पीयूष, ग्यारहवीं का छात्र, उम्र सिर्फ़ सत्रह साल। उसकी ज़िंदगी अभी शुरू ही हुई थी। वह अपने दोस्तों के साथ सपने बुन रहा था, माँ के साथ भविष्य की बातें करता था और पढ़ाई में भी अच्छा करने की कोशिश करता था। मंगलवार की सुबह भी उसके लिए हर दिन जैसी ही थी। माँ ने उसे स्कूल के लिए तैयार किया, शायद नाश्ता भी कराया होगा और फिर वह मुस्कराते हुए घर से निकला। रोज़ाना की तरह माँ ने उम्मीद की होगी कि बेटा दोपहर ढाई बजे तक लौट आएगा और फिर दोनों साथ खाना खाएँगे।
लेकिन उस दिन यह सामान्य दिन नहीं था। वह सुबह घर से गया तो वापस कभी नहीं लौटा। यह वही दिन था जिसने उसकी माँ की पूरी दुनिया बदल दी। एक साधारण सा किशोर, जो जीवन के सपनों से भरा हुआ था, अचानक अंधविश्वास की बलि चढ़ गया।
माँ का इंतज़ार और डर
एक माँ के लिए बेटे का समय पर न लौटना बहुत बड़ी चिंता की बात होती है। कामिनी ने पहले सोचा होगा कि शायद आज स्कूल में कोई अतिरिक्त कक्षा होगी, या फिर बेटा दोस्तों के साथ खेल रहा होगा। लेकिन समय बीतता गया और बेचैनी बढ़ती गई। जब उन्होंने स्कूल जाकर पता किया तो दिल दहल गया—पीयूष उस दिन स्कूल पहुँचा ही नहीं।
सोचिए उस माँ की हालत, जिसके पास पति पहले ही नहीं थे और इकलौते बेटे के लिए ही सारी उम्मीदें और सपने थे। हर गुजरते पल के साथ उनका डर बढ़ता गया। किसी माँ के लिए यह इंतज़ार मौत जैसा होता है कि बेटा कहाँ गया, किस हाल में होगा। उनकी बेचैनी उस बड़े तूफ़ान की भूमिका थी, जो बाद में पूरे मोहल्ले और शहर को हिला देने वाला था।
जब शहर में फैली सनसनी
शाम होते-होते औद्योगिक क्षेत्र में एक स्कूटी सवार आया और जल्दी से एक पॉलिथीन फेंककर चला गया। लोगों ने जब जाकर देखा तो वहाँ इंसानी धड़ पड़ा हुआ था। सिर और हाथ-पैर गायब थे। यह नज़ारा देखकर हर कोई सहम गया। खबर फैलते ही पूरे इलाके में सनसनी मच गई। लोग कहने लगे कि ऐसा कौन कर सकता है?
पुलिस तुरंत पहुँची और जगह को सील किया गया। यह कोई सामान्य हत्या नहीं थी बल्कि बेहद नृशंस और रोंगटे खड़े कर देने वाली वारदात थी। जिसने भी सुना उसकी रूह काँप गई। शहर में यह चर्चा होने लगी कि आखिर कौन है इतना निर्दयी इंसान जिसने मासूम किशोर की ऐसी हालत कर दी।
पुलिस की तफ्तीश और सीसीटीवी से सुराग
पुलिस ने तुरंत जाँच शुरू की। सबसे पहले आसपास के सीसीटीवी कैमरों को खंगाला गया। 50 से ज़्यादा कैमरों की फुटेज देखी गई। आखिरकार एक स्कूटी पर सवार संदिग्ध की पहचान हुई। फुटेज से पता चला कि वह शहर की तरफ से आया था और शव फेंकने के बाद गायब हो गया।
जाँच के बाद मालूम हुआ कि यह स्कूटी शरण सिंह नाम के शख़्स की है। शरण सिंह किसी अजनबी का नाम नहीं था बल्कि मृतक पीयूष का ही रिश्ते में दादा था। यह सुनकर हर कोई हैरान रह गया। पुलिस ने तुरंत शरण सिंह की तलाश शुरू की और कुछ ही घंटों में उसे हिरासत में ले लिया।
रिश्ते में दादा, पर बना कातिल
किसी को भी विश्वास नहीं हो रहा था कि एक दादा ही अपने पोते जैसे बच्चे की जान ले सकता है। जब पुलिस ने उससे पूछताछ की तो उसने सच कबूल कर लिया। लेकिन जो वजह सामने आई वह और भी ज्यादा खतरनाक थी।
उसने कहा कि उसने अपने ही भतीजे के बेटे की हत्या की है। उसकी आँखों में कोई पछतावा नहीं था, बल्कि उसने यह सब कुछ अंधविश्वास और तांत्रिक की बातों में आकर किया था। समाज के लिए यह खबर और भी चौंकाने वाली थी क्योंकि हत्या के पीछे कोई ज़मीन-जायदाद या आपसी दुश्मनी नहीं थी, बल्कि सिर्फ़ और सिर्फ़ अंधविश्वास था।
अंधविश्वास की खतरनाक जड़ें
शरण सिंह की कहानी अपने आप में दर्दनाक है। कुछ समय पहले उसकी बेटी और बेटा, दोनों ने आत्महत्या कर ली थी। एक पिता के लिए यह सबसे बड़ा सदमा होता है। वह गहरे दुख में डूब गया और धीरे-धीरे उसकी सोच पर अंधविश्वास हावी होने लगा।
दुखी मन इंसान को अक्सर गलत रास्ते पर ले जाता है। उसने एक तांत्रिक का सहारा लिया, जिसने कहा कि अगर वह अपने बेटे-बेटी की उम्र का कोई किशोर मार देगा तो उसके सारे ग्रहदोष दूर हो जाएँगे। इंसान जब दुख और हताशा में होता है तो अक्सर ऐसे झूठे वादों पर भरोसा कर लेता है। यही अंधविश्वास उसकी ज़िंदगी और एक मासूम की जान का सबसे बड़ा दुश्मन बन गया।
जब अंधविश्वास ने ली जान
तांत्रिक की बातों को सच मानकर शरण सिंह ने अपने ही परिवार के मासूम बच्चे को चुन लिया। मंगलवार सुबह उसने मौका देखकर पीयूष की हत्या कर दी। हत्या के बाद उसने सिर और हाथ-पाँव अलग कर दिए और उन्हें जंगल में फेंक दिया। धड़ को उसने स्कूटी पर रखकर औद्योगिक इलाके में छोड़ दिया।
यह सोचकर ही दिल दहल जाता है कि एक इंसान किस तरह अंधविश्वास के अंधेरे में इतना क्रूर बन सकता है। पीयूष के लिए यह दिन उसकी ज़िंदगी का आखिरी दिन बन गया।
माँ की दुनिया उजड़ गई
पीयूष की माँ कामिनी पहले ही पति को खो चुकी थीं। उनका इकलौता सहारा बेटा ही था। वह चाहती थीं कि बेटा पढ़-लिखकर अच्छा इंसान बने, नौकरी करे और उनका सहारा बने। लेकिन एक पल में उनकी पूरी दुनिया उजड़ गई।
अब उनके पास न पति हैं और न बेटा। उनकी आँखों में जो सपने थे, वे हमेशा के लिए टूट गए। एक माँ का यह दर्द शब्दों में बयान करना आसान नहीं है। यह घटना हमें यह सिखाती है कि किसी भी अपराध का सबसे बड़ा असर परिवार की मासूम और निर्दोष आत्माओं पर पड़ता है।
समाज के लिए बड़ा सबक
यह घटना सिर्फ़ एक परिवार की त्रासदी नहीं है, बल्कि पूरे समाज के लिए चेतावनी है। जब तक अंधविश्वास जिंदा है, तब तक ऐसी घटनाएँ दोहराई जाती रहेंगी। हमें समझना होगा कि किसी की जान लेने से कोई ग्रहदोष खत्म नहीं होता।
समाज को आगे बढ़ने के लिए तर्क, शिक्षा और विज्ञान की ज़रूरत है। अगर लोग ऐसे तांत्रिकों के चक्कर में पड़ते रहेंगे तो आने वाली पीढ़ियाँ भी सुरक्षित नहीं होंगी।
बार-बार क्यों दोहराई जाती हैं ऐसी घटनाएँ?
यह पहली बार नहीं है कि किसी मासूम की जान अंधविश्वास की भेंट चढ़ी हो। अलग-अलग राज्यों से ऐसी खबरें आती रहती हैं। कहीं बच्चों की बलि दी जाती है, कहीं महिलाओं को डायन बताकर मार दिया जाता है। यह सब इसलिए होता है क्योंकि लोगों में तर्क और विज्ञान की समझ की कमी है।
जब तक हम शिक्षा को प्राथमिकता नहीं देंगे और जागरूकता नहीं फैलाएँगे, तब तक यह जहर खत्म नहीं होगा। अंधविश्वास का फायदा हमेशा ढोंगी बाबा और तांत्रिक उठाते हैं और उसकी कीमत आम लोग अपनी जान देकर चुकाते हैं।
समाधान क्या है?
इस तरह की घटनाओं को रोकने का सबसे बड़ा उपाय शिक्षा और जागरूकता है। बच्चों को बचपन से ही यह सिखाना होगा कि हर समस्या का हल इंसानी प्रयास और सही सोच में है, न कि किसी बलि या झूठे उपाय में।
मीडिया को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। ऐसे मामलों को सनसनी बनाने के बजाय लोगों को जागरूक करना होगा। गाँव और कस्बों में सामाजिक अभियान चलाने होंगे ताकि लोग ऐसे झूठे दावों पर विश्वास न करें।
मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना ज़रूरी
यह सच है कि शरण सिंह का अपराध अक्षम्य है। लेकिन यह भी सच है कि वह मानसिक रूप से टूटा हुआ इंसान था। अपने बच्चों को खो देने के बाद वह डिप्रेशन और गहरे दुख में चला गया। ऐसे समय में अगर परिवार और समाज उसे सहारा देते, अगर उसे सही इलाज और काउंसलिंग मिलती, तो शायद वह इस रास्ते पर न जाता।
इस घटना ने हमें यह भी सिखाया कि मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लेना चाहिए। दुख और सदमे में इंसान को अकेला छोड़ देना खतरनाक हो सकता है।
पीयूष अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उसकी कहानी हमें यह याद दिलाती है कि अंधविश्वास सिर्फ़ ज़िंदगी बर्बाद करता है। असली ताकत इंसानियत, शिक्षा और जागरूकता में है। अगर हम सब मिलकर अपने समाज को संवेदनशील और तर्कशील बनाएँ तो शायद भविष्य में कोई और पीयूष इस तरह के हादसे का शिकार न बने।
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