नई दिल्ली, 7 सितंबर 2025
देश में लंबे समय से टैक्स सुधारों की मांग के बीच केंद्र सरकार ने हाल ही में जीएसटी 2.0 लागू किया है। नए ढांचे में टैक्स स्लैब्स को सरल बनाते हुए केवल दो प्रमुख दरें रखी गई हैं—5% और 18%। वहीं लग्ज़री प्रोडक्ट्स और हानिकारक वस्तुओं पर 40% टैक्स दर तय की गई है। हालांकि, सबसे अहम सवाल अब भी वही है—क्या पेट्रोल और डीज़ल जैसे ज़रूरी ईंधन पर जनता को कोई राहत मिलेगी?
जीएसटी सुधारों में क्या बदला?
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अब पहले से मौजूद 12% और 28% वाले टैक्स स्लैब हटा दिए गए हैं।
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रोज़मर्रा के इस्तेमाल की कई चीज़ें, जैसे—साबुन, शैम्पू, बर्तन और टीवी जैसी इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएँ, अब 5% या 18% के स्लैब में आ गई हैं।
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स्वास्थ्य, कृषि और निर्माण से जुड़ी कई सेवाओं पर भी टैक्स का बोझ हल्का किया गया है।
ईंधन क्यों है बाहर?
सरकार ने फिलहाल पेट्रोल और डीज़ल को जीएसटी के दायरे में शामिल नहीं किया है। इसकी वजह यह है कि ईंधन से होने वाला टैक्स कलेक्शन केंद्र और राज्य सरकारों की आमदनी का बड़ा हिस्सा है। अगर इसे जीएसटी में लाया गया, तो दोनों ही स्तर पर राजस्व में बड़ी कमी आ सकती है। यही वजह है कि आम जनता अभी तक पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में राहत महसूस नहीं कर पाई है।
जनता को कहाँ मिल रही राहत?
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छोटे इंजनों वाली कारों और टू-व्हीलर्स पर टैक्स घटाकर 18% कर दिया गया है। इससे उनकी कीमतें कम होने लगी हैं।
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महिंद्रा, टाटा, रेनॉल्ट और अन्य ऑटो कंपनियों ने अपने कई मॉडलों पर कीमतों में कटौती का ऐलान किया है।
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Flipkart और अन्य ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स को भी कहा गया है कि वे टैक्स में मिली छूट सीधे ग्राहकों तक पहुंचाएं।
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घरेलू वस्तुओं जैसे टीवी, कूलर, साबुन और किचन आइटम्स में भी कीमतें कम होने की संभावना है।
क्या कंपनियाँ फायदा ग्राहकों तक पहुँचा रही हैं?
सरकार ने केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBIC) को निर्देश दिए हैं कि वे लगातार निगरानी करें। अगर कंपनियाँ टैक्स छूट का लाभ अपने पास रखती हैं और जनता तक नहीं पहुँचातीं, तो उन पर कड़ी कार्रवाई होगी।
जीडीपी और अर्थव्यवस्था पर असर
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन का कहना है कि इस सुधार से न केवल महँगाई पर काबू पाया जा सकेगा, बल्कि उपभोग बढ़ने से जीडीपी को भी मजबूती मिलेगी। उद्योग जगत और आर्थिक विशेषज्ञ भी मानते हैं कि यह टैक्स ढांचा लंबे समय में देश की अर्थव्यवस्था को और मजबूत करेगा।
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