CBSE यानी केंद्रीय माध्यमि क शि क्षा बोर्ड ने एक नया फैसला लि या है, जो 2026-27 के शक्षै णि क सत्र से
लागूहोगा। इसके तहत कक्षा 9वीं के छात्र कुछ वि षयों की परीक्षा कि ताब लेकर दे सकेंगे। इसे ओपन बकु
assessment यानी OBA कहा जा रहा है। यह तरीका छात्रों को रटने की बजाय समझने की आदत डालने
के लि ए लाया जा रहा है।

ओपन बकु असेसमेंट क्या होता है?
ओपन बकु assessment का मतलब है कि छात्र परीक्षा के समय अपनी कि ताबें साथ ले जा सकते हैंऔर
उन कि ताबों को देखकर सवालों के जवाब दे सकते हैं। इससे यह नहीं देखा जाएगा कि उन्होंने कि तना याद
कि या है, बल्कि यह देखा जाएगा कि वे कि सी वि षय को कि तनी अच्छी तरह समझते हैं। इस प्रणाली में सवाल
ऐसे होते हैंजि नका जवाब सीधे कि ताब में नहीं लि खा होता, बल्कि सोचकर देना पड़ता है।
कौन-कौन सेवि षयों में लागूहोगी येप्रणाली?
CBSE ने शरुुआत में इस प्रणाली को तीन मख्ु य वि षयों में लागूकरने का नि र्णयर्ण लि या है – भाषा, गणि त
और वि ज्ञान या सामाजि क वि ज्ञान। हर साल तीन वि षयों में इसे लागूकि या जाएगा और आगे चलकर इसे
दसू रे कक्षाओं और वि षयों में भी अपनाया जा सकता है।
CBSE ने पहले से की है तैयारी
CBSE ने इस फैसले से पहले एक पायलट स्टडी की थी, जि समें कुछ स्कूलों में ओपन बकु परीक्षा का ट्रायल
लि या गया था। इसमें देखा गया कि छात्रों को 12% से 47% के बीच अकं मि ले। इसका मतलब यह है कि
सभी छात्रों को यह तरीका आसान नहीं लगा। कि ताब होने के बावजदू कई छात्रों को जवाब देने में कठि नाई हुई,
क्योंकि सवालों में सोचने की जरूरत थी।
छात्रों को कठि नाई क्यों हुई?
पायलट स्टडी से यह भी पता चला कि जब सवाल आसान नहीं होते और उनमें वि षयों की गहराई से समझ की
जरूरत होती है, तब बच्चों को दि क्कत होती है। उन्हें यह भी नहीं आता कि कि ताब से जरूरी जानकारी कहां से
ढूंढनी हैऔर कैसे उसका उपयोग करना है। इसीलि ए CBSE अब छात्रों को गाइड करेगा और सपैंल पेपर भी
देगा, जि ससे वे तयै ारी कर सकें।
इस बदलाव के फायदे क्या हो सकतेहैं?
सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि छात्र बि ना रटे भी परीक्षा दे सकेंगे। इससे परीक्षा का तनाव कम होगा और
बच्चे ज्यादा आत्मवि श्वास के साथ सवालों का जवाब देंगे। इसके अलावा यह तरीका बच्चों की सोचने, समझने
और वि श्लेषण करने की क्षमता को बढ़ावा देगा। इससे उनका आत्मनि र्भरर्भ ता और रचनात्मकता भी बढ़ेगी।
शि क्षकों के लि ए भी यह एक बदलाव होगा
अब शि क्षकों को भी पढ़ाने के तरीके में बदलाव करना होगा। पहले जहां रटाने पर ज़ोर दि या जाता था, अब
समझाने और सोचने पर ज़ोर देना होगा। इससे पढ़ाई का तरीका भी बेहतर हो सकता है।
कहीं यह बदलाव मश्किुश्कि ल तो नहीं होगा?
हालांकि यह प्रणाली बहुत अच्छी लगती है, लेकिन इसके साथ कुछ चुनौतियां भी जुड़ी हैं। जैसे – हर छात्र के पास एक जैसी किताबें और संसाधन नहीं होते। ग्रामीण क्षेत्रों या सरकारी स्कूलों में छात्रों को किताबें और गाइडेंस कम मिलती है। ऐसे में सभी छात्रों को बराबरी का मौका देना जरूरी होगा।
दूसरी बात, शिक्षकों को भी इस प्रणाली की ट्रेनिंग देनी होगी, ताकि वे बच्चों को सही दिशा में पढ़ा सकें। और तीसरी चुनौती यह होगी कि किताब साथ होने पर नकल न हो, इसके लिए सवाल ऐसे बनाने होंगे जो सिर्फ कॉपी-पेस्ट न हो सकें।
क्या यह बदलाव सही दि शा में है?
यह कह सकते हैंकि CBSE की यह पहल भारतीय शि क्षा में एक नया अध्याय शरूु कर सकती है। अगर यह
सही ढंग से लागूहुआ, तो इससे बच्चों में सि र्फ नबं र लाने की दौड़ खत्म होगी और वे असल ज्ञान की ओर
बढ़ेंगे। इससे शि क्षा का मकसद बदलेगा और बच्चे ज्यादा समझदार और जि म्मेदार बनेंगे।
CBSE की ओपन बकु असेसमेंट योजना एक अच्छी और जरूरी पहल है। इससे छात्रों को पढ़ाई का सही
मतलब समझ आएगा। वे रटने की बजाय समझने लगेंगे और यही असली शि क्षा होती है। हालांकि इसके लि ए
सभी को मि लकर मेहनत करनी होगी – छात्रों को, शि क्षकों को और स्कूल प्रशासन को भी। अगर यह बदलाव
सही तरीके से हुआ, तो भारतीय शि क्षा का चेहरा बदल सकता है।