दिल्ली : हैदरपुर नहर में दो मासूम बच्चों की मौत, सुरक्षा व्यवस्था पर उठे सवाल

Aanchalik Khabre
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हैदरपुर नहर

परिचय

दिल्ली में एक बार फिर लापरवाही और सुरक्षा की कमी ने दो परिवारों से उनके बच्चों को छीन लिया। उत्तर-पश्चिम दिल्ली के शालीमार बाग़ इलाके से जुड़ी हैदरपुर नहर (Haiderpur Canal) में दो बच्चों की डूबकर मौत हो गई। यह हादसा न केवल क्षेत्र के लोगों को गहरे सदमे में डाल गया, बल्कि नहर के किनारे की सुरक्षा व्यवस्था पर भी गंभीर प्रश्न खड़े कर रहा है।


हादसा कैसे हुआ?

रविवार की दोपहर करीब 4 बजे इलाके के कुछ बच्चे नहर के पास खेल रहे थे। गर्मी और उमस के बीच उनमें से दो बच्चे—अनिकेत (9 वर्ष) और कृष्ण कुमार (13 वर्ष)—पानी में उतर गए। थोड़ी ही देर में तेज़ धारा ने उन्हें अपनी गिरफ्त में ले लिया।

पास खड़े अन्य बच्चों ने शोर मचाया और आसपास के लोग मदद के लिए दौड़े, लेकिन तेज़ बहाव की वजह से दोनों को बचाया नहीं जा सका। सूचना पाकर पुलिस मौके पर पहुँची और गोताखोरों की मदद से बच्चों को बाहर निकाला गया। अस्पताल ले जाने पर डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।


पीड़ित परिवार की पृष्ठभूमि

अनिकेत और कृष्ण दोनों ऐसे परिवारों से थे, जिनकी आर्थिक स्थिति बहुत मज़बूत नहीं है। दोनों बच्चों की माताएं पहले ही गुजर चुकी थीं और उनके पिता दिहाड़ी मजदूरी करके परिवार का पालन-पोषण कर रहे थे। अनिकेत तीन भाइयों में सबसे छोटा था। इस हादसे के बाद परिजनों ने कहा कि “वह हमारी आखिरी उम्मीद था, लेकिन अब सब खत्म हो गया।”


हादसे के बाद परिवार का आरोप

परिजनों और स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर नहर के किनारे सुरक्षा व्यवस्था होती, तो यह दुर्घटना टाली जा सकती थी।

  • नहर के किनारे न तो कोई बैरिकेड है,

  • न चेतावनी बोर्ड लगे हैं,

  • और न ही नियमित निगरानी की कोई व्यवस्था है।

लोगों का कहना है कि प्रशासन को बार-बार इस खतरे के बारे में बताया गया, लेकिन समय रहते कोई कदम नहीं उठाया गया।


दिल्ली में लगातार बढ़ते ऐसे हादसे

हैदरपुर नहर का यह पहला मामला नहीं है। हाल के महीनों में दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में पानी से जुड़े कई हादसे सामने आए हैं।

  • यमुना नदी और नहरों में नहाते समय बच्चों और युवाओं के डूबने की घटनाएं बार-बार हो रही हैं।

  • पिछले ही हफ्ते राजधानी के एक और हिस्से में 14 वर्षीय लड़का डूब गया था।

  • कई बार पशु बचाने की कोशिश में भी लोग अपनी जान गंवा देते हैं।

ये घटनाएँ दिखाती हैं कि पानी के स्रोतों के पास सुरक्षा इंतज़ाम कितने ज़रूरी हैं, खासकर उन इलाकों में जहां बच्चे अक्सर खेलने आते हैं।


प्रशासन और पुलिस की भूमिका

हादसे के बाद पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। प्रारंभिक रिपोर्ट इसे दुर्घटना मान रही है। बच्चों के शवों का पोस्टमॉर्टेम कराया गया है और आगे की कार्रवाई की जा रही है।

हालाँकि, सवाल यह है कि केवल जांच से समस्या का हल नहीं होगा। जब तक नहरों और जल स्रोतों के किनारे सुरक्षा बैरिकेड, चेतावनी बोर्ड और निगरानी व्यवस्था नहीं होगी, तब तक इस तरह की घटनाएँ होती रहेंगी।


स्थानीय लोगों की मांग

इलाके के निवासियों ने हादसे के बाद प्रशासन से कई माँगें रखीं:

  1. नहर के किनारे मजबूत बैरिकेड लगाए जाएँ।

  2. खतरनाक जगहों पर चेतावनी बोर्ड और सायरन सिस्टम लगाया जाए।

  3. गर्मी और छुट्टियों के समय निगरानी बढ़ाई जाए।

  4. स्कूलों और समुदाय में बच्चों को पानी से जुड़ी सुरक्षा की शिक्षा दी जाए।


हादसों से बचाव के उपाय

विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी त्रासदियों को रोकने के लिए कुछ बुनियादी कदम उठाना बेहद ज़रूरी है:

  • स्थायी बैरिकेड और फेंसिंग: नहरों और तेज़ बहाव वाले क्षेत्रों के आसपास मजबूत अवरोध होने चाहिए।

  • चेतावनी संकेत: स्थानीय भाषा में बोर्ड लगाकर खतरे के बारे में बताया जाए।

  • रेस्क्यू टीम: गर्मी और बारिश के मौसम में खासतौर पर तैनाती हो।

  • जागरूकता अभियान: लोगों और बच्चों को यह समझाना कि नहर में उतरना कितना खतरनाक हो सकता है।


सामाजिक और भावनात्मक असर

बच्चों की मौत केवल उनके परिवार तक सीमित त्रासदी नहीं है। पूरे इलाके में मातम और आक्रोश का माहौल है। लोग डर में हैं कि कहीं अगला शिकार उनका बच्चा न हो जाए। इस घटना ने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि विकासशील शहर में सुरक्षा इंतज़ाम इतने कमजोर क्यों हैं।

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