ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव : झारखंड का गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी

Aanchalik Khabre
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ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव

परिचय:

जब 1857 की क्रांति का शंखनाद हुआ, तो देश के कई हिस्सों में क्रांतिकारी आवाज़ें उठीं। झारखंड (तत्कालीन छोटानागपुर) से उठी एक ऐसी ही तेजस्वी आवाज़ थी — ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव की। वे एक स्थानीय राजा, परन्तु उससे भी बढ़कर ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ लड़ने वाले पहले झारखंडी स्वतंत्रता सेनानी थे।


जन्म और पृष्ठभूमि:

  • जन्म: 1825 के आसपास, रांची ज़िले के भीतर छोटानागपुर के एक जागीरदार परिवार में

  • परिवार: नागवंशी राजाओं की वंश परंपरा से थे

  • पद: वे रांची के ‘बड़का ठाकुर’ माने जाते थे और उनका स्थानीय स्तर पर भारी प्रभाव था।


ब्रिटिश सरकार से टकराव की शुरुआत:

ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने देखा कि किस तरह अंग्रेजी हुकूमत जमीन पर कब्ज़ा, किसानों पर अत्याचार और स्थानीय आदिवासियों की संस्कृति का दमन कर रही है। उन्होंने अन्य स्थानीय नेताओं जैसे पांडु महतो, बिंदा राय, और सिबलाल सव के साथ मिलकर ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेंकने की योजना बनाई।


1857 की क्रांति में भागीदारी:

  • उन्होंने अपने इलाक़े में ब्रिटिश अफसरों के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया।

  • उनकी सेना में हज़ारों स्थानीय आदिवासी और किसान शामिल हुए।

  • उन्होंने ब्रिटिश कोषागार (Treasury) पर हमला किया और सरकारी अफसरों को चेतावनी दी।

गिरफ्तारी और बलिदान:

  • ब्रिटिश सरकार ने ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव की शक्ति से डरकर उन्हें धोखे से पकड़ लिया।

  • उन्हें रांची में 16 अप्रैल 1858 को फाँसी पर लटका दिया गया।

  • उनके साथ उनके सहयोगी पांडु महतो और अन्य वीरों को भी मृत्यु दंड दिया गया।


महत्त्व और विरासत:

  • वे झारखंड में ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ विद्रोह करने वाले पहले संगठित नेता थे।

  • उनकी शहादत को झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी याद किया जाता है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें आज भी उचित सम्मान नहीं मिला।

  • उनके बलिदान स्थल को अब “शहीद चौक रांची” के नाम से जाना जाता है।


हम क्यों उन्हें याद करें?

  • क्योंकि ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने वो किया जो बड़े-बड़े राजा नहीं कर सके — उन्होंने अन्याय के खिलाफ सीधे तलवार उठाई।

  • वे पहले स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने झारखंड जैसे आदिवासी बहुल क्षेत्र में विद्रोह की चिंगारी जलाई।

  • उन्होंने जाति, धर्म, वर्ग से ऊपर उठकर भारत माता की आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ी।


निष्कर्ष:

ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव की कहानी हमें यह सिखाती है कि भारत की आज़ादी केवल दिल्ली या मेरठ से नहीं, बल्कि झारखंड के जंगलों, गांवों और छोटे इलाकों से भी निकली थी। ऐसे वीरों को याद करना सिर्फ इतिहास नहीं, हमारी नैतिक ज़िम्मेदारी भी है।

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