Schizophrenia: दिमाग की अदृश्य जंग और इसके लक्षण व कारण।

Aanchalik Khabre
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कल्पना कीजिए — आपके आसपास सब कुछ सामान्य दिख रहा है, लेकिन आपके दिमाग में ऐसी आवाजें गूंज रही हैं, जो किसी और को सुनाई नहीं देतीं। आपको यकीन है कि कोई आपका पीछा कर रहा है, जबकि बाकी लोग आपको समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि ऐसा कुछ नहीं है। और सबसे कठिन हिस्सा? आप खुद भी यह तय नहीं कर पाते कि असलियत क्या है। यही है सिज़ोफ्रेनिया — एक मानसिक विकार, जो व्यक्ति के सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने के तरीके को गहराई से बदल देता है।

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क्या है सिज़ोफ्रेनिया?

दुनिया भर में लगभग 2 करोड़ लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। हर साल प्रति 10,000 लोगों में 1.5 नए मामले सामने आते हैं।
अमेरिका में, लगभग 28 लाख वयस्क प्रभावित हैं। आंकड़े बताते हैं कि यह बीमारी दुनिया में विकलांगता (डिसएबिलिटी) के 15 बड़े कारणों में से एक है।

कब और किसे होता है यह रोग?

आमतौर पर इसके लक्षण किशोरावस्था के अंत से लेकर शुरुआती तीसवें वर्ष के बीच शुरू होते हैं।

पुरुषों में यह पहले — लगभग 18-25 वर्ष के बीच — शुरू हो सकता है।

महिलाओं में प्रायः 25-35 वर्ष के बीच दिखाई देता है।

अक्सर लक्षण शुरू होने से पहले ही, व्यक्ति की सामाजिक बातचीत और संज्ञानात्मक क्षमता में सूक्ष्म बदलाव आ जाते हैं — जिन्हें परिवार और दोस्त सामान्य तनाव या व्यक्तित्व परिवर्तन समझकर नज़रअंदाज़ कर देते हैं।

कितना आम है सिज़ोफ्रेनिया?

दुनिया भर में लगभग 2 करोड़ लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। हर साल प्रति 10,000 लोगों में 1.5 नए मामले सामने आते हैं।
अमेरिका में, लगभग 28 लाख वयस्क प्रभावित हैं। आंकड़े बताते हैं कि यह बीमारी दुनिया में विकलांगता (डिसएबिलिटी) के 15 बड़े कारणों में से एक है।

एक अदृश्य सामाजिक बोझ

हो सकता है सिज़ोफ्रेनिया का प्रचलन अन्य बीमारियों की तुलना में कम हो, लेकिन इसका सामाजिक और आर्थिक असर बहुत गहरा है।

अमेरिका में सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित लोगों की औसत जीवन-हानि 28.5 वर्ष है।

आत्महत्या का खतरा 4.9% तक होता है — जो सामान्य जनसंख्या से कई गुना ज्यादा है।

हृदय रोग, लिवर रोग और डायबिटीज जैसी बीमारियां इस खतरे को और बढ़ाती हैं।

आधे से ज्यादा मरीजों में डिप्रेशन, PTSD, OCD या पैनिक डिसऑर्डर जैसी अन्य मानसिक बीमारियां भी पाई जाती हैं।

क्या यह सिर्फ मानसिक असर डालता है?

नहीं। यह बीमारी व्यक्ति की पूरी सामाजिक और आर्थिक जिंदगी को प्रभावित करती है:

नौकरी या पढ़ाई में कठिनाई

रिश्तों का टूटना

सामाजिक अलगाव

आपराधिक न्याय प्रणाली में भागीदारी (कुछ मामलों में हिंसक व्यवहार के कारण)
पश्चिमी देशों में हत्याओं के 6% मामले सिज़ोफ्रेनिया मरीजों से जुड़े पाए गए हैं। हालांकि, यह ध्यान रखना जरूरी है कि अधिकांश मरीज हिंसक नहीं होते, लेकिन बिना इलाज के जोखिम बढ़ सकता है।

वैश्विक परिप्रेक्ष्य: 1990 से 2019 तक

Global Burden of Diseases Study के अनुसार:

कुल मामले 1990 में 1.42 करोड़ से बढ़कर 2019 में 2.36 करोड़ हो गए — 65% वृद्धि।

नए मामले 9.41 लाख से बढ़कर 13 लाख — 37% वृद्धि।

अक्षम जीवन वर्ष (DALYs) 91 लाख से बढ़कर 1.51 करोड़ — 65% वृद्धि।

दिलचस्प बात यह है कि उम्र-मानकीकृत दरें लगभग स्थिर रहीं, यानी आबादी बढ़ने और जीवन-काल लंबा होने से कुल संख्या में वृद्धि हुई।

क्यों बढ़ रहा है बोझ?

कम SDI (सामाजिक-जनसांख्यिकीय सूचकांक) वाले देशों में पहचान और इलाज की कमी।

उच्च SDI वाले देशों में इलाज की सुविधा होते हुए भी रोकथाम और शुरुआती पहचान पर पर्याप्त ध्यान नहीं।

बढ़ती जनसंख्या और शहरी तनाव।

मानसिक स्वास्थ्य के प्रति सामाजिक कलंक, जिससे लोग मदद लेने से बचते हैं।

इलाज संभव है, लेकिन…

सिज़ोफ्रेनिया पूरी तरह ठीक होना मुश्किल है, लेकिन सही इलाज से व्यक्ति एक संतुलित और उत्पादक जीवन जी सकता है।

एंटीसाइकोटिक दवाएं (जैसे क्लोज़ापिन) लक्षणों को नियंत्रित करती हैं।

कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (CBT) सोचने और व्यवहार के पैटर्न सुधारने में मदद करती है।

परिवार का सहयोग और सामाजिक पुनर्वास बेहद अहम है।

फिर भी, 2025 की स्थिति चिंताजनक है — आज भी एक-तिहाई से भी कम मरीजों को उपचार मिल रहा है, खासकर कम आय वाले देशों में।

हमें क्या बदलना होगा?

शुरुआती पहचान – परिवार और शिक्षक अगर शुरुआती लक्षण पहचान लें तो समय रहते इलाज शुरू हो सकता है।

कलंक तोड़ना – मानसिक बीमारी को कमजोरी मानने की सोच बदलनी होगी।

स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश – मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता बढ़ानी होगी।

सार्वजनिक जागरूकता – जितना हम डायबिटीज या कैंसर के बारे में बात करते हैं, उतना ही मानसिक स्वास्थ्य पर भी बात करनी होगी।

अंत में…

सिज़ोफ्रेनिया किसी की जिंदगी को अंदर से चुपचाप खा जाने वाली बीमारी है — जैसे दीवार के भीतर धीरे-धीरे बढ़ती सीलन। आप ऊपर से सामान्य घर देखते हैं, लेकिन अंदर का ढांचा कमजोर हो रहा होता है। फर्क बस इतना है कि घर की मरम्मत जल्दी हो जाती है, लेकिन इंसान की मरम्मत में समय, धैर्य और समाज का सहयोग लगता है।

अगर हम सच में अपने समाज को स्वस्थ बनाना चाहते हैं, तो हमें सिज़ोफ्रेनिया को “किसी और की समस्या” मानना बंद करना होगा और इसे मानसिक स्वास्थ्य की प्राथमिकता में शामिल करना होगा।
क्योंकि दिमाग की यह अदृश्य जंग, तब तक जीतना मुश्किल है, जब तक हम सब मिलकर मैदान में न उतरें।

 

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