एक जवान, जो देश के लिए लौट रहा था
रविवार की रात मेरठ के भूनी टोल प्लाजा पर जो कुछ हुआ, वह सिर्फ एक जवान के साथ मारपीट की घटना नहीं थी, बल्कि यह सवाल था – क्या वर्दी के पीछे छुपा इंसान हमारे लिए कोई मायने रखता है?
- एक जवान, जो देश के लिए लौट रहा था
- भूनी टोल पर हुई झड़प और मारपीट
- CCTV फुटेज, वीडियो वायरल और ग्रामीणों का आक्रोश
- सवाल सिर्फ गिरफ्तारी का नहीं है
- क्या टोल कर्मचारियों को संवेदनशीलता की ज़रूरत है?
- भीड़ का गुस्सा: कानून को हाथ में लेना भी गलत
- जवानों का सम्मान सिर्फ युद्ध के समय क्यों?
- प्रशासन की भूमिका और ज़िम्मेदारी
- कपिल की चुप्पी, हमारी ज़िम्मेदारी
कपिल नाम का जवान, जो श्रीनगर में तैनात था, ऑपरेशन सिंदूर के बाद छुट्टी पर अपने गांव गोटका आया था। कांवड़ यात्रा के बाद उसे सोमवार सुबह ड्यूटी पर वापस लौटना था। दिल्ली से उसकी फ्लाइट थी, और उसका चचेरा भाई शिवम उसे कार से एयरपोर्ट छोड़ने जा रहा था।
भूनी टोल पर हुई झड़प और मारपीट
जब कपिल की कार टोल प्लाजा पर लंबी कतार में फंस गई, तो उसने कर्मचारियों से अनुरोध किया कि रास्ता साफ कर दिया जाए। उसने अपना आर्मी ID कार्ड और छुट्टी का पत्र दिखाया। यह भी बताया कि उसका गांव टोल छूट की श्रेणी में आता है।
लेकिन कर्मचारियों ने न सिर्फ बहस की, बल्कि उसका ID कार्ड और मोबाइल फोन छीन लिया। विरोध करने पर कपिल और उसके भाई शिवम पर हमला किया गया। कपड़े तक फाड़ दिए गए।
यह पूरी घटना टोल प्लाजा के CCTV में रिकॉर्ड हो गई। यह केवल मारपीट नहीं थी, बल्कि अपमान था – एक ऐसे इंसान का अपमान, जो अपनी जान की बाज़ी लगाकर देश की सीमाओं की रक्षा करता है।

CCTV फुटेज, वीडियो वायरल और ग्रामीणों का आक्रोश
घटना का वीडियो वायरल होते ही मामला सुर्खियों में आ गया। गांव वालों में जब यह खबर पहुंची, तो आक्रोश फूट पड़ा। ग्रामीणों ने विरोध किया, प्रदर्शन किया और एक आरोपी टोलकर्मी को पकड़कर पीटा भी, जिसे बाद में अस्पताल ले जाया गया।
इस बीच पुलिस मौके पर पहुंची और स्थिति को नियंत्रण में लिया। जवान के पिता ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस ने CCTV फुटेज के आधार पर छह लोगों को गिरफ्तार किया और अन्य की तलाश जारी है।
सवाल सिर्फ गिरफ्तारी का नहीं है
गिरफ्तारी ज़रूरी है, लेकिन यह सवाल अकेले आरोपियों तक सीमित नहीं रहना चाहिए। असली मुद्दा है — क्या हमारी समाजिक व्यवस्था में अब सेना के जवानों के लिए भी कोई सम्मान नहीं बचा? क्या वर्दी पहने बिना उनका कोई मूल्य नहीं?
क्या टोल कर्मचारियों को संवेदनशीलता की ज़रूरत है?
टोल प्लाज़ा जैसे सार्वजनिक स्थानों पर काम करने वाले कर्मचारियों को न सिर्फ नियमों की जानकारी होनी चाहिए, बल्कि उन्हें मानवीय व्यवहार और सम्मान की समझ भी होनी चाहिए।
ट्रेनिंग का दायरा केवल तकनीकी ज्ञान तक सीमित नहीं रहना चाहिए, संवेदनशीलता भी एक ज़रूरी पहलू है।
भीड़ का गुस्सा: कानून को हाथ में लेना भी गलत
गांववालों का गुस्सा समझा जा सकता है, लेकिन एक टोलकर्मी को पीटना कानून का उल्लंघन है। कानून को अपने हाथ में लेना गलत है।
यह घटना दो पक्षों की असंवेदनशीलता को उजागर करती है, एक तरफ टोलकर्मी, दूसरी ओर भीड़। दोनों ही स्थिति में एक संतुलित व्यवस्था की कमी दिखती है।
जवानों का सम्मान सिर्फ युद्ध के समय क्यों?
कपिल जैसे हजारों जवान देश के लिए अपने परिवार से दूर, खतरनाक इलाकों में तैनात रहते हैं।
वे छुट्टियों में जब गांव आते हैं, तो उनके पास सीमित समय होता है। ड्यूटी पर लौटते हुए अगर उन्हें भी अपमान और हिंसा झेलनी पड़े तो यह समाज के लिए शर्मनाक स्थिति है।
हमें यह सोचना होगा, क्या हम अपने रक्षक का यही “इनाम” दे रहे हैं?
प्रशासन की भूमिका और ज़िम्मेदारी
पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) राकेश कुमार मिश्रा ने बताया कि छह आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है और बाकी की तलाश की जा रही है।
यह अच्छी शुरुआत है, लेकिन इस घटना को केवल एक केस की तरह न देखा जाए, बल्कि एक मिसाल के रूप में लिया जाए ताकि दोबारा ऐसा न हो।
कपिल की चुप्पी, हमारी ज़िम्मेदारी
कपिल शायद अब श्रीनगर में फिर ड्यूटी कर रहा होगा। लेकिन उसके मन में यह कड़वी घटना हमेशा रहेगी। उसे याद रहेगा कि जिस देश के लिए वह लड़ता है, उसी देश में उसे टोल पर अपमानित किया गया।
अब यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम एक समाज के रूप में अपनी भूमिका पर फिर से सोचें। क्या हम केवल सोशल मीडिया पर सैनिकों के लिए “जय हिंद” लिखने तक सीमित रह जाएंगे, या फिर उनकी ज़िंदगी में सम्मान और सहयोग भी जोड़ पाएंगे?