है, जो विद्यार्थियों की समस्याओं, करियर भ्रम, मानसिक तनाव और आत्मविश्वास की कमी जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए एक संरचित और व्यावहारिक ढांचा प्रदान करता है।

 

क्या है Counseling Hub and Spoke School Model?

इस मॉडल में ‘हब स्कूल’ वे संस्थान होंगे जहां पर विशेष रूप से प्रशिक्षित काउंसलर, मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और करियर गाइडेंस संसाधन उपलब्ध होंगे। ये स्कूल आसपास के ‘spoke school’के लिए मार्गदर्शक और सहयोगी केंद्र की भूमिका निभाएंगे। इससे यह सुनिश्चित होगा कि देश के किसी भी कोने में स्थित स्कूल, संसाधनों की कमी के बावजूद, विद्यार्थियों को जरूरी परामर्श और सहायता प्रदान कर सकें।

उदाहरण:

मान लीजिए एक ग्रामीण क्षेत्र का विद्यालय किसी हब स्कूल से जुड़ा है। उस स्कूल में कोई फुल-टाइम काउंसलर न होने पर भी, हब स्कूल के विशेषज्ञ समय-समय पर ऑनलाइन अथवा भौतिक रूप से परामर्श सत्र आयोजित कर सकते हैं। यह संपर्क डिजिटल तकनीक, वीडियो सेशन, टेली-काउंसलिंग, और मेंटरिंग के माध्यम से बना रहेगा।

इस मॉडल में स्कूल स्तर की जिम्मेदारियां, जैसे समयबद्ध काउंसलिंग सत्र, छात्रों की जरूरतों की पहचान, और नियमित फीडबैक संग्रह जैसे तत्वों को स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है। इसकी निगरानी प्रणाली भी मजबूत है, ताकि यह देखा जा सके कि योजनाएं कागज़ से बाहर आकर धरातल पर कितनी प्रभावी हैं।

 

इस पहल को और अधिक मज़बूत और व्यापक कैसे बनाया जा सकता है?

CBSE द्वारा प्रस्तुत यह मॉडल एक मील का पत्थर है, लेकिन इसे और अधिक प्रभावशाली और स्थायी बनाने के लिए कुछ पूरक तत्व जोड़े जा सकते हैं:

  1. इंटरैक्टिव करियर टूल्स का समावेश

आज के डिजिटल युग में छात्रों के पास करियर के अनेकों विकल्प हैं, लेकिन जानकारी की कमी और मार्गदर्शन के अभाव में वे सही चुनाव नहीं कर पाते। ऐसे में AI-आधारित करियर असेसमेंट, वर्चुअल इंटर्नशिप, और लाइव वेबिनार का प्रयोग छात्रों को प्रायोगिक अनुभव और समकालीन समझ प्रदान कर सकता है।

उदाहरण:

एक छात्र को AI टूल के माध्यम से यह पता चल सकता है कि उसकी रुचि और क्षमता किन क्षेत्रों में अधिक है – जैसे डेटा एनालिटिक्स, डिजाइनिंग या समाज सेवा – और उसी आधार पर उसके लिए उपयुक्त करियर विकल्प सुझाए जा सकते हैं।

  1. व्यक्तिगत काउंसलिंग की व्यवस्था

प्रत्येक छात्र की रुचियाँ, परिस्थितियाँ और मानसिक स्तर अलग होता है। इसलिए सामूहिक सत्रों के साथ-साथ व्यक्तिगत परामर्श भी आवश्यक है। Career Guidance Dashboard जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से छात्रों के शैक्षणिक प्रदर्शन, पसंद-नापसंद और मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियों का विश्लेषण करके व्यक्तिगत रणनीति बनाई जा सकती है।

  1. स्किल-बिल्डिंग वर्कशॉप्स की नियमितता

21वीं सदी के लिए केवल अकादमिक ज्ञान ही काफी नहीं है। आज छात्रों को सॉफ्ट स्किल्स जैसे टीमवर्क, नेतृत्व, रचनात्मकता, डिजिटल साक्षरता और समस्या समाधान जैसे कौशलों में भी पारंगत होना आवश्यक है। इन वर्कशॉप्स में रचनात्मक गतिविधियाँ, खेल, और केस स्टडीज़ के माध्यम से छात्रों को व्यवहारिक रूप से प्रशिक्षित किया जा सकता है।

 

  1. अभिभावक और शिक्षक प्रशिक्षण

छात्रों के मानसिक और करियर संबंधी विकास में अभिभावकों और शिक्षकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि उन्हें सही जानकारी और उपकरण दिए जाएं तो वे बच्चों की वास्तविक जरूरतों को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। इसके लिए स्कूलों में सेंसेटाइजेशन सेशन, गाइडबुक्स और ई-लर्निंग कोर्स की व्यवस्था की जानी चाहिए।

 

  1. एलुमनी मेंटरशिप नेटवर्क

पूर्व छात्रों से जुड़ाव छात्रों को एक जमीनी अनुभव और भरोसा देता है। जिन लोगों ने उन्हीं स्कूलों से पढ़ाई की है और अब जीवन में आगे बढ़े हैं, उनकी सफलता की कहानियां प्रेरणा देती हैं और मार्गदर्शन भी। इन एलुमनी नेटवर्क के जरिए छात्रों को करियर की चुनौतियों और अवसरों की वास्तविक तस्वीर मिलती है।

 

  1. मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार

स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर अभी भी बहुत से भ्रम और संकोच देखे जाते हैं। इसके लिए नियमित मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता अभियान, पियर सपोर्ट ग्रुप्स, और लाइसेंस प्राप्त काउंसलर्स की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए ताकि छात्र बिना झिझक मदद ले सकें।

 

  1. एआई और टेक्नोलॉजी का सशक्त समावेश

एआई आधारित सिस्टम छात्रों की पढ़ाई की प्रवृत्तियों, पिछली गतिविधियों और काउंसलिंग इतिहास का विश्लेषण कर उन्हें व्यक्तिगत सुझाव और सुधार के मार्ग प्रदान कर सकते हैं। Smart Dashboards के जरिए स्कूल प्रशासन और अभिभावक भी समय-समय पर छात्र की प्रगति पर नजर रख सकते हैं।

 

  1. निरंतर फीडबैक लूप्स

किसी भी प्रणाली की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह समय के साथ खुद को कितना सुधार सकती है। इसलिए छात्रों, शिक्षकों, काउंसलर्स और अभिभावकों से नियमित प्रतिक्रिया ली जानी चाहिए, ताकि कार्यक्रमों को उनकी वास्तविक ज़रूरतों के अनुसार बदला जा सके।

 

निष्कर्ष

CBSE का काउंसलिंग हब एंड स्पोक मॉडल शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी सोच का परिचायक है। यह सिर्फ एक प्रशासनिक पहल नहीं, बल्कि छात्रों के मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य को मुख्यधारा में लाने का प्रयास है। भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में यह मॉडल दूरदराज के छात्रों को भी समान अवसर, मार्गदर्शन और सहारा उपलब्ध कराने में सहायक हो सकता है।

यदि इसमें प्रस्तावित सुधारों को व्यवस्थित रूप से शामिल किया जाए, तो यह पहल देश के करोड़ों छात्रों को न केवल शैक्षणिक रूप से सक्षम, बल्कि मानसिक रूप से मजबूत, आत्मविश्वासी और भविष्य के लिए तैयार बना सकती है। यह मॉडल हमारे शिक्षा तंत्र को एक अधिक सहानुभूतिपूर्ण, नवाचारशील और समावेशी दिशा में ले जाने की क्षमता रखता है।

 

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