मुंबई
महाराष्ट्र कांग्रेस के पूर्व संगठन एवं प्रशासन महासचिव देवानंद पवार ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ गंभीर आरोप लगाते हुए इस्तीफ़ा दे दिया है। पवार का कहना है कि डेढ़ करोड़ की आबादी वाला बंजारा समाज लगातार उपेक्षा का शिकार है और कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया।
पवार का आरोप: बहुजनों को न्याय नहीं मिल रहा
देवानंद पवार ने अपना त्यागपत्र कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और प्रदेश अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल को भेजा। इसमें उन्होंने लिखा:
प्रदेश कांग्रेस का नेतृत्व एक खास जाति के लोगों के हाथ में है। बहुजनों को न्याय नहीं मिल रहा और बंजारा समाज को लगातार नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।
पवार ने यह भी कहा कि हाल ही में हुए लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बंजारा बहुल क्षेत्रों से उम्मीदवार उतारने का वादा किया गया था, लेकिन अंततः किसी भी स्थान से समाज को टिकट नहीं मिला।
बिहार की राजनीति पर भी असर?
पवार के आरोप ऐसे समय में आए हैं जब राहुल गांधी बिहार में भाजपा के खिलाफ “सामाजिक न्याय” और “वोट चोरी” जैसे मुद्दों पर आक्रामक प्रचार कर रहे हैं। कांग्रेस के इस आंतरिक विवाद से बिहार चुनावी समीकरणों पर भी असर पड़ सकता है, क्योंकि भाजपा कांग्रेस पर पिछड़े वर्गों की अनदेखी का पलटवार कर सकती है।
बंजारा समाज क्यों है अहम?
महाराष्ट्र में बंजारा समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। यह एक प्रभावशाली वोट बैंक माना जाता है।
बंजारा समाज एक नज़र में:
- महाराष्ट्र की कुल आबादी: 11.23 करोड़ (जनगणना 2011)
- बंजारा आबादी: 97.76 लाख (8.7%)
- अब तक दो मुख्यमंत्री इसी समाज से
- प्रमुख उपस्थिति: यवतमाल-वाशिम, बुलढाणा, परतुर-मंठा, जामनेर आदि क्षेत्र
कांग्रेस के लिए नई मुश्किलें?
देवानंद पवार का इस्तीफ़ा कांग्रेस के लिए सिरदर्द बन सकता है। पार्टी पहले से ही भाजपा के हमलों का सामना कर रही है। अब बंजारा समाज से जुड़े इस विवाद ने कांग्रेस की “सामाजिक न्याय” वाली राजनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
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