राजेंद्र राठौर
भगवान परशुराम ने तैयार की थी रामराज्य की भूमिका- पण्डित द्विजेन्द्र व्यास
झाबुआ । अक्षय तृतीया का भारतीय जनमानस में बड़ा महत्व है। इस दिन स्नान, होम, जप, दान आदि का अनंत फल मिलता है, ऐसा शास्त्रों का मत है। ज्योतिष शिरोमणी पण्डित द्विजेन्द्र व्यास के अनुसार अक्षय तृतीया को ही पीतांबरा, नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम के अवतार हुए इसीलिए इस दिन इनकी जयंती मनाई जाती है। भारतीय कालगणना के सिद्धांत से इसी दिन त्रेता युग का आरंभ हुआ। इसीलिए इस तिथि को सर्वसिद्ध (अबूझ) तिथि के रूप में मान्यता मिली हुई है।
पंडित व्यास कहते है कि अक्षय तृतीया का भगवान परशुराम के अवतार से संबंध होने से यह पर्व राष्ट्रीय शासन व्यवस्था के लिए भी एक विशेष स्मरणीय एवं चिंतनीय पर्व है। दस महाविद्याओं में भगवती पीतांबरा (बगलामुखी) के अनन्य साधक परशुरामजी ने अपनी शक्ति का प्रयोग सदैव कुशासन के विरुद्ध किया। निर्बल और असहाय समाज की रक्षा के लिए उनका कुठार अत्याचारी कुशासकों के लिए काल बन चुका था।
उन्होने आगे कहा कि अधर्मी कार्तवीर्य (सहस्रबाहु) जिसने परशुरामजी के पिता महर्षि जमदग्नि को मारा था, उसका वध कर उसकी राजसत्ता को परशुरामजी ने छिन्न-भिन्न कर दिया। आज लोग किसी भी जीत को प्रकट करने के लिए जिन दो उंगलियों को उठाकर विजय मुद्रा का प्रदर्शन करते हैं वह परशुरामजी की विजय मुद्रा की नकल मात्र है। भगवान परशुराम की इस विजय मुद्रा के कई भाव हैं। इसका इसका एक भाव है, जो शासक जीव और परमात्मा में अंतर समझते हैं उनका मैंने मर्दन किया है। दूसरा यह कि मनसुख और धर्मविमुख राजाओं को यह समझ लेना चाहिए कि या तो जनक की तरह निर्गुण निराकार ब्रह्म को जानने वाले तत्वज्ञानी राजा बनो या महाराजा दशरथ आदि की तरह सगुण साकार ब्रह्म को स्वीकार करो। अवैदिक अमर्यादित राजा मेरे कुठार से बच नहीं सकते इसीलिए उन्होंने तर्जनी और मध्यमा दो उंगलियों को प्रदर्शित कर तात्विक विजय मुद्रा का प्रदर्शन किया। इसीलिए पुराणों में कहीं भी कौशल नरेश महाराजा दशरथ और मिथिला नरेश महाराज जनक के साथ परशुरामजी के मनमुटाव के उदाहरण नहीं दिखते।
पण्डित द्विजेन्द्र व्यास कहते है कि श्रीराम द्वारा धनुष तोड़ने के बाद समस्त राजाओं की दुरभिसंधि हुई कि श्रीराम ने धनुष तो तोड़ लिया है लेकिन इन्हें सीता स्वयंवर से रोकना होगा। अतः अपनी-अपनी सेनाओं की टुकड़ियों के साथ धनुष यज्ञ में आए समस्त राजा एकजुट होकर श्रीराम से युद्ध के लिए कमर कसकर तैयार हो गए। धनुष यज्ञ गृहयुद्ध में बदलने वाला था, ऐसी विकट स्थिति में वहां अपना फरसा लहराते हुए परशुरामजी प्रकट हो जाते हैं। वे राजा जनक से पूछते हैं कि तुरंत बताओ कि यह शिव धनुष किसने तोड़ा है अन्यथा जितने भी राजा यहां बैठे हैं मैं क्रमशः उन्हें अपने परशु की भेंट चढ़ाता हूं। तब श्रीराम विनम्र भाव से कहते हैं- हे नाथ, शंकर के धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका ही दास होगा। परशुराम-राम संवाद के बीच में ही लक्ष्मण उत्तेजित हो उठे। विकट लीला प्रारंभ हो गई। संवाद चलते रहे। लीला आगे बढ़ती रही। परशुरामजी ने श्रीराम से कहा- अच्छा, मेरे विष्णु धनुष में तीर चढ़ाओ। तीर चढ़ गया, परशुरामजी ने प्रणाम किया और कहा- मेरा कार्य अब पूरा हुआ, आगे का कार्य करने के लिए श्रीराम आप आ गए हैं। गृहयुद्ध टल गया। सारे राजाओं ने श्रीराम को अपना सम्राट मान लिया, भेंट पूजा की एवं अपनी-अपनी राजधानी लौट गए। श्रीराम के केंद्रीय शासन नियमों से धर्मयुक्त राज्य करने लगे। देश में शांति छाने लगी। अब श्रीराम निश्चिंत थे, क्योंकि उन्हें तो देश की सीमाओं के पार संचालित आतंक के खिलाफ लड़ना था इसीलिए अयोध्या आते ही वन को चले गए। पंचवटी में लीला रची गई, लंका कूच हुआ। रावण का कुशासन समाप्त हुआ। राम राज्य की स्थापना हुई। अतः रामराज्य की भूमिका तैयार करने वाले भगवान परशुराम ही थे।
पण्डित द्विजेन्द्र व्यास ने बताया कि दिनांक 22 अप्रैल दिन शनिवार को परशुराम जयंती मनाई जाएगी. इस दिन भगवान विष्णु के छठें अवतार भगवान परशुराम की पूजा-अर्चना की जाती है. भगवान परशुराम ने ब्राह्मणों ऋषियों पर होने वाले अत्याचार का अंत किया था। इस दिन जो व्यक्ति भगवान परशुराम की पूजा करता है, उसे भगवान परशुराम के साथ भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। वहीं, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान परशुराम को राम जामदग्नाय, राम भार्गव और वीरराम भी कहा जाता है. हिंदू आस्था की मानें तो भगवान परशुराम अभी भी पृथ्वी पर रहते हैं। इसलिए, राम और कृष्ण के विपरीत परशुराम की पूजा नहीं की जाती है. तो ऐसे में आइए आज हम आपको अपने इस लेख में परशुराम जयंती पर उनकी पूजा कैसे करें, शुभ मुहूर्त क्या है, ।
पंडित व्यास ने पूजा विधि के बारे में बताया कि इस दिन सुबह जल्दी स्नान करें। साफ और स्वच्छ कपड़े पहनकर गंगाजल से मंदिर को शुद्ध करें.। उसके बाद चैकी पर साफ कपड़ा बिछाकर भगवान परशुराम और भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें। भगवान को फूल, चावल और अन्य चीजें अर्पित करें । भगवान को भोग लगाएं और दीप जलाकर आरती करें.।
दिनांक 22 अप्रैल शनिवार को सुबह 07 बजकर 49 मिनट से अगले दिन दिनांक 23 अप्रैल को सुबह 07 बजकर 47 मिनट तक रहेगा।