हर साल जब हम स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं, तो हमारे दिल में सेना के प्रति गर्व और सम्मान की भावना और भी गहरी हो जाती है। लेकिन इस बार 15 अगस्त 2025 को यह गर्व और भी बढ़ गया जब भारत सरकार ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में भाग लेने वाले 16 बीएसएफ जवानों को ‘वीरता पदक’ से सम्मानित किया। यह वे जांबाज थे, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना देश की रक्षा की और पाकिस्तान की नापाक हरकतों का मुंहतोड़ जवाब दिया।
- ऑपरेशन सिंदूर की पृष्ठभूमि
- गोला-बारूद पहुंचाते वक्त घायल हुए जवान
- खारकोला पोस्ट पर रात की लड़ाई
- ड्रोन को गिराने का साहस
- जवान की जान बचाने निकले डिप्टी कमांडेंट
- निगरानी कैमरा नष्ट करने वाला साहसिक कार्य
- मौत के साए में गोला-बारूद की आपूर्ति
- मुख़यारी पोस्ट: 48 घंटे तक चली गोलाबारी
- वीरता पदक: सिर्फ एक सम्मान नहीं, एक प्रेरणा
ऑपरेशन सिंदूर की पृष्ठभूमि
7 से 10 मई 2025 के बीच पाकिस्तान ने जम्मू क्षेत्र की सीमा पर कई बीएसएफ चौकियों पर भारी गोलीबारी की और ड्रोन से हमले किए। भारत ने पहले से ही “ऑपरेशन सिंदूर” नामक एक जवाबी रणनीति तैयार कर रखी थी। इस ऑपरेशन का उद्देश्य था दुश्मन की आक्रामकता को रोकना और हमारी सीमाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना। बीएसएफ के जवानों ने मोर्चा संभाला और ऐसी बहादुरी दिखाई जिसकी जितनी तारीफ की जाए, कम है।

गोला-बारूद पहुंचाते वक्त घायल हुए जवान
एसआई व्यास देव और कांस्टेबल सुद्दी राभा को अग्रिम चौकियों पर गोला-बारूद पहुंचाने का जिम्मा मिला था। ड्यूटी के दौरान एक मोर्टार शेल उनके पास आकर गिरा। दोनों गंभीर रूप से घायल हुए—व्यास देव का एक पैर काटना पड़ा, जबकि राभा भी गंभीर रूप से घायल रहे। फिर भी उन्होंने अपनी ड्यूटी पूरी की। यही है असली देशभक्ति—जब अपने दर्द से ऊपर उठकर देश की सेवा की जाए।
खारकोला पोस्ट पर रात की लड़ाई
7 और 8 मई की रात खारकोला पोस्ट पर भारी गोलाबारी और ड्रोन अटैक हुआ। वहां तैनात कांस्टेबल भूपेंद्र बाजपेयी, बृज मोहन सिंह, देपेश्वर बर्मन और बसवराज शिवप्पा ने मोर्चा संभाला। सहायक कमांडेंट अभिषेक श्रीवास्तव ने कमांड बंकर से रणनीतिक निर्णय लेकर सैनिकों को निर्देश दिए। जब पाकिस्तानी गोलाबारी बीओपी के अंदर तक पहुंची, तो भी सभी जवान डटे रहे।
ड्रोन को गिराने का साहस
एसआई मोहम्मद इम्तेयाज ने एक पाकिस्तानी ड्रोन को गिराने में सफलता पाई। यह ड्रोन इलाके की निगरानी कर रहा था और बड़ा खतरा बना हुआ था। उनकी टीम ने समय रहते उसे खत्म किया, लेकिन इसके बाद दुश्मन ने और ज्यादा आक्रामकता दिखाई। फिर भी बीएसएफ की हिम्मत नहीं डिगी।
जवान की जान बचाने निकले डिप्टी कमांडेंट
रविंद्र राठौर, डिप्टी कमांडेंट, ने जब देखा कि एक जवान की जान खतरे में है, तो उन्होंने पूरी टीम के साथ ऑपरेशन चलाया। दुश्मन की गोलियों की बौछार के बीच उन्होंने न केवल जवान को बचाया, बल्कि दुश्मन को पीछे हटने पर मजबूर भी किया।
निगरानी कैमरा नष्ट करने वाला साहसिक कार्य
एएसआई उदय वीर सिंह की बहादुरी अलग ही स्तर की थी। जब पाकिस्तान की ओर से निगरानी कैमरे लगाए गए ताकि भारतीय गतिविधियों पर नजर रखी जा सके, तब उन्होंने भारी गोलीबारी के बीच उस कैमरे को नष्ट किया। उनके चेहरे पर छर्रे लगे, खून बहा, लेकिन उन्होंने रुकना नहीं चुना।
मौत के साए में गोला-बारूद की आपूर्ति
जब करोटाना खर्दुर्द पोस्ट पर गोलाबारी हो रही थी और गोला-बारूद खत्म हो रहा था, तब एएसआई राजप्पा बीटी और कांस्टेबल मनोहर ज़ालक्सो ने जान की परवाह किए बिना हथियारों की आपूर्ति की। दोनों घायल हुए, लेकिन मिशन को अधूरा नहीं छोड़ा।
मुख़यारी पोस्ट: 48 घंटे तक चली गोलाबारी
सहायक कमांडेंट आलोक नेगी ने जब देखा कि पोस्ट पर लगातार गोलाबारी हो रही है, तो उन्होंने कांस्टेबल कंदर्प चौधरी और वाघमारे भवन देवराम के साथ मिलकर मोर्चा संभाला। 48 घंटे तक ये जवान लगातार दुश्मन पर सटीक हमले करते रहे। इतने लंबे समय तक दबाव में डटे रहना ही बहादुरी की असली परिभाषा है।
वीरता पदक: सिर्फ एक सम्मान नहीं, एक प्रेरणा
इन सभी जांबाजों को मिला वीरता पदक सिर्फ एक पदक नहीं है—ये उन सभी के लिए संदेश है जो देश की सेवा करना चाहते हैं। यह दिखाता है कि हमारी सीमाएं महफूज़ हैं क्योंकि वहां ऐसे लोग हैं जो बिना डरे, बिना रुके देश के लिए खड़े हैं।
ऑपरेशन सिंदूर का नाम सुनते ही अब सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि त्याग, वीरता और देशभक्ति की तस्वीर आंखों के सामने आती है। इन 16 वीरों ने न सिर्फ अपने परिवार का, बल्कि पूरे देश का सिर गर्व से ऊंचा किया है। हमें इनकी कहानियां सुननी, पढ़नी और आगे की पीढ़ियों तक पहुंचानी चाहिए ताकि देश की सुरक्षा के पीछे खड़ी असली ताकत को लोग जान सकें।