भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर की हाल की रूस यात्रा कई मायनों में बेहद अहम मानी जा रही है। इस यात्रा के दौरान उन्होंने न केवल रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से मुलाकात की, बल्कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी बातचीत की। इन मुलाकातों में तेल व्यापार, वैश्विक राजनीति, अमेरिकी टैरिफ और भारत-रूस के बीच के संबंधों पर खुलकर चर्चा हुई।
जयशंकर की इस यात्रा का सबसे बड़ा बयान तब आया जब उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “भारत नहीं, चीन है रूस से कच्चा तेल खरीदने वाला सबसे बड़ा देश।” उनका यह बयान उस वक्त आया जब अमेरिका ने भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाने की घोषणा की थी, जिसकी वजह भारत द्वारा रूस से तेल खरीद बताई गई थी।
भारत और रूस का तेल व्यापार
भारत और रूस के बीच कच्चे तेल की खरीद-बिक्री पिछले कुछ वर्षों में तेज़ी से बढ़ी है। पहले भारत रूस से बहुत कम मात्रा में तेल मंगवाता था। 2020 में भारत केवल 0.2% यानी लगभग 68,000 बैरल प्रतिदिन तेल आयात करता था। लेकिन यूक्रेन युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बने हालात ने पूरी तस्वीर बदल दी।
2023 तक भारत रूस से 20 लाख बैरल प्रतिदिन तेल खरीदने लगा। और 2025 में जनवरी से जुलाई के बीच भारत रोज़ाना लगभग 17.8 लाख बैरल तेल रूस से खरीद रहा है। हर साल भारत रूस से लगभग 130 अरब डॉलर (11 लाख करोड़ रुपये से अधिक) का तेल खरीद रहा है। यह व्यापार दोनों देशों के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद रहा है।
अमेरिका का ऐक्शन और टैरिफ विवाद
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने पर कड़ा रुख अपनाते हुए 25% एक्स्ट्रा टैरिफ लगाने की घोषणा की है। यह टैरिफ 27 अगस्त से लागू होगा। अमेरिका का तर्क है कि भारत के तेल खरीदने से रूस को आर्थिक लाभ मिल रहा है, जो यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में काम आ रहा है।
जयशंकर ने अमेरिकी रुख पर सवाल उठाते हुए कहा कि भारत से ज्यादा तेल तो चीन खरीद रहा है। साथ ही यूरोपीय यूनियन भी रूस से काफी मात्रा में नेचुरल गैस (LNG) खरीद रहा है। इसके बावजूद भारत पर ही टैरिफ लगाना समझ से परे है।
उनका कहना था कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए ही तेल खरीदता है। यह कोई राजनीतिक फैसला नहीं, बल्कि देश की ऊर्जा जरूरतों के अनुसार लिया गया निर्णय है।
रूस से मिल रही छूट
रूसी राजनयिक रोमन बाबुश्किन ने भी हाल ही में कहा कि भारत को रूसी तेल पर करीब 5% की छूट मिल रही है। उनका साफ़ कहना था कि रूसी तेल का कोई सस्ता विकल्प नहीं है और भारत इसे अच्छी तरह समझता है। यही वजह है कि भारत को तेल खरीद में भारी फायदा हो रहा है और वह इसे जारी रखेगा।
बाबुश्किन ने यह भी कहा कि अगर अमेरिका भारत पर दबाव बनाएगा और भारतीय सामान को अपने बाजार में आने से रोकेगा, तो भारत अपने प्रोडक्ट्स को रूस में बेच सकता है। उन्होंने भरोसा जताया कि भारत किसी भी बाहरी दबाव के आगे नहीं झुकेगा और रूस से तेल खरीद जारी रखेगा
जयशंकर-पुतिन मुलाकात: रिश्तों को नई मजबूती
जयशंकर की पुतिन से मुलाकात भी काफी अहम रही। दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय व्यापार, ऊर्जा सहयोग, सुरक्षा और वैश्विक मामलों पर खुलकर बातचीत की। जयशंकर ने कहा कि भारत और रूस का रिश्ता द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से दुनिया के सबसे स्थिर रिश्तों में गिना जाता है। अब इन संबंधों को और मजबूत करने की ज़रूरत है।
उन्होंने यह भी कहा कि भारत और रूस व्यापार में असंतुलन को दूर करने के लिए काम करेंगे। भारत से रूस को कृषि उत्पाद, दवाइयाँ और वस्त्रों का निर्यात बढ़ाया जाएगा ताकि दोनों देशों के बीच व्यापार संतुलित हो सके।
गैर-टैरिफ समस्याओं पर भी होगी कार्रवाई
जयशंकर ने रूस के साथ व्यापार में आ रही गैर-टैरिफ दिक्कतों पर भी चर्चा की। दोनों देशों ने इस बात पर सहमति जताई कि जल्द ही इन समस्याओं को हल किया जाएगा, ताकि व्यापार और आसान हो सके। इससे भारत का निर्यात भी बढ़ेगा और व्यापार घाटा भी कम होगा।
सैन्य सेवा में भारतीयों का मुद्दा
जयशंकर ने रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के साथ एक और संवेदनशील मुद्दा उठाया। उन्होंने उन भारतीयों के बारे में चर्चा की जो किसी तरह रूसी सेना में शामिल हो गए थे। जयशंकर ने बताया कि कुछ भारतीयों को रिहा किया जा चुका है, लेकिन कुछ मामले अभी भी लंबित हैं। उन्होंने रूस से अनुरोध किया कि शेष भारतीयों को भी सुरक्षित तरीके से वापस भेजा जाए।
वैश्विक मुद्दों पर भारत की भूमिका
जयशंकर और लावरोव के बीच हुई बातचीत में यूक्रेन युद्ध, अफगानिस्तान और पश्चिम एशिया की स्थिति जैसे वैश्विक मुद्दे भी शामिल रहे। भारत ने एक बार फिर शांति और कूटनीति का समर्थन करते हुए कहा कि युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। भारत चाहता है कि दुनिया संवाद और आपसी समझदारी से आगे बढ़े।
जयशंकर की रूस यात्रा कई मामलों में भारत की स्वतंत्र विदेश नीति की पुष्टि करती है। भारत आज किसी के दबाव में नहीं, बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर फैसले ले रहा है। रूस से तेल खरीद पर भारत को न तो शर्मिंदगी है और न ही कोई पछतावा। यह एक सोचा-समझा आर्थिक निर्णय है, जिससे भारत को फायदा हो रहा है।
अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ पर भारत का जवाब यह है कि वह दोहरे मापदंडों को स्वीकार नहीं करेगा। अगर चीन, यूरोप और दूसरे देश रूस से तेल और गैस खरीद सकते हैं, तो भारत क्यों नहीं? भारत अब वैश्विक राजनीति में एक मजबूत आवाज़ बन रहा है और जयशंकर की इस यात्रा ने उस आवाज़ को और मज़बूती दी है।

