दिल्ली, देश की राजधानी, बीते कई वर्षों से वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या से जूझ रही है। हर साल सर्दियों के मौसम में प्रदूषण का स्तर खतरनाक सीमा तक पहुंच जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की गाइडलाइन के मुताबिक सुरक्षित AQI (Air Quality Index) स्तर से कई गुना अधिक प्रदूषण दिल्ली की हवा में दर्ज किया जाता है। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार और जनता, दोनों की भूमिका अहम है।

दिल्ली में प्रदूषण का मौजूदा स्तर
2025 की शुरुआत में भी, दिल्ली का AQI कई दिनों तक 300 से ऊपर दर्ज किया गया है, जो कि ‘बहुत खराब’ (Very Poor) श्रेणी में आता है। कुछ इलाकों में यह 450 तक पहुंच गया, जो ‘गंभीर’ (Severe) श्रेणी में आता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, दिल्ली की वायु में PM 2.5 और PM 10 कणों की मात्रा सबसे अधिक चिंता का विषय है। ये सूक्ष्म कण हमारे फेफड़ों में गहराई तक पहुंचकर श्वसन संबंधी गंभीर बीमारियां पैदा कर सकते हैं।
दिल्ली में प्रदूषण के प्रमुख कारण
दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ने के पीछे कई कारण हैं, जिनमें से कुछ मौसमी और कुछ स्थायी हैं।
वाहनों से निकलने वाला धुआं – दिल्ली में पंजीकृत वाहनों की संख्या करोड़ों में है, और इनमें से अधिकांश पेट्रोल और डीज़ल पर चलते हैं।
औद्योगिक उत्सर्जन – आसपास के क्षेत्रों में चल रहे उद्योग वायु में हानिकारक गैसें और कण छोड़ते हैं।
निर्माण कार्य से उठने वाली धूल – बड़े पैमाने पर हो रहे निर्माण कार्यों से धूल प्रदूषण में वृद्धि होती है।
पराली जलाना – पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने का असर सीधे दिल्ली की हवा पर पड़ता है।
भौगोलिक और मौसम संबंधी कारण – सर्दियों में हवा की गति धीमी होने और तापमान गिरने से प्रदूषण फंस जाता है।
प्रदूषण के स्वास्थ्य पर प्रभाव
प्रदूषित हवा केवल फेफड़ों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे शरीर के लिए हानिकारक है।
श्वसन संबंधी बीमारियां: अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों का कैंसर।
हृदय रोग: हृदयघात और उच्च रक्तचाप का खतरा बढ़ना।
बच्चों पर असर: बच्चों के फेफड़े सही तरीके से विकसित नहीं हो पाते।
मानसिक स्वास्थ्य: लंबे समय तक प्रदूषण के संपर्क में रहने से तनाव और मानसिक थकान बढ़ सकती है।

सरकार के प्रयास
दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार ने प्रदूषण नियंत्रण के लिए कई कदम उठाए हैं।
1. ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP)
यह योजना प्रदूषण के स्तर के अनुसार तत्काल और सख्त कदम उठाने पर आधारित है।
इसमें निर्माण कार्य रोकना, स्कूल बंद करना, और ट्रकों के प्रवेश पर प्रतिबंध जैसे कदम शामिल हैं।
2. ऑड-ईवन योजना
सड़कों पर वाहनों की संख्या कम करने के लिए ऑड-ईवन स्कीम लागू की जाती है।
इसमें वाहन के नंबर के आखिरी अंक के आधार पर चलने की अनुमति दी जाती है।
3. इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा
दिल्ली सरकार ने EV नीति के तहत इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद पर सब्सिडी दी है।
4. धूल नियंत्रण उपाय
निर्माण स्थलों पर पानी का छिड़काव, ढकने के आदेश, और निगरानी।
5. औद्योगिक प्रदूषण नियंत्रण
प्रदूषण फैलाने वाले कारखानों को नोटिस, जुर्माना और बंद करने के आदेश।
जनता की भूमिका
सरकार के प्रयास तभी सफल हो सकते हैं जब जनता भी प्रदूषण कम करने में सक्रिय भूमिका निभाए।
सार्वजनिक परिवहन का उपयोग – मेट्रो, बस और साझा वाहन का इस्तेमाल।
पेड़ लगाना – हरियाली बढ़ाने से कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर कम होता है।
कचरा न जलाना – खुले में कचरा जलाने से हानिकारक गैसें निकलती हैं।
ऊर्जा की बचत – बिजली और ईंधन का कम से कम उपयोग।
पराली न जलाने के लिए जागरूकता – किसानों में वैकल्पिक उपायों का प्रचार।
तकनीकी और नवाचार आधारित समाधान
दिल्ली में प्रदूषण कम करने के लिए कई तकनीकी उपाय भी अपनाए जा रहे हैं।
स्मॉग टॉवर – बड़े एयर प्यूरीफायर जो खुले क्षेत्रों की हवा साफ करते हैं।
एंटी-स्मॉग गन – निर्माण स्थलों पर धूल को बैठाने के लिए।
रीयल-टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम – प्रदूषण स्तर की निगरानी और रिपोर्टिंग।
अंतर्राष्ट्रीय तुलना
बीजिंग, टोक्यो और लॉस एंजिल्स जैसे शहर भी कभी प्रदूषण की गंभीर समस्या झेल चुके हैं, लेकिन सख्त कानून, स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग और जन भागीदारी से उन्होंने स्थिति में सुधार किया। दिल्ली भी इसी तरह सख्त कदम और तकनीकी सुधारों से प्रदूषण पर काबू पा सकती है।
भविष्य की राह
विशेषज्ञ मानते हैं कि दिल्ली में प्रदूषण को कम करने के लिए दीर्घकालिक नीतियां जरूरी हैं, जिनमें—
नवीकरणीय ऊर्जा का अधिक उपयोग
सार्वजनिक परिवहन का विस्तार
औद्योगिक प्रदूषण पर सख्त नियंत्रण
किसानों के लिए पराली प्रबंधन के सस्ते विकल्प