महिला सशक्तिकरण की मिसाल- Sarojini Naidu

Aanchalik Khabre
24 Min Read

परिचय

Sarojini Naidu का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ था। उनके पिता का नाम अघोरनाथ चट्टोपाध्याय था। वे बंगाल के ब्राह्मण परिवार से थे, जो अब बांग्लादेश के मुंशीगंज जिले में आता है। उनके पिता नाजिम कॉलेज के प्रिंसिपल थे और उन्होंने एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की डिग्री भी प्राप्त की थी। उनकी माँ भी बंगाली भाषा में कविता लिखती थीं।

Sarojini Naidu आठ भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं। उनके भाई विरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय एक क्रांतिकारी थे, जबकि उनके एक और भाई हरिंद्रनाथ कवि, नाटककार और अभिनेता थे। उनका परिवार हैदराबाद में बहुत सम्मानित था।

home 2

शिक्षा

Sarojini Naidu ने 12 साल की उम्र में मैट्रिक की परीक्षा सबसे अच्छे अंक लेकर पास की थी। इसके बाद उन्होंने 1895 से 1898 तक इंग्लैंड में पढ़ाई की। वे किंग्स कॉलेज, लंदन और फिर गिर्टन कॉलेज, कैम्ब्रिज में पढ़ीं, जहाँ उनकी पढ़ाई के लिए हैदराबाद के निज़ाम ने उन्हें स्कॉलरशिप दी थी। इंग्लैंड में रहते हुए उन्होंने सौंदर्य और डिकेडेंट कला आंदोलनों से जुड़े कई कलाकारों से मुलाकात की। यह उनकी ज़िंदगी का शुरुआती हिस्सा था, जो उनकी शिक्षा, परिवार और शुरुआती प्रभावों को दर्शाता है।

home 2

विवाह

चट्टोपाध्याय 1898 में हैदराबाद वापस आ गई थीं। उसी साल उनकी शादी गोविंदरराजू नायडू से हुई, जो आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम के रहने वाले डॉक्टर थे। ये दोनों इंग्लैंड में पढ़ाई के दौरान मिले थे। उनकी शादी उस वक्त के हिसाब से बहुत ही हटके और विवादित मानी गई क्योंकि ये एक अंतरजातीय शादी थी। लेकिन दोनों परिवारों ने इसे मान लिया और उनकी शादी काफी लंबे समय तक खुशहाल रही। उनका परिवार बड़ा था, पाँच बच्चे हुए। उनकी बेटी पद्मजा ने भी भारत की आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लिया और आज़ाद देश में कई अहम सरकारी पदों पर काम किया।

 

प्राम्भिक वक्तृत्व कला

1904 से Sarojini Naidu एक जबरदस्त वक्ता बन गई थीं। वे खासतौर पर भारत की आज़ादी और महिलाओं के हक़ों, खासकर उनकी पढ़ाई के लिए जोरदार बातें करती थीं। उनका बोलने का तरीका ऐसा था कि वो अपने तर्क को पांच हिस्सों में बांटकर साफ और समझाने वाला बनाती थीं। 1906 में उन्होंने कोलकाता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और भारतीय सामाजिक सम्मेलन में भाषण दिया।

सरोजिनी ने बाढ़ पीड़ितों की मदद भी की, जिसकी वजह से उन्हें 1911 में कैसर-ए-हिंद मेडल मिला, लेकिन बाद में उन्होंने जलियांवाला बाग कांड के बाद इस मेडल को वापस कर दिया, जो उनके जज़्बे को दर्शाता है।

1909 में उनकी मुलाकात मुथुलक्ष्मी रेड्डी से हुई, जो महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करती थीं। फिर 1914 में वे महात्मा गांधी से मिलीं, जिन्होंने उन्हें राजनीति में सक्रिय रहने की नई प्रेरणा दी। वे पहली महिला थीं जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षता की और पहली भारतीय महिला बनीं जिन्होंने कांग्रेस के सम्मेलन की अध्यक्षता संभाली।

रेड्डी के साथ मिलकर उन्होंने 1917 में ‘विमेंस इंडियन एसोसिएशन’ बनाई। उसी साल वे एनी बेसेंट के साथ लंदन गईं, जो होम रूल लीग और विमेंस एसोसिएशन की अध्यक्ष थीं, और वहाँ सार्वभौमिक वोट देने की मांग की। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए लखनऊ पैक्ट का भी समर्थन किया। उनके भाषण में उनकी खुद की कविताएं भी शामिल होती थीं, जो लोगों को और प्रभावित करती थीं|

सरोजिनी नायडू: एक आज़ादी की सच्ची आवाज़ और महिला अधिकारों की पहल!

Sarojini Naidu को हम आमतौर पर एक कवयित्री के रूप में जानते हैं, लेकिन उनका योगदान केवल साहित्य तक सीमित नहीं था। वह एक महान स्वतंत्रता सेनानी थीं जिन्होंने महिला अधिकारों को भारत की आज़ादी की लड़ाई से जोड़ दिया। उन्होंने हमेशा यह बात कही कि अगर महिलाएं स्वतंत्र नहीं होंगी, तो देश भी कभी पूरी तरह से आजाद नहीं हो सकता।

1900 के शुरुआती दौर में Sarojini Naidu ने राजनीति में कदम रखा। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और उनके अधिकारों के लिए कई मंचों पर भाषण दिए। उन्होंने यह साफ कहा कि महिलाएं केवल घर की जिम्मेदारी तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे भी राष्ट्र निर्माण में बराबर की भागीदार हैं। उनका मानना था कि जब तक महिलाएं सक्रिय रूप से आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा नहीं लेंगी, तब तक यह आंदोलन अधूरा रहेगा।

1917 में उन्होंने वुमेन्स इंडियन एसोसिएशन की स्थापना में सहयोग किया। यह मंच महिलाओं को अपने हक की बात कहने और सरकार से अपनी मांगें रखने का अवसर देता था। उसी साल उन्होंने एक महिला प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत के वायसराय और ब्रिटेन के सचिव से मुलाकात की और महिलाओं को वोट देने का अधिकार देने की मांग की। यह उस समय एक बड़ी बात थी, जब महिलाएं सार्वजनिक जीवन में बहुत कम दिखती थीं।

1918 में उन्होंने महिलाओं को वोट देने का समर्थन करते हुए एक प्रस्ताव भी पेश किया। उन्होंने अपने भाषणों में भारत के प्राचीन इतिहास का हवाला देते हुए कहा कि महिलाओं ने हमेशा देश की राजनीति में भूमिका निभाई है। उन्हें सिर्फ उनका पुराना हक वापस देना है। उन्होंने यह भी कहा कि वोट देने का अधिकार कोई विशेष सुविधा नहीं है, बल्कि यह एक मानव अधिकार है।

हालांकि उनके प्रयासों के बावजूद ब्रिटिश सरकार ने 1919 के सुधारों में महिलाओं के मताधिकार को नजरअंदाज कर दिया। इसके बावजूद Sarojini Naidu ने हार नहीं मानी और 1920 के दशक में उन्होंने महिलाओं को आंदोलनों में सक्रिय रूप से शामिल होने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने महिलाओं को समझाया कि यह सिर्फ पुरुषों की लड़ाई नहीं है, बल्कि हर भारतीय की लड़ाई है।

1925 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष बनीं। यह एक ऐतिहासिक पल था, जिसने महिलाओं को राजनीति में आगे बढ़ने का हौसला दिया। 1930 में उन्होंने महिलाओं के लिए एक पम्फलेट भी लिखा, जिसमें उन्होंने कहा कि अब महिलाएं सिर्फ दर्शक नहीं रह सकतीं, उन्हें भी इस संघर्ष में कंधे से कंधा मिलाकर चलना होगा।

Sarojini Naidu का जीवन हमें यह सिखाता है कि अगर किसी लक्ष्य के लिए सच्चे मन से काम किया जाए, तो रास्ते की हर रुकावट छोटी लगती है। उन्होंने महिलाओं को आवाज दी, उन्हें मंच दिया और यह साबित किया कि महिलाएं भी देश को बदलने की ताकत रखती हैं।

आज जब हम आज़ादी का जश्न मनाते हैं, तो हमें यह याद रखना चाहिए कि इस आजादी की नींव में Sarojini Naidu जैसी महिलाओं का भी उतना ही योगदान है जितना किसी अन्य स्वतंत्रता सेनानी का। उन्होंने न सिर्फ देश के लिए लड़ाई लड़ी, बल्कि महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए भी एक लंबा सफर तय किया।

 

सरोजिनी नायडू: स्वतंत्रता संग्राम की नारी शक्ति

Sarojini Naidu भारत की आज़ादी की लड़ाई में एक मजबूत और प्रेरणादायक चेहरा थीं। उन्होंने न सिर्फ अपनी कविताओं से लोगों के दिल जीते, बल्कि अपने कार्यों और संघर्षों से भी इतिहास में अमिट छाप छोड़ी। गांधीजी, गोपाल कृष्ण गोखले, रवींद्रनाथ टैगोर और सरला देवी चौधुरानी जैसे बड़े नेताओं से उनके घनिष्ठ संबंध थे।

1917 के बाद, उन्होंने गांधीजी के नेतृत्व में चलने वाले सत्याग्रह आंदोलन में हिस्सा लिया। यह आंदोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसात्मक विरोध पर आधारित था। 1919 में वह लंदन गईं जहाँ उन्होंने ‘ऑल इंडिया होमरूल लीग’ के माध्यम से भारत की आज़ादी की आवाज़ उठाई। इसके अगले ही साल, उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया और जनता को ब्रिटिश शासन से सहयोग न करने के लिए प्रेरित किया।

1925 में, वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष बनीं। यह एक ऐसा पद था जिस पर आज तक सिर्फ पुरुषों का वर्चस्व रहा था। यह उनके नेतृत्व और समाज में बढ़ते महिला सशक्तिकरण का प्रतीक था। 1927 में उन्होंने ऑल इंडिया वुमेन्स कॉन्फ्रेंस की स्थापना में अहम भूमिका निभाई, जिससे महिलाओं को संगठित होकर अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने का मंच मिला।

1930 में, जब नमक सत्याग्रह शुरू हुआ, तो गांधीजी ने पहले महिलाओं को इसमें शामिल करने से मना कर दिया, क्योंकि आंदोलन कठिन और जोखिम भरा था। लेकिन सरोजिनी नायडू, कमलादेवी चट्टोपाध्याय और खुर्शीद नौरोजी जैसी महिलाओं ने उन्हें मनाया और वे आंदोलन में शामिल हुईं। जब गांधीजी को गिरफ्तार किया गया, तो उन्होंने Sarojini Naidu को आंदोलन का अगला नेता नियुक्त किया। यह उनके प्रति गांधीजी के विश्वास को दर्शाता है।

1931 में, उन्होंने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लिया, जिसमें भारत की आज़ादी को लेकर ब्रिटिश सरकार से बातचीत हुई। लेकिन अंग्रेजों ने उन्हें चुप नहीं करा सके। 1932 और फिर 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें जेल में डाल दिया गया। उन्होंने 21 महीने जेल में बिताए, लेकिन कभी भी हार नहीं मानी।

Sarojini Naidu का जीवन साहस, आत्मबल और देशभक्ति की मिसाल है। उन्होंने न केवल महिलाओं को राजनीतिक आंदोलन में भाग लेने की प्रेरणा दी, बल्कि यह भी साबित किया कि महिला होना कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत है।

आज जब हम आज़ाद भारत में सांस ले रहे हैं, तो हमें Sarojini Naidu जैसी महिलाओं को याद करना चाहिए जिन्होंने हमारे लिए यह रास्ता आसान नहीं, बल्कि संभव बनाया।

सरोजिनी नायडू: भारत की पहली महिला राज्यपाल

Sarojini Naidu का नाम भारत की आज़ादी की लड़ाई में जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही बड़ा उनका योगदान भारत के स्वतंत्र होने के बाद भी रहा। जब देश को 1947 में आज़ादी मिली, तब एक नया भारत बन रहा था – और ऐसे समय में जिन लोगों पर सबसे ज़्यादा भरोसा किया गया, उनमें Sarojini Naidu का नाम सबसे ऊपर था।

भारत के आज़ाद होने के बाद उन्हें यूनाइटेड प्रोविन्सेस (जो आज उत्तर प्रदेश है) का राज्यपाल नियुक्त किया गया। इस पद को संभालने वाली वे भारत की पहली महिला बनीं। यह एक ऐतिहासिक क्षण था – एक महिला, जिसने आज़ादी के लिए जेल झेली थी, अब स्वतंत्र भारत में सबसे बड़े राज्यों में से एक की जिम्मेदारी संभाल रही थी।

यह सिर्फ एक पद नहीं था, बल्कि महिलाओं के लिए एक संदेश था कि अब वे भी देश के नेतृत्व में बराबरी की भागीदार हैं। Sarojini Naidu ने यह पद मार्च 1949 में अपनी मृत्यु तक ईमानदारी और समर्पण के साथ निभाया। जब वे दुनिया से विदा हुईं, तब वे 70 वर्ष की थीं, लेकिन उनका जीवन और योगदान अमर हो गया।

उनकी राज्यपाल बनने की कहानी यह दिखाती है कि एक महिला चाहे तो इतिहास बदल सकती है। उन्होंने भारत की महिलाओं के लिए एक नई राह खोली – एक ऐसी राह जो आत्मविश्वास, जिम्मेदारी और नेतृत्व से भरी हुई थी।

आज जब हम किसी महिला को ऊँचे पदों पर देखते हैं, तो हमें याद रखना चाहिए कि इस रास्ते की शुरुआत Sarojini Naidu जैसी बहादुर महिलाओं ने ही की थी।

 

Sarojini Naidu की साहित्यिक यात्रा

Sarojini Naidu को अगर केवल एक राजनेता या स्वतंत्रता सेनानी के रूप में देखा जाए, तो यह उनकी प्रतिभा के साथ न्याय नहीं होगा। वे उतनी ही गहरी, सुंदर और संवेदनशील कवयित्री भी थीं। उनकी कविताएँ सिर्फ शब्द नहीं थीं, वो भारत की आत्मा का संगीत थीं।

उन्होंने केवल 12 साल की उम्र में लिखना शुरू कर दिया था। उनकी पहली रचना Maher Muneer नाम का एक फारसी नाटक था, जिसे पढ़कर हैदराबाद के निज़ाम बहुत प्रभावित हुए थे। यह शुरुआत ही बताती है कि वे असाधारण प्रतिभा की धनी थीं।

Sarojini Naidu ने अंग्रेज़ी में कविताएँ लिखीं, लेकिन उनमें भारत की खुशबू, रंग, ध्वनि और भावना बहुत गहराई से महसूस होती थी। उनकी कविताओं में प्रकृति, प्रेम, देशभक्ति, स्त्री की भावना और भारत की विविधता सब कुछ दिखाई देता है। उन्हें “Indian Yeats” कहा जाता था, जो एक बहुत बड़ा सम्मान था।

उनकी पहली कविता पुस्तक The Golden Threshold 1905 में लंदन में प्रकाशित हुई। इसके बाद The Bird of Time (1915) और The Broken Wing (1917) जैसे संग्रह आए। The Bird of Time में उनकी प्रसिद्ध कविता “In the Bazaars of Hyderabad” भी है, जिसमें उन्होंने भारतीय बाजारों की रंगीन और जीवंत तस्वीर पेश की है।

1915 में उन्होंने The Gift of India कविता लिखी, जिसमें उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध में मरे भारतीय सैनिकों को याद किया। उन्होंने यह कविता हैदराबाद लेडीज़ वॉर रिलीफ एसोसिएशन के सामने पढ़ी थी। इसी साल उन्होंने Awake! नामक कविता भी लिखी, जिसे मुहम्मद अली जिन्ना को समर्पित किया था और इसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में पढ़ा

उनकी कविताओं का एक संग्रह The Sceptred Flute 1928 में न्यूयॉर्क से छपा। उनकी मृत्यु के बाद, उनकी unpublished कविताओं को उनकी बेटी पद्मजा नायडू ने The Feather of the Dawn (1961) नाम से प्रकाशित किया।

उनकी रचनात्मकता सिर्फ कविताओं तक सीमित नहीं थी। 1918 में उनके भाषणों का पहला संग्रह The Speeches and Writings of Sarojini Naidu छपा, जो बहुत लोकप्रिय हुआ और फिर 1919 और 1925 में पुनः प्रकाशित हुआ। उन्होंने Muhammad Ali Jinnah – An Ambassador of Unity नामक पुस्तक का भी संपादन किया और उस किताब में जिन्ना का एक सुंदर चरित्र-चित्र प्रस्तुत किया।

Sarojini Naidu का लेखन यह दिखाता है कि कलम में कितनी ताकत होती है। उन्होंने न सिर्फ भारत को आज़ादी दिलाने की लड़ाई लड़ी, बल्कि अपने शब्दों से लोगों के दिलों को छुआ, जगाया और जोड़ा। उनकी कविताएँ आज भी उतनी ही ताजगी और सच्चाई से भरी लगती हैं जितनी उस समय लगती थीं।

जीवन का अंत

सरोजिनी नायडू, जिन्हें भारत की “राष्ट्रीय कविता की कॉमल आवाज़” कहा जाता है, का जीवन 2 मार्च 1949 को लखनऊ में एक शांतिपूर्ण शाम को समाप्त हो गया। वे उस समय लखनऊ के सरकारी भवन में थीं, जब दोपहर करीब 3:30 बजे उनका हृदय गति रुक गया।

कुछ समय पहले, 15 फरवरी को नई दिल्ली से लौटने के बाद, डॉक्टरों ने उन्हें पूरी तरह आराम करने की सलाह दी थी। उनके सभी आधिकारिक कार्यक्रम रद्द कर दिए गए थे ताकि वे अपनी सेहत पर ध्यान दे सकें। लेकिन उनके स्वास्थ्य में तेजी से गिरावट आने लगी थी। 1 मार्च की रात उन्हें तेज़ सिरदर्द हुआ, जिसके बाद डॉक्टरों ने रक्तस्राव का इलाज किया।

उस रात उनके खांसी के दौरे ने उन्हें कमजोर कर दिया, और वे बेहोश हो गईं। करीब 10:40 बजे रात को नायडू ने अपने नर्स से कहा कि वह उन्हें कोई गीत सुनाए ताकि वे सो सकें। यह गीत उनके लिए एक अंतिम शांति की छाया जैसा था।

उसके बाद उनकी आँखें हमेशा के लिए बंद हो गईं। इस तरह भारत की एक महान कवयित्री, नेता और स्वतंत्रता सेनानी का जीवन समाप्त हुआ।

उनका अंतिम संस्कार गोमती नदी के किनारे किया गया, जहाँ देश के कई लोग उनकी याद में एकत्र हुए। Sarojini Naidu ने अपनी ज़िंदगी में जो प्रेरणा और प्रकाश फैलाया था, वह आज भी हमारे दिलों में जीवित है।

उनका जाना एक युग के अंत जैसा था, लेकिन उनकी कविताएं, उनके शब्द और उनका संघर्ष आज भी हर भारतीय को प्रेरणा देता है।

Sarojini Naidu की विरासत

Sarojini Naidu को भारत की उन महान महिलाओं में गिना जाता है जिन्होंने न केवल देश के लिए लड़ाई लड़ी, बल्कि महिलाओं के अधिकारों और सम्मान के लिए भी आवाज़ उठाई। वे भारत की प्रमुख नारीवादी शख्सियतों में से एक हैं। इसलिए उनका जन्मदिन, 13 फरवरी, पूरे देश में महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है ताकि महिलाओं की ताकत और योगदान को याद किया जा सके।

नायडू की कविताएँ इतनी प्रभावशाली थीं कि उन्हें “भारत की नाइटिंगेल” कहा गया। उनकी कविताओं पर संगीत भी बनाया गया। उदाहरण के लिए, हेलन सर्लेस वेस्टब्रुक ने उनका एक कविता पाठ लेकर एक खूबसूरत गीत “Invincible” तैयार किया। और हाल ही में, अमेरिकी भारतीय संगीतकार श्रुति राजसेकर ने उनकी जिंदगी और स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित एक बड़ा संगीत कार्यक्रम ‘सरोजिनी’ बनाया।

उनकी पहली कविता संग्रह Golden Threshold का नाम हैदराबाद विश्वविद्यालय में एक स्कूल के नाम पर रखा गया है, जहां कला और संचार पढ़ाए जाते हैं। यह दिखाता है कि उनकी रचनात्मकता और काव्य प्रतिभा को आज भी कितना सम्मान दिया जाता है।

Sarojini Naidu का नाम एक अंतरिक्षीय ग्रह, 5647 Sarojininaidu, को भी दिया गया है, जो बताता है कि उनकी प्रसिद्धि और सम्मान सिर्फ पृथ्वी तक ही सीमित नहीं है।

2014 में, गूगल ने उनके 135वें जन्मदिन पर एक खास डूडल बनाकर उन्हें याद किया, जिससे यह साबित होता है कि उनकी छवि और योगदान आज भी लोगों के दिलों में जीवित है।

उनके जीवन पर कई किताबें लिखी गई हैं, जिनमें पहली जीवनी Sarojini Naidu: a Biography 1966 में प्रकाशित हुई थी। बच्चों के लिए भी उनकी कहानी The Nightingale and The Freedom Fighter के रूप में पेश की गई है। साथ ही 1975 में भारत सरकार ने उनकी जिंदगी पर एक डॉक्यूमेंट्री भी बनाई।

और अब, 2020 में, उनकी जीवनगाथा पर एक बायोपिक बनाने की घोषणा हुई है, जिसमें अभिनेत्री दीपिका चिक्लिया नायडू की भूमिका निभाएंगी। यह दर्शाता है कि उनकी कहानी नई पीढ़ी तक पहुँचाने का प्रयास लगातार जारी है।

Sarojini Naidu की विरासत हमें यह सिखाती है कि एक महिला केवल कवि या नेता ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत भी हो सकती है। उनकी जयंती और उनकी कविताएं हमें हमेशा याद दिलाती हैं कि हमें अपने सपनों और अधिकारों के लिए हमेशा आवाज़ उठानी चाहिए।

Green Adventure

Her extensive perceived may any sincerity extremity. Indeed add rather may pretty see. Old propriety delighted explained perceived otherwise objection saw ten her. Doubt merit sir the right these alone keeps.

Procuring education on consulted assurance in do. Is sympathize he expression mr no travelling. Preference he he at travelling in resolution. So striking at of to welcomed resolved. Northward by described up household therefore attention. Excellence decisively nay man yet impression for contrasted remarkably. 

Enjoy The Best Experience with Us

Procuring education on consulted assurance in do. Is sympathize he expression mr no travelling. Preference he he at travelling in resolution. So striking at of to welcomed resolved. Northward by described up household therefore attention. Excellence decisively nay man yet impression for contrasted remarkably.

Create Your Journey

Procuring education on consulted assurance in do. Is sympathize he expression mr no travelling. Preference he he at travelling in resolution. So striking at of to welcomed resolved. Northward by described up household. 

Procuring education on consulted assurance in do. Is sympathize he expression mr no travelling. Preference he he at travelling in resolution. So striking at of to welcomed resolved. Northward by described up household therefore attention. Excellence decisively nay man yet impression for contrasted remarkably. 

home 2

Green Adventure

Her extensive perceived may any sincerity extremity. Indeed add rather may pretty see. Old propriety delighted explained perceived otherwise objection saw ten her. Doubt merit sir the right these alone keeps.

Procuring education on consulted assurance in do. Is sympathize he expression mr no travelling. Preference he he at travelling in resolution. So striking at of to welcomed resolved. Northward by described up household therefore attention. Excellence decisively nay man yet impression for contrasted remarkably. 

Enjoy The Best Experience with Us

Procuring education on consulted assurance in do. Is sympathize he expression mr no travelling. Preference he he at travelling in resolution. So striking at of to welcomed resolved. Northward by described up household therefore attention. Excellence decisively nay man yet impression for contrasted remarkably.

Share This Article
Leave a Comment